राजनीति

कर्नाटक में राज्यपाल की बेढंगी राजनीति

-डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

श्री हंसराज भारद्वाज कर्नाटक के राज्यपाल है। राज्यपाल एक ऐसा संवैधानिक पद है जिस पर बैठे व्यक्ति को इसकी गरिमा की रक्षा करने के लिए बहुत ज्यादा आत्म संयम की आवश्यकता रहती है। उसका प्रदेश की राजनीति से कोई लेना देना नहीं होता और वह एक बजुर्ग मार्ग दर्शक के नाते सरकार को सलाह दे सकता है। सरकार पर यह जरूरी नहीं है की उसकी सलाह को स्वीकार करे। यदि राज्यपाल अपनी सलाह के प्रति सचमुच गंभीर है और जिस मुद्दे पर उसने सलाह दी है, उसके प्रति ह्रदय से संवेदनशील है तो राज्यपाल अपने पद से इस्तीफा देकर उस मुद्दे को लेकर जनता के बीच जा सकता है। परन्तु यदि राज्यपाल किसी मुद्दे पर केवल राजनीति कर रहा है और उसका विश्वास मुद्दे की गंभीरता में इतना नहीं है तो वह केवल शोशे बाजी कर रहा होता है। ऐसी स्थिति में वह पद से इस्तीफा देने की बजाय मीडिया की और भागता है जाहिर है पद से त्याग पत्र देने का अर्थ है सारी सुख सुविधाएं छोड़कर मुद्दे के लिए जनता की बीच हलकान होना पड़ता है। मीडिया की और भागने में कोई खतरा नहीं है अलबत्ता दो चार जगह मुफत की वाह वाही बटोरी जा सकती है।

हंसराज भारद्वाज आजकल इसी नोटंकी में लगे हुए हैं। उनको लगता है कि कर्नाटक सरकार के रेड्डी बंधु भ्रष्टाचारी हैं। वे गैर कानूनी ढंग से प्रदेश में खनन कार्य कर रहे हैं। रेड्डी बंधु प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं। राज्यपाल का कहना है कि मुख्यमंत्री को तुरन्त इन्हें पद से मुक्त करना चाहिए। वे इस बात को लेकर मीडिया से भी मुखातिब हो रहे है। और भाग भाग कर राष्ट््रपति को भी बता रहे हैं कि ये मत्री भ्रष्टाचारी हैं इनको हटाया जाना चाहिए। हंस राज भारद्वाज विद्वान आदमी हैं लम्बे अर्से से तक वकालत करते रहे हैं। केन्द्र सरकार में कानून मंत्री भी रहे हैं। इसलिए ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि भारद्वाज को संविद्यान के कायदे कानून का पता नहीं हैं या फिर वे राज्यपाल पद के सामने संविद्यान द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा से वाकिफ नहीं है। दरअसल उनके जीवन में एक त्रासदी रही है उन्होंने काफी मेहनत करके संविद्यान के कायदे कानून तो जान लिये लेकिन अत्यन्त परिश्रम करके भी शायद वे सोनिया गांधी के द्वारा के कायदे कानून ठीक ढंग से समझ नहीं पाये। वैसे भी बुढ़ापे में सीखने की एक सीमा रहती है। कांग्रेस के युवा ब्रिगेड के लोग सोनिया के दरबार के कायदे कानून जिस तेजी और नफासत से सीख सकती है वह तेजी बेचारे भारद्वाज उमर की इस चौथ में कहा से ला पाते। फिर भी उन्हें इस बात की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने ढलती उमर में भी इस काम के लिए भाग दौड़ कम नहीं की। लेकिन इस प्रकार के प्रयासों को जो हश्र होता है हंस राज भारद्वाज के साथ भी वही हुआ। केन्द्रीय विधि मंत्री के पद से त्यागपत्र देना पड़ा और शायद उनकी पुरानी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक के राज्यपाद के सुविधावादी पद पर भेज दिया गया।

लेकिन भारद्वाज शायद एक बार फिर दरबार में अपनी उपयोगिता स्थापित करना चाहते हैं।उन्होंने रेड्डी बंधुओं का मुद्दा उठाकर कर्नाटक सरकार पर प्रहार किया है। प्र्रश्न यह नहीं है कि बेलारी के रेड्ड बंधु भ्रष्टाचारी हैं या नहीं है प्रश्न यह है कि राज्यपाल जिस प्रकार का आचरण कर रहे हैं वह उनके पद के अनुकूल है या नहीं प्रदेश में कांग्रेस के लोग रेड्डी बंधुओं के भ्रष्टाचार को लेकर हल्ला मचाते रहते हैं। वे इसके लिए आंदोलन भी कर रहे हैं। रेड्डी बंधुओं के तथाकथित भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस और अन्य राजनैतिक दलों को आंदोलन करने का पूरा अधिकार है लेकिन कांग्रेस के इस आंदोलन में राज्यपाल हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं हो सकते। राज्यपाल का प्रदेश की राजनीति से कुछ लेना देना नहीं होता मंत्री मंडल में किस को रखना है और किस को नहीं रखना यह अधिकार मुख्यमंत्री का है राज्यपाल का नहीं। यदि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचारी मंत्रियों को पनाह देगा तो जाहिर है अगले चुनावों में जनता उसका दंड दे देगी। राज्यपाल का क्षेत्र इन सब चीजों से उपर है। राजनीति का क्षेत्र राजभवन के बाहर का है। परन्तु हंसराज भारद्वाज दरबार में अपनी साख फिर से स्थापित करने के लिए कर्नाटक के राजभवन को कांग्रेस की राजनीति की प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल कर रहे है। भारद्वाज यदि भ्रष्टाचारी को देखकर सचमूच ही इतने व्यथित हैं तो उन्हें पद से इस्तीफा देकर कर्नाटक के लोगों के बीच जाकर भ्रष्टाचार के विरोध में बीगूल बजा देना चाहिए तब पता चलेगा कि वे सचमुच दुध के धुले हुए हैं या फिर मगरमछ के आंसू बहाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का पखंड ही कर रहे है।

और केवल कांग्रेस की राजनीति में अपनी खोई साख को पुनः प्राप्त करने के लिए इस प्रकार का निदनीय व्यवहार कर रहे हैं।

लेकिन कांग्रेस के इतिहास को जानने वाले और हंस राज भारद्वाज की पृष्ठ भूमि से वाकिफ लोग जानते हैं कि वे राजनीति में संघर्ष की भट्ठी से निकलकर नहीं आये हैं बल्कि दरबार की तिलिस्मी चालों की उपज हैं। रेड्डी बंधुओं को लेकर वे ऐसा ही तलस्म खड़ा करना चाहते है। परन्त दुर्भाग्य अब इस तिलिस्मी चालों पर लोग आश्चार्य चकित नहीं होते बल्कि हंसते है। राष्ट्र्पति को चाहिए की हंस राज भारद्वाज को तुरंत बरखासत करें और यदि वे ऐसा नहीं करना चाहती तो कम से उन्हें त्याग पत्र देने की सलाह अवश्य दें ताकि राज्यपाल और राष्ट्र्पति दोनों पदों की ही गरिमा बची रहे।