गुजरात की प्रयोग शाला में विफल राहुल का हिंदुत्व 

प्रभुनाथ शुक्ल

राजनीतिक लिहाज से अहम गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजों की तस्वीर साफ हो चली है । परिणाम बहुत अप्रत्याशित नहीँ हैं । हिमाचल पर यह बात पहले से साफ रही कि वहाँ भाजपा की सरकार बनेगी और काँग्रेस को सत्ता विरोध का सामना करना पड़ सकता है । गुजरात में भी बहुत उलट फेर की बात नहीँ  दिखी रही थी । यह बात तय थी कि वहाँ भाजपा की सरकार बननी है सीटों के हार – जीत का अंतराल कम हो सकता है , वहीँ हुआ भी है ।

एक तरफ़ भाजपा का जहाँ गुजरात मॉडल और अंतिम दौर में सी – प्लेन था। जबकि दूसरी तरफ़ राहुल गाँधी कि जातीय तिकड़ी, पटेल आरक्षण और तीखे शब्दबाण।  लेकिन गुजरातियों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। गुजरात की जनता ने एक बार फ़िर मोदी में अपना भरोसा जताया है । मोदी ने गुजराती भाषा में जो अपील किया उसका खास असर दिखा। इस चुनाव में कई संदेश पूरी पारदर्शिता से उभरें हैं, जिसकी कभी उम्मीद नहीँ की जा सकती थी। छठवीं बार वहाँ भाजपा की सरकार बनने जा रही है । भाजपा और भगवा का जलवा अभीभी लोगों में  बरकरार है । करिश्माई मोदी का विश्वास अभी टूटा नहीँ है । यहीं कारण है कि जहाँ काँग्रेस का फैलाव सिकुड़ तेजी से सिकुड़ रहा है,  वहीँ भाजपा उसी गति से फैल रही है ।
गुजरात में राहुल गाँधी का नरम हिन्दुत्व और पटेल , दलित की जातिवादी राजनीति धराशायी हो गई। राहुल गाँधी का मंदिर – मंदिर जाना और जनेऊ मंत्र भी मोदी की अपील के आगे बेअसर दिखा। भाजपा का कट्टर हिंदुत्व का जलवा वोटरों को रास आया। लेकिन मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल का जुबानी हमला  काँग्रेस को निगल गया। हार्दिक पटेल की तरफ़ से आरक्षण की आग जलाने की जो  कोशिश की गई उसे गुजरात के पटेल समुदाय ने सिरे से खारिज कर दिया। पिछड़े नेता अल्पेश ठाकुर और दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी कोई गुल नहीँ खिला पाए। इस तिकड़ी के सहारे राहुल गाँधी ने जो भरोसेमंद राजनीतिक गठबंधन तैयार किया था वह फ्लाप साबित हुआ ।  बेहर होता काँग्रेस अकेले दम पर यह चुनाव लड़ती। पटेल आरक्षण को वहाँ की जनसता ने सिर्फ चुनावी सिगुफा समझा।  जहाँ – जहाँ पटेलो का गढ़ था वहाँ भगवा का परचम लहराया है ।पटेल बाहुल्य की तकरीब 40 सीटों में 21 से अधिक पर भाजपा ने जीत दर्ज़ की है ।  कोली जाति की सीटों पर भी आधे- आधे की लड़ाई रही।  शहरी इलाकों अहमदाबाद , सूरत, बड़ोदरा जैसे स्थानों पर भी भाजपा का जलवा कायम रहा है । आदिवासी लोगों के बीच भाजपा अच्छा परफारमेंस किया। जबकि यह काँग्रेस का गढ़ रहा है । लेकिन उत्तर- पश्चिम में यह लाभ काँग्रेस को गया। इस बार कुछ उल्टा चला।
2012 के राज्य विधानसभा को देखें तो बहुत बड़ा अंतर नहीँ दिखता, फासले का अंतर मामूली रहा है । लेकिन चुनाव पूर्व सर्वेक्षण बेमतलब साबित हुए हैं । उस हिसाब से काँग्रेस काफी अच्छा किया है ।  काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने जीएसटी, नोटबंदी जैसे अहम मसले उठाकर नाराज व्यापारियों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। यह माना जा रहा था कि सूरत सूती कपड़े का मैनचेस्टर है। व्यापारी वर्ग जीएसटी को लेकर खफा है ।  लेकिन यहाँ उसका असर कुछ नहीँ दिखा। सूरत में सिर्फ एक सीट काँग्रेस जितने में कामयाब रही, लेकिन जीएसटी का असर नहीँ दिखा।

हालांकि जिस टक्कर की बात कहीं जा रही थी वह इस चुनाव में खूब देखने को मिली।  राहुल गाँधी एक नए रुप में उभर कर सामने आए हैं । वह एक परिपक्व राजनेता के रुप में उभरे हैं । लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमितशाह का जादू अभी गुजरातियों में कायम हैं । 22 साल के बाद भी वहाँ सत्ता विरोधी लहर देखने को नहीँ मिली। जबकि हिमाचल में पांच साल में काँग्रेस वहाँ बिखर गई। वीरभद्र सिंह की दाल नहीँ गल पाई। सत्ता में वापसी का सपना चूर हो गया। हालांकि भाजपा के 22 साल के सत्ता में रहने के बाद कोई खास नाराजगी नहीँ दिखती है ।  उसका  एक फीसदी वोट बढ़ा है जबकि काँग्रेस तीन फीसदी बढ़त बनाने में कायम रही । यह अपने आप में बड़ी बात है। लेकिन मतों के इस अंतराल को राहुल गाँधी सीटों में परिवर्तित करने में नाकामयाब रहे  है । 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 60 फीसदी वोट हासिल किया था । लेकिन इस चुनाव में 49 फीसदी पर आ गई है । हालांकि इसमें कोई शक नहीँ है की भाजपा और मोदी का जलवा आज़ भी कायम हैं । शहरी इलाकों में भाजपा अपना विश्वास ज़माने में कामयाब रही है । लेकिन सौराष्ट्र में कपास किसानों की नाराजगी भाजपा को झेलनी पड़ी है । जबकि उत्तर और मध्य गुजरात में उसका जलवा कायम रहा है।गुजरात की गद्दी छोड़ दिल्ली पहुंचे पीएम मोदी के लिए जहां गुजरात चुनाव प्रतिष्ठा से जुड़ गया था। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए ये किसी परीक्षा से कम नहीं था। मोदी तो पास हो गए लेकिन राहुल को इस चुनौती में हार का सामना करना पड़ा है। असल बात है कि भाजपा और मोदी के पास खोने के लिए कुछ नहीँ है , जबकि काँग्रेस के पास बचाने लायक कुछ नहीँ दिखता। काँग्रेस के सामने भाजपा का विकल्प बनने के बजाय उसे खुस के अस्तित्व को बचाने की चुनौती है । काँग्रेस एक – एक कर सभी गढ़ खोती जा रही है । हिमाचल के बाद कर्नाटक , मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों के चुनाव है । सबसे बड़ी बात 2019 की चुनौती है , लेकिन लगातर हार की वजह से काँग्रेस और उसके कार्यकर्ता निराश हैं । यूपी जैसे राज्य में उसके पास जमीनी स्तर के कार्यकर्ता नहीँ हैं । यह उसके लिए सबसे बड़ा कारण है । राहुल गाँधी की चुनौती अब और अधिक बढ़ गई है । यह उसके लिए मंथन का सवाल है । राहुल गाँधी को जय – पराजय का ख़याल त्याग कर संगठन को नए सिरे से खड़ा करना होगा। चाटुकार नेताओं को किनारे करना होगा। गलत बयानी पर रोक लगानी होगी। भाजपा की नीतियों को मीडिया के बजाय निचले स्तर पर ले जाना होगा। पार्टी की सबसे पहली प्रथमिकता हताशा से बाहर निकल , नई रणनीति से काम करना होगा। हालांकि अभी मोदी और भाजपा का वक्त है । लेकिन काँग्रेस को वक्त से सबक लेना होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,249 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress