सरकारी लोकपाल से क्या उम्मीद करे देश की जनता?

केंद्र सरकार ने जिस तरह का सरकारी लोकपाल विधेयक संसद में पेश किया है उससे देश को बहुत अधिक उम्मीदें नहीं होना चाहिए| अव्वल तो लोकपाल विधेयक का राज्यसभा में पास हो पाना मुश्किल है क्योंकि सरकार की मौजूदा सदस्य संख्या यहाँ कम है| फिर यदि लोकपाल विधेयक किसी तरह पास हो भी गया तो इसे कोर्ट में चुनौती मिलेगी| इसकी प्रबल संभावना इसलिए बन रही है क्योंकि सरकार ने जानबूझ कर लोकपाल में कानूनी दाव-पेंचों के भंवर को डाला है ताकि इसके अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग जाएँ| निश्चित ही कोर्ट में लोकपाल बिल का खारिज होना तय है| हाँ, सरकार अपना दामन साफ़ रखने में ज़रूर कामयाब रही है| सरकार ने देश की जनता को यह संदेश तो दे ही दिया है कि उसी के अथक प्रयासों के कारण लोकपाल संसद में पेश हुआ| अब यदि यह कानूनी रूप नहीं ले पाया तो उसमें सरकार नहीं बल्कि विपक्षी दल जिम्मेदार हैं| मगर जिस तरह का बिल पेश हुआ है उससे तो यही प्रतीत होता है कि सरकार का भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का राग अलापना ढकोसला ही है|

 

पहली बात तो यह कि लोकपाल में धर्म के आधार पर आरक्षण का जो मसौदा सरकार ने तय किया है; वह कदापि संविधान सम्मत नहीं है| ताज्जुब है जो सरकार संविधान को सर्वोच्च दर्ज़ा देती है; वही इसके प्रावधानों की खुले आम धज्जियां उड़ा रही है| सरकार का साथ ऐसे लोग भी दे रहे हैं; जिनकी राजनीति अब ढलान पर है मगर फिर भी सरकार उनकी मांगों के आगे झुकती जा रही है| राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव हों या सपा प्रमुख मुलायम सिंह या लोजपा के रामविलास पासवान; सभी चाहते हैं कि एक मजबूत लोकपाल कभी बन न पाए| यदि भारत में मजबूत एवं सशक्त लोकपाल बना तो इनकी जेल यात्रा तय है| फिर ये सभी लोकपाल के मुद्दे पर भी राजनीति का कोई मौका नहीं जाने दे रहे| तभी तो तीनों नेता एक स्वर में लोकपाल में आरक्षण की मांग कर रहे हैं जिसे सरकार ने काफी हद तक स्वीकार भी कर लिया है| यदि सरकार को लोकपाल में आरक्षण देना ही था तो उसे चक्रीय प्रणाली के तहत इसका अनुमोदन करना चाहिए था ताकि सभी को समान अवसर प्राप्त हों| तब हो सकता है सरकार को लोकपाल में आरक्षण मुद्दे पर विपक्ष का इतना तीखा विरोध नहीं झेलना पड़ता| मगर राजनीति के आड़े झुक कर सरकार ने लोकपाल का अस्तित्व ही खतरे में ड़ाल दिया है| यदि लोकपाल में आरक्षण का मसला कोर्ट गया तो लोकपाल के गठन को भूल जाइए|

 

जहां तक बात है लोकपाल के स्वरुप निर्धारण की तो इसमें भी सरकार ने सख्त लोकपाल की धारणा को मार दिया है| चाहे वह लोकपाल के सदस्य अथवा अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला हो या सत्ता पक्ष द्वारा उसे पद्चुत करने का मामला; सरकार ने सभी अधिकार अपने पास सुरक्षित कर लिए हैं| यदि लोकपाल के विरुद्ध जांच चल रही है तो भी राष्ट्रपति लोकपाल को निलंबित कर सकता है| इसके लिए सत्ता पक्ष के १०० सांसदों को लोकपाल के विरुद्ध शिकायत करना होगी जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट करेगा| वहीं सरकार ने लोकपाल द्वारा राज्यों में भी हस्तक्षेप करने का मन बना लिया है| लोकपाल को ऐसे अधिकार दिए गए हैं कि वह राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधी मामलों में राज्य सरकारों को आदेश दे सकता है या राज्य सरकारें लोकायुक्त की नियुक्ति न कर केंद्रीय व्यवस्था अपनाने को बाध्य हो सकती हैं| विपक्ष को आशंका है कि लोकपाल की आड़ में केंद्र राज्य के अधिकारों का हनन कर सकता है| इससे संघीय ठांचे को नुकसान पहुंचना तय है|

 

प्रधानमंत्री को सशर्त सहित उच्च पदेन सरकारी कर्मचारियों को तो लोकपाल के अधीन लाया गया है मगर सी.बी.आई को सरकार अभी भी अपने अधीन रखना चाहती है| कुल मिलाकर सरकार ने लचर लोकपाल का खाका तैयार कर देश को धोखा ही दिया है| कई सांसद तो अब भी स्वयं को लोकपाल के अधीन रखने का विरोध कर रहे हैं| यानी सभी को यह अंदेशा है कि यदि देश में एक सख्त व प्रभावी लोकपाल अस्तित्व में आया तो उनकी राजनीति का सूरज निश्चित ही डूब जाएगा| ऐसे माहौल में जहां भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हमारे “माननीयों” में इच्छाशक्ति का अभाव है; उम्मीद की जा सकती है कि वे ऐसा कोई प्रभावी कदम नहीं उठाएंगे जिससे उन पर कोई आंच आए| सरकारी लोकपाल को देखकर तो यही लगता है कि हमें हाल-फिलहाल उसी भ्रष्ट व्यवस्था में रहना पड़ेगा जिससे छूटने के लिए हम विगत कई दशकों से उम्मीद कर रहे हैं लेकिन भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के चलते हमें इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही है|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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