भूखे पेट के लिए भोजन का बड़ा प्रबंध

प्रमोद भार्गव

कोरोना प्रकोप से पीड़ित गरीबों के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ा प्रबंध करके रोज कुआं खोदकर पानी पीनेवालों के लिए राहत का काम किया है। 1 लाख 70 हजार करोड़ की आर्थिक मदद इस नाते देश के वंचितों के लिए की गई बड़ी मदद है। इस मुश्किल घड़ी में सामाजिक मोर्चे के बाद, आर्थिक मोर्चा संभालने की ऐसी राहत पहले कभी दिखाई नहीं दी है। इस देशबंदी में बेरोजगार हुए लोगों के पेट की चिंता को लेकर उठ रही आशंकाओं पर अब विराम लग गया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के ऐलान के बाद निर्बल, गरीब, किसान व मजदूरों को अनाज, रसोई गैस तो निःशुल्क मिलेंगे ही, एक निश्चित नगद राशि भी मिलेगी। अपनी जान जोखिम में डालकर चिकित्सा सेवा में लगे 22 लाख चिकित्साकर्मियों और 12 लाख चिकित्सकों के परिजनों को अनहोनी घटने पर 50 लाख का बीमा-धन भी दिया जाएगा। ये योजनाएं ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत अमल में लाई जाएंगी। संकट के इस समय में तीन महीने तक जारी रहने वाली इस योजना का यदि धरातल पर सही क्रियान्वयन होता है तो इस देशव्यापी प्राकृतिक आपदा में इससे अनूठा उपाय संभव ही नहीं है? लेकिन हमारे यहां देखने-सुनने में जो योजनाएं सरल लगती हैं, वे नौकरशाही के समक्ष व्यवहार के स्तर पर दम तोड़ देती हैं। हालांकि नगद राशि सीधे जरूरतमंदों के खाते में पहुंचेगी। बावजूद रोजाना ऐसी खबरें आ रही हैं कि साइबर तकनीक के खिलाड़ी राशि निकाल लेते हैं। इन घड़ियालों से भी सख्ती से निपटने की जरूरत है।

हालांकि देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू है। इस कानून के तहत देश के 80 करोड़ लोगों को 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल मिल रहे हैं। चूंकि असंगठित क्षेत्रों से जीवन-यापन कर रहे लोग इस महामारी के चलते पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं, इसलिए उन्हें मुफ्त में अनाज उपलब्ध कराना जरूरी था। क्योंकि हाथ पर हाथ धरे बैठे गरीब दो रुपए किलो गेहूं और तीन रुपए किलो चावल भी कैसे खरीदते? इसलिए इनके लिए अनाज का मुफ्त इंतजाम ही आवश्यक था। इस योजना के तहत 80 करोड़ लाभार्थियों को नियमित मिलने वाले अनाज के अलावा पांच किलो गेहूं और एक किलो दाल अतिरिक्त मिलेंगे। देश की यह दो तिहाई आबादी है। किसान और बुजुर्गों के लिए भी यह पैकेज राहत का संदेश लेकर आया है। अब 8 करोड़ 70 लाख किसानों को 2000 रुपए की राशि सीधे उनके खाते में डाल दी जाएगी। बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांगों को एक हजार रुपए नियमित पेंशन के अलावा दिए जाएंगे। ये सभी धनराशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर तकनीक से खाते में स्थानांतरित होंगी। इस दायरे में आने वाले करीब तीन करोड़ लोगों को फायदा होगा। इसी तरह उज्ज्वला योजना के तहत आठ करोड़ महिला लाभार्थियों को मुफ्त गैस सिलेंडर मिलेंगे। साथ ही जिन महिलाओं के जनधन योजना के अंतर्गत बैंकों में खाते हैं, उन्हें प्रतिमाह 500 रुपए दिए जाएंगे। इसका लाभ 20 करोड़ महिलाओं को मिलेगा। मनरेगा के दायरे में आने वाले मजदूरों की दिहाड़ी बढ़ाने का भी प्रावधान किया गया है। यह दिहाड़ी पहले 182 रुपए थी, जो अब 202 रुपए कर दी गई है। इससे पांच करोड़ परिवार लाभान्वित होंगे। भवन-सड़क आदि के निर्माण में लगे साढ़े तीन करोड़ पंजीकृत कामगारों के लिए 31000 करोड़ रुपए का प्रबंध किया गया है।

गरीबों को दिए जानेवाले इस मुफ्त अनाज व राहत धनराशि सरकार की उदारता का उज्जवल पक्ष है। क्योंकि यह बिना काम के तीन माह तक लोगों को जिंदा रखने का महाप्रबंध है। इसके बावजूद चंद लोग इस पैकेज का विरोध कर रहे हैं। हालांकि यह समय राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर एकजुटता दिखाने का है।अलबत्ता राहुल गांधी समेत अनेक विपक्षी नेताओं ने इस पैकेज की तारीफ की है। वैसे भी खाद्य सुरक्षा अधिनियम पूरे देश में लागू है। खाद्य सुरक्षा का दायरा करीब 67 फीसदी है, जो 80 करोड़ के करीब ही है। मोदी सरकार ने इन्हीं लोगों के लिए यह बंपर राहत पैकेज दिया है। इसके दायरे में शहरों में रहने वाले 50 प्रतिशत और गांवों में रहनेवाले 75 फीसदी लोग आएंगे।

इस पैकेज की घोषणा से उन लोगों ने राहत महसूस की है, जो तालाबंदी के बाद खाली हाथ हो गए हैं। यदि इन बेरोजगार हुए लोगों के भोजन का प्रबंध सरकार नहीं करती तो भूख और कुपोषण तो बढ़ता ही, देश को रोटी के लिए संघर्ष करती भीड़ का सामना भी करना पड़ता? यह भीड़ अनाज और धन के अभाव में अराजक भी हो सकती थी? क्योंकि बढ़ती आर्थिक विकास दर पर गर्व करनेवाले भारत भी 20 करोड़ से भी ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और बिहार जैसे राज्यों में कुपोषण के हालात कमोवेश अफ्रीका के इथोपिया, सोमालिया और चांड जैसे ही हैं। प्रकृति जन्य स्वभाव के कारण औरतों को ज्यादा भूख सहनी पड़ती है। दुनिया भर में भूख के शिकार लोगों में से 60 फीसदी महिलाएं ही होती हैं। क्योंकि उन्हें स्वयं की क्षुधा-पूर्ति से ज्यादा अपनी संतान की भूख मिटाने की चिंता होती है। इस दृष्टि से सरकार को व्यापक मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत थी, जो उसने इस आर्थिक पैकेज की घोषणा के साथ पूरी कर दी है।

इस पैकेज से उद्योगपति, पूंजीवाद के समर्थक अर्थशास्त्री और बहुराष्ट्रीय कंपनियां विरोध में दिख रही हैं। क्योंकि निकट भविष्य में इस कोरोना के प्रभाव और इस राहत पैकेज से भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगने की बात कही जा रही है। दरअसल ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत की नौ लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। लेकिन सोचने की बात यह है कि वह अर्थव्यवस्था किस काम की जो देश की संकट में आई आबादी के काम न आए? जब भारत में खाद्य सुरक्षा कानून लागू हुआ था तब इस कानून को लागू करने के विरोध में विश्व व्यापार संगठन भी था।

दरअसल, किसी भी देश के राष्ट्र प्रमुख की प्रतिबद्धता विश्व व्यापार संगठन या चंद पूंजीपतियों से कहीं ज्यादा देश के गरीब व वंचित तबकों की खाद्य सुरक्षा के प्रति होती है। मोदी सरकार ने इसी दायित्व का निर्वहन किया है। इसी तरह जेनेवा में 2014 में आयोजित 160 सदस्यों वाले डब्ल्यूटीओ के सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने समुचित व्यापार अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से मनाकर दिया था। इस करार की सबसे महत्वपूर्ण शर्त थी कि संगठन का कोई भी सदस्य देश, अपने देश में पैदा होनेवाले खाद्य पदार्थों के मूल्य का 10 फीसदी से ज्यादा अनुदान खाद्य सुरक्षा पर नहीं दे सकता है। जबकि भारत के साथ विडंबना है कि नए खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश की 67 फीसदी आबादी खाद्य सुरक्षा के दायरे में है। इसके लिए बतौर सब्सिडी जितनी धनराशि की जरूरत पड़ती है, वह सकल फसल उत्पाद मूल्य के 10 फीसदी से कहीं ज्यादा बैठती है। इस लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी का टीएफए करार पर हस्ताक्षर नहीं करना ही देश हित में था। अब फिर मोदी ने जता दिया है कि संकटग्रस्त गरीब उनकी प्राथमिकता में सबसे पहले हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress