गोवर्धन पूजा 20 अक्टूबर 2017 —

जानिए क्या है शुभ मुहूर्त, कैसे करें पूजा–

प्रिय पाठकों/मित्रों, हमारे देश भारत में हिन्दू पंचांगों के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है |गोवर्धन को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है| गोवर्धन पूजा आमतौर पर दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। लेकिन कभी-कभी तिथि के बढ़ने पर एक दो दिन आगे हो जाता है। पुराणों  में कथा आती है कि श्री कृष्ण अपने साथियों के साथ चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे।वहां उन्होंने देखा कि बहुत से लोग उत्सव माना रहे हैं।ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।

श्री कृष्ण ने उत्सुकतावश वहां के लोगों से पूछा तो गोपियों ने बताया कि इस दिन इन्द्रदेव की पूजा होती है। इन्द्रदेव की पूजा के फलस्वरूप भगवान प्रसन्न होकर वर्षा करते हैं जिससे खेतों में अन्न फूलते-फलते हैं।

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी. इस दिन गोबर घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की चित्र बनाकर पूजन किया जाता है. इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व है. गोवर्धन पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल में माना गया है|उन्नत फसल से वृजवासियों का भरण-पोषण होता है। गोपियों द्वारा इतनी बातें सुनकर श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि इंद्र से भी अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है। इस गोवर्धन पर्वत के कारण वर्षा होती है यहां वर्षा होती है।

इसलिए गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए, कृष्ण की इन बातों से सहमत होकर सभी वृजवासी गोवर्धन पूजा करने लगे। जब इन्द्र को इस बात की जानकारी इंद्र को हुई तो उन्होंने मेघ को आदेश दिया कि गोकुल में मुसलाधार बारिश कराए।

मुसलाधार बारिश से परेशान गोकुलवासी कृष्ण की शरण में गए। तब कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत के नीचे आने को कहा और छाते की तरह गोवर्धन पर्वत को सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया। जिससे लगातार सात दिन तक हुए मुसलाधार बारिश से वृजवासी की रक्षा हुई।जिसके बाद इन्द्र ने भी माना कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं। फिर बाद में इंद्रा देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी वृजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहें। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी। ब्रह्या जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है, उनसे तुम्हारा वैर लेना उचित नही है। श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की।

श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ।
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गोवर्धन पूजन विधि—

 

उत्तर भारत में दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. इसमें हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना (तस्वीर या प्रतिमूर्ति) बनाकर उनका पूजन करते हैं. इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है. गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के निमित्त भोग व नैवेद्य में नित्य के नियमित पदार्थ के अलावा अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल, फूल, अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें ‘छप्पन भोग’ कहते हैं, का भोग लगाया जाता है. ‘छप्पन भोग’ बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में भी बताया गया है.
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यह हैं पूजा करने की विधि—
इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाकर उसकी पूजा रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल आदि से दीपक जलाने के बाद की जाती है. गायों को स्नान कराकर उन्हें सजाकर उनकी पूजा करें. गायों को मिष्ठान खिलाकर उनकी आरती कर प्रदक्षिणा करनी चाहिए |
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जानिए अन्नकूट शब्द का अर्थ—-
अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह. विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा है. इस दिन बहुत प्रकार के पक्वान, मिठाई आदि का भगवान को भोग लगाया जाता है | इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है अमूमन गोवर्धन पूजा का दिन दीवाली पूजा के अगले दिन पड़ता है लेकिन कभी-कभी दीवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अन्तराल हो सकता है। गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है।
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यह रहेगा गोवर्धन पूजा (20 अक्टूबर 2017 ) के लिए शुभ मुहूर्त—–

 

– सुबह का मुहूर्त- सुबह 06:28 बजे से 08:43 बजे तक
–  शाम का मुहूर्त – 03:27 बजे से सायं 05:42 बजे तक
–  प्रतिपदा – रात 00:41 बजे से शुरू (20 अक्टूबर 2017)
–  प्रतिपदा तिथि समाप्त – रात्रि 1:37 बजे तक (21 अक्तूबर 2017)
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गोवर्धन पूजा से जुड़ी अन्य बातें—-

ऐसा माना जाता है कि अगर गोवर्धन पूजा के दिन कोई दुखी है तो वह वर्ष भर दुखी रहेगा. इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए. इस दिन स्नान से पूर्व तेलाभ्यंग अवश्य करना चहिए, इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दरिद्रता का नाश होता है. इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरणों में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह पूरे साल भर सुखी और समृद्ध रहता है. महाराष्ट्र में यह दिन बालि प्रतिपदा या बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है. वामन जो भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बालि पर विजय और बाद में बालि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है. यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बालि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आते हैं. गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा उत्सव गुजराती नव वर्ष के दिन से एक दिन पहले मनाया जा सकता है. यह प्रतिपदा तिथि के प्रारम्भ होने के समय पर निर्भर करता है.
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गोवर्धन (अन्न कूट) पूजा सामग्री—-

 

i) गाय का गोबर – गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाने के लिए

 

ii) लक्ष्मी पूजन वाली थाली , बड़ा दीपक , कलश व बची हुई सामग्री काम में लेना शुभ मानते है। लक्ष्मी पूजन में रखे हुए गन्ने के आगे का हिस्सा तोड़कर गोवर्धन पूजा में काम लिया जाता है।

 

iii) रोली , मौली , अक्षत

 

iv) फूल माला , पुष्प

 

v) बिना उबला हुआ दूध।

 

vi) 2 गन्ने, बताशे, चावल, मिट्टी का दीया

 

vii) जलाने के लिए धूप , दीपक ,अगरबत्ती

 

viii) नैवेद्य के रूप में फल , मिठाई आदि अर्पित करें।

 

ix) पंचामृत के लिए दूध, दही, शहद, घी और शक्कर

 

x) भगवान कृष्ण की प्रतिमा
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यह हैं गोवर्धन (अन्न कूट) सम्पूर्ण एवं सरल पूजन विधि—-

 

इस दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना का प्रावधान हैं ।उसके बाद पूजन सामग्री के साथ पूजा स्थान पर बैठें और अपने कुलदेव का ध्यान करें पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनायें। इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है । फूल , पत्तियों , टहनियों व गाय की आकृतियों से या अपनी सुविधानुसार उस आकृति को सजायें । और उनके मध्य में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रखे | नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्डा बना लें और वहाँ एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रखे फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।

 

अब इस मंत्र को पढ़ें—

 

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।

 

इसके बाद गायों को स्नान कराएं और उन्हें सिन्दूर आदी से सजाएं. उनकी सींग में घी लगाएं और गुड़ खिलाएं. फिर इस मंत्र का उच्चारण करें.

 

लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।

 

नैवेद्य के रूप में फल , मिठाई आदि अर्पित करें। गन्ना चढायें। एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर बिलोने से झेरते है और गोवर्धन के गीत गाते हुवे गोवर्धन की सात बार परिक्रमा करते हैं । परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
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ध्यान रखें छोटी मगर उपयोगी बातें—-

 

– ऐसा माना जाता है कि अगर गोवर्धन पूजा के दिन कोई दुखी है तो वह साल भर दुखी रहता है.
– इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरणों में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह पूरे साल भर सुखी और समृद्ध रहता है.
– ऐसा माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बालि इस दिन पाताल लोक से पृथ्वी लोक आते हैं.
– जरात, महाराष्ट्र राज्यों में इसी दिन से नव वर्ष की शुरूआत होती है.
– ये पर्व वज्र भूमि में ज्यादा लोकप्रिय है.

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