ज्ञान चंद पाटनी
पिछले दो वर्ष के दौरान भारत में विमानों के जीपीएस सिस्टम के साथ 1,951 बार छेड़छाड़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं। सरकार ने ही यह आंकड़ा लोकसभा में उजागर किया है। जाहिर है जीपीएस छेड़छाड़ भारत के तेजी से बढ़ते विमानन क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा है। जिस नियोजित तरीके से जीपीएस स्पूफिंग हो रही है, उससे भारत से शत्रुता रखने वाले देशों की तरफ भी संदेह की सूई घूम रही है। साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के काम के लिए जितने संसाधन चाहिए, वे किसी छोटे—मोटे समूह के लिए संभव नहीं। इस तरह की कार्रवाई दुश्मन देशों की शह और मदद से करना आसान है। जीपीएस सिस्टम से छेड़छाड़ होने की बात स्वीकारना ही काफी नहीं, सरकार को विमानों की सुरक्षा के सभी आवश्यक इंतजाम भी करने होंगे।
जीपीएस विमान को सटीक लोकेशन और दिशा दिखाता है। किसी भी गड़बड़ी से विमान भटक सकता है जो विनाशकारी दुर्घटना का कारण बन सकता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे प्रमुख हवाई अड्डों पर हाल की घटनाओं ने इस खतरे को उजागर किया है। जीपीएस स्पूफिंग एक तरह का साइबर हमला है जिसमें अपराधी नकली सैटेलाइट सिग्नल भेजकर विमान के नेविगेशन सिस्टम को धोखा देते हैं। सामान्य जैमिंग से अलग, स्पूफिंग में असली सिग्नल के साथ नकली सिग्नल मिश्रित कर दिए जाते हैं, जिससे सिस्टम गलत लोकेशन दिखाता है। उदाहरण के लिए पायलट को लग सकता है कि विमान सही रनवे पर लैंड कर रहा है जबकि वह गलत दिशा में जा रहा हो। जाहिर है इससे विमान गलत दिशा में मुड़ सकता है, टकराव हो सकता है या गलत लैंडिंग हो सकती है। नकली सिग्नल विमान के फ्लाइट मैनेजमेंट सिस्टम (एफएमएस) को गुमराह करते हैं, जिससे गलत ऊंचाई, मौसम या रनवे डेटा मिलता है।
जीपीएस सिग्नल पृथ्वी से 20,000 किलोमीटर ऊपर सैटेलाइट से आते हैं और उनकी शक्ति बहुत कम होती है। इसे आसानी से ओवरराइड किया जा सकता है। भारत जैसे देश में, जहां उड़ानें घनी हैं, यह खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
गौरतलब है कि सरकार ने संसद में दूसरी बार जीपीएस स्पूफिंग की बात स्वीकार की है। 1 दिसंबर को भी राज्यसभा में नागरिक उड्डयन मंत्री किंजरापु राममोहन नायडू ने दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर 7 नवंबर की घटना का जिक्र किया था। यहां ऑटोमेटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (एएमएसएस) प्रभावित हुआ, जिससे 12 घंटे से अधिक समय तक फ्लाइट संचालन ठप रहा। 800 से ज्यादा उड़ानें लेट हुईं और 20 उड़ानों को रद्द करना पड़ा। यात्रियों की लंबी कतारें लगीं। इसका असर मुंबई, अमृतसर, हैदराबाद तक हुआ।
एएमएसएस एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से जुड़ा कंप्यूटर नेटवर्क है जो फ्लाइट प्लान, ऊंचाई, फ्यूल, मौसम अपडेट आदि रीयल-टाइम मैसेज भेजता है। सिस्टम फेल होने पर मैन्युअल काम करना पड़ता है जिससे काम का भार बढ़ जाता है और गलती होने की आशंका भी रहती है।
दिल्ली के अलावा कोलकाता, अमृतसर, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई में भी इस तरह की शिकायतें मिलीं। मंत्री नायडू ने इसे साइबर हमला माना और एएआई को एडवांस साइबर सिक्योरिटी लागू करने को कहा गया है। बताया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मामले की निगरानी कर रहे हैं।
साइबर सुरक्षा कंपनी क्लाउडएसईके की रिपोर्ट में कहा गया कि इतने बड़े पैमाने पर नकली सिग्नल फैलाने के लिए सैन्य-स्तरीय उपकरण और ऊर्जा चाहिए जो सामान्यत: अपराधिक गिरोहों के पास नहीं होती। इससे यह आशंका बलवती होती है कि ये “किराए के साइबर समूह” हैं जो दुश्मन देशों के लिए काम करते हैं। इशारा मिलने पर ये रेलवे, शिपिंग, एविएशन को निशाना बनाते हैं। दुनियाभर में ऐसे मामले बढ़े हैं। उदाहरण के तौर पर क्राउडस्ट्राइक आउटेज जुलाई 2024 में हुआ एक बड़ा वैश्विक आईटी व्यवधान था। यह साइबर हमला नहीं था। असल में क्राउडस्ट्राइक के फाल्कन सुरक्षा सॉफ्टवेयर के एक त्रुटिपूर्ण अपडेट के कारण ऐसा हुआ था। इससे दुनिया भर के लाखों माइक्रोसॉफ्ट विंडोज कंप्यूटर क्रैश हो गए और “ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ” दिखने लगी। इससे एयरलाइंस, वित्तीय सेवाएं और स्वास्थ्य सेवाएं सहित कई उद्योग प्रभावित हुए और भारी वित्तीय नुकसान हुआ। अगस्त 2023 में यूके एटीसी फेलियर से 600 उड़ानें रुकीं।
इस बीच अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (आईएटीए) ने जीपीएस छेड़छाड़ की घटनाओं में बढ़ोतरी पर चिंता जताई है और कहा है कि पायलटों को अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। यह संगठन विश्व भर की करीब 360 विमानन कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है। जाहिर है संकट गंभीर है और इससे निपटने के लिए बहुस्तरीय रणनीति चाहिए। साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि ग्राउंड-बेस्ड नेविगेशन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। रेडियो टावरों से हाई-फ्रीक्वेंसी सिग्नल इस्तेमाल किए जाएं। ये जीपीएस से कई गुना मजबूत होते हैं और जाम-प्रूफ भी हैं। इमारतों या सुरंगों में भी काम करते हैं। विदेशी जीपीएस पर निर्भरता कम की जानी चाहिए। स्वदेशी क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम नाविक को मजबूत करके विमानों को स्वदेशी नेविगेशन से लैस किया जाना चाहिए।
इस तरह के किसी भी हादसे से बचने के लिए साइबर सिक्योरिटी मजबूत करने पर ध्यान दिया जाए। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) को एएमएसएस जैसे सिस्टम को तुरंत अपग्रेड करना होगा। पायलटों और एयर ट्रैफिक कंट्रोल यानी एटीसी के स्टाफ को स्पूफिंग की पहचान करने की ट्रेनिंग देना भी आवश्यक हो गया है। अमेरिका और इजरायल जैसे देशों से तकनीक इससे जुड़ी आधुनिक तकनीक ली जा सकती है। साइबर डिफेंस सेंटर स्थापित करने का भी समय आ गया है।
हादसों से बचने के लिए हर क्षेत्र में सतर्कता ही सुरक्षा का नियम ज्यादा कारगर है। ग्राउंड नेविगेशन, स्वदेशी तकनीक और मजबूत साइबर ढांचे से विमान जीपीएस स्पूफिंग से बच सकते हैं। सरकार, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए), एएआई को एकजुट होकर काम करना होगा अन्यथा, कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। समय को देखते हुए भारत का आकाश सुरक्षित रखना राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
ज्ञान चंद पाटनी