सरकार केजरीवाल की- तब आंखों की एक बूंद से, सातों सागर हारे होंगे

-डॉ. अरविंद कुमार सिंह –  Arvind kejrival
इंसान की विश्वसनियता उसकी बातों से नहीं, उसके कामो से होती है। राजनीति की विडम्बना यह है यहा बाते ज्यादा और काम आनुपातिक रूप से कम है। देश की आजादी के वक्त से जो सिलसिला शुरू हुआ वो आजतक बादस्तूर जिन्दा है। दिल्ली की वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम इसी दिशा में अपनी बात कहती नजर आती है। अरविन्द केजरीवाल एक अच्छी शख्शियत होने के बावजूद राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं। दिल्ली की जनता से रायशुमारी के बाद उन्होने दिल्ली की गददी सम्भाली थी। गद्दी सम्भालने के पूर्व वो कइ बातों को अच्छी तरह जानते थे।
मसलन दो तीन महीने के उपरान्त चुनाव आचार संहिता लागू हो जायेगा। ऐसे में मेरे किसी उद्घोषणा का कोइ अर्थ नहीं होगा। बहुमत नहीं होने के कारण मैं कोइ बडा फैसला लेने से रहा। और सबसे दिलचस्प बात, कांग्रेस की खिलाफत करने के बावजूद उसी का दामन पकड़कर सरकार बनाना। यह कृत्य जनता के प्रति राजनैतिक बेइमानी की सर्वोच्च पराकाष्ठा थी। दो क्षण के लिये यदि मान लिया जाय केजरीवाल उस वक्त यदि सरकार नहीं बनाते तो क्या होता ? पुन: चुनाव होता। मैं पूर्ण विश्वास से कह सकता हूं कि दोबारा केजरीवाल बहुमत से सत्ता में वापस हो जाते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तर्क दिया गया, जनता चाहती है कि मैं सरकार बनाउ। मैं नहीं चाहता दोबारा जनता का करोड़ों रुपया चुनाव पर खर्च हो।
मैं पूरी विनम्रता से जानना चाहूंगा केजरीवाल साहब से, जनता ने आपको सरकार बनाने के लिये रायशुमारी दी थी न कि सत्ता छोड़के भागने के लिये? क्या अब जनता का करोडो रूपया खर्च नहीं होगा? क्या यह बेहतर नहीं होता कि आप पाच साल तक दिल्ली की सरकार चलाते और फिर अपने बेहतर परफॉरमेंन्स के लिये जनता से वोट मांगते? इतनी जल्दी सत्ता से विमुख होना और इस बात का रोना कि विपक्षी पार्टियां हमें काम नहीं करने दे रहे हैं, बहुत ही हास्यास्पद है। तो क्या यह बात आपको सरकार बनाने के पहले पता नहीं था? दरअसल वर्तमान परिदृश्य जो हमें दिख रहा है, वो है नहीं और जो है वो दिख नहीं रहा। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या होती है और तात्कालिक चुनाव में जनता राजीव गाधी को दो तिहाइ बहुमत देकर सत्ता पर आसीन करा देती है। मैं नहीं कह सकता वह व्यक्ति की काबिलियत पर जनता की मुहर थी? या पार्टी की लोकप्रियता पर मुहर थी? या फिर पार्टी द्वारा चुने गये बेस्ट टाइमिंग पर मुहर थी?
यदि येदियुरप्पा को शामिल कर बीजेपी पाक साफ नहीं हो सकती। तो फिर केजरीवाल जी देश की वर्तमान समय की सबसे भ्रष्टतम पार्टी का सर्मथन लेकर आप कैसे पाक साफ साबित हो सकते हैं? यह गणित समझ से परे है, वो एक व्यकित को शामिल कर दागदार है और आप पूरी पार्टी का सर्मथन लेकर भी पाक साफ है। दरअसल, दोनों पार्टियां टाइमिंग का खेल खेल रही है। मिशन 2014 है।
दरअसल पार्टिया वोट बटोरने की हैसियत रखने वाले व्यकित को ही टिकट देती है। जबतक की वो अनितम दहलीज ( सुप्रीम या हाइ र्कोट से सजायाफता न हो जाय ) तक न पहुंच जाये। रार्बट वाड्रा यदि केजरीवाल के लिये प्राथमिकता नहीं है तो येदियुरप्पा भाजपा के लिये परेशानी के सबब नहीं है। एक को किसी को न छेड़ने से फायदा है तो दूसरे को अपनी पार्टी में शामिल करने से फायदा है। खेल टाइमिंग का है।
देश के लिये जान देने की बात करने वाले किसी राजनेता को अपने बेटे को सेना में भर्ती करते मैंने आज तक नहीं देखा। इंग्लैन्ड के प्रिंस चाल्र्स यदि सेना में भर्ती होते हैं और युद्ध लड़ने की ख्वाहिश जाहिर करते हैं तो वह अपने देश के लिये एक मिसाल पैदा करते हैं। अन्त में सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा। पहले कार्य करके दिखाइये – विश्वसनियता खुद-ब-खुद बन जायेगी। एक छोटे से उदाहरण से अपनी बात रखूंगा – देश में बाढ़ आ जाय, तो सेना को बुला लीजिए। भूकम्प आ जाये – तो सेना को बुला लिजिए। विषम परिस्थतियां पैदा हो जाय – तो सेना को बुला लीजिए। कभी हमने आपने ये सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों? सेना बोलती कम है, काम ज्यादा करती है – यहां तक कि शहादत भी दे देगी, लेकिन बिना किसी भाषण के। यह गुण आखिर हमारे राजनेता कब सीखेंगे? किसी सैनिक की विधवा के लिये लिखी यह पंक्ति क्या हमारे लिये मिसाल नहीं –
तब आंखों की एक बूंद से, सातों सागर हारे होंगे।
जब मेहंदी वाले हाथों ने, मंगल-सूत्र उतारे होंगे।

6 COMMENTS

  1. सबलोग कह रहे हैं कि केजरीवाल को भागना नहीं चाहिए था,पर केजरीवाल भागे कहाँ हैं? क्या अम्बानी पर मुकदमा दायर नहीं करते?क्या कांग्रेस और अम्बानी के खेल को नमो या बीजेपी की तरह मौन स्वीकृति दे देते?केजरीवाल या उनकी पार्टी राजनीति में क्यों आईथी?गद्दी सम्भालने या भ्रष्टाचार का उन्मूलन करने?क्या यह आंदोलन से निकली पार्टी अन्य पार्टियों की तरह हो जाती? कांग्रेस ने समर्थन अपनी मजबूरी में दिया था,क्योंकि उसको मालूम था कि फिर चुनाव हुआ तो उसको उतना सीट भी नहीं मिलेगा ,जितना अभी है. बीजेपी भी नहीं चाहता था कि फिर चुनाव हो और जनता भी यही चाहती थी कि अगर मौका मिला है तो दिल्ली वालों की भलाई के कार्य में लग जाना चाहिए,पर एक बात अवश्य थी.यह सब किस कीमत पर?सी.एन जी का दाम बेतहासा बढ़ रहा था.किसी ने आवाज क्यों नहीं उठाई? अम्बानी को लूटने की छूट कांग्रेस दे रही थी,तो क्या बी.जे.पी. का इसमे साझा नहीं था?केजरीवाल सरकार को तो जन लोकपाल (असल में जनलोकायुक्त) और स्वराज बिल को तो पहले ही दिन पेश करना चाहिए था,पर उन्होंने कुछ ऐसे वादे भी किये थे,जिसको वे तत्काल पूरा कर सकते थे,उसपर किसी के समर्थन की आवश्यकता नहीं थी ,पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की प्राथमिकता भी तो थी.उनके अपने विधायकों को भी लालच आने की सम्भावना थी.ऐसे समय में उनके लिए जल्द से जल्द ये दोनों बिल लाने बहुत आवश्यक हो गए थे. फिर दूसरा बिल तो विकास से भी सम्वन्धित था,क्योंकि यह सरकार पैसा विधायकों को न देकर सीधे मुहल्ला सभा को देना चाहती थी ,पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई इतनी आसान नहीं थी,उसपर मुकेश अम्बानी पर मुकदमा? सरकार कि ऎसी तैसी तो होनी ही थी.नतीजा सामने है.हो सकता है कि केजरीवाल समझौता करके मिलीभगत से सरकार चलाते और जैसा की गठवन्धन सरकार में होता है,कुछ तुम खाओ,कुछ हम खाएंऔर जनता बेवकूफ बनती रहे ,तो यह सरकार चलती रहती.यु.पि.ए.की वर्त्तमान सरकार इसकी ज्वलंत उदाहरण है,तो फिर एक नई पार्टी बनाने की क्या आवश्यकता थी?अतः जो कुछ हुआ,उससे अलग कुछ नहीं हो सकता था.

  2. बहुत ही सुन्दर सटीक विश्लेषण.केजरीवाल रो रो कर जनता की सहानुभूति प्राप्त करना चाहते थे, अन्य पर आरोप लगा खुद को ईमानदार व अन्य सब को चोर बताना उनकी आदत बन गयी .वह यह भूल गए कि यहाँ साबुत होने के बावजूद लोगों को आरोपी सिद्ध करना कठिन है , जब कि वे आरोपों की खेती बिना बीज के कर रहें है.केवल आरोप लगा चुप हो जाना या बार चिल्लाना कि वे चोर हैं से काम नहीं चलता.केजरीवाल ने राजनीती को बच्चों का खेल बना कर रख दिया है.

  3. This is the best article on present condition of the politics in the country.
    Kejariwal has betrayed the people of Delhi and now he is preparing to bluff the whole country and I do not trust him and his ‘AAP’ party.
    He is not a Man he is a disgrace for the people of Delhi he should be written off because he is good for nothing considering what he has done to people of Delhi.
    I can not trust this man called Arvind Kejariwal.

  4. डॉ. अरविंद कुमार सिंह जी, (कमोबेश नाम भी एक ही है, मैचिंग मैचिंग) जिस बन्दे की काम करने कि मंशा होती है उसके लिए कोई दिक्कत कभी नहीं होती और बहाने बाजों के लिए बहानों की कोई कमी नहीं होती, जिस जनलोकपाल का नाम ले के स्वघोषित हरिश्चंद्र जी भागे, अगर काम करने की मंशा होती तो जो अभी लोकायुक्त बिल दिल्ली के पास है उसी में संसोधन करवा लेते. क्या दिक्कत थी? क्या संविधान में संशोधन नहीं होते हैं? वैसे ही इसमें भी हो जाते और कोई कुछ कर भी नहीं पाता. सरकार भी बची रहती और काम भी हो जाता. अब के मुकाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में स्थित होकर लोकसभा के चुनाव में उतरते. लेकिन धूर्त लोग सिर्फ सच्चाई का स्वांग करते हैं और मौके की ताड़ में रहते हैं.

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