कला-संस्कृति

 गुरूनानक देव ने होशंगाबाद में  स्वर्णस्याही से लिखी थी श्री गुरु ग्रंथ साहिब पोथी,आज भी दर्शन को उमड़ती है भीड़ 

आत्माराम यादव पीव 

 ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन, नर्मदापुर तथा आधुनिक काल में होशंगाबाद जिले का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुण्य सलिला माँ नर्मदा की महिमा न्यारी है तभी यहाँ साम्प्रदायिक सदभाव की गौरवमयी मिसालें देखने को मिलती है। सिखों के आदिगुरु श्री गुरूनानक देव भी नर्मदा के महात्म को जानते थे तभी वे अपनी दूसरी यात्रा के समय जीवों का उद्धार करते हुये बेटमा, इंदौर, भोपाल होते हुये होशंगाबाद आये और यहाँ मंगलवारा घाट स्थित एक छोटी से कमरे में 7 दिन तक रूके थे तब उनका यह 73 वां पडाव था तब नर्मदापुर (होशंगाबाद) के राजा अल्प खाँ होशंग थे। गुरूनानक देव जी मंगलवाराघाट नर्मदातट पर रूकने के बाद नरसिंहपुर, जबलपुर में पड़ाव डालते हुये दक्षिण भारत की यात्रा पर निकल गये थे। उक्त यात्रा से पूर्व जब वे यहाँ रूके थे तब उनके द्वारा स्वलिखित गुरुग्रंथ साहिब पोथी लिखी जिसे वे यही छोडकर चले गये थे।

गुरूनानक देव नर्मदापुरम आए-अल्पखाँ होशंग बना शिष्य

गुरूनानकदेव 1418 ईसवी में नर्मदापुरम आये तब उनके आने की खबर राजा अल्प खाँ होशंग को लगी। अल्पखों ने सन 1405 में अपने पिता दिलावर खाँ की हत्या करके यह राजपाट पाया था जिससे वह उस समय बैचेन था और वह गुरूनानकदेव से मिलने पहुँचा तथा उनसे राजा, फकीर और मनुष्य का भेद जानने की इच्छा व्यक्त की। गुरूनानक देव ने राजा से कमर में कोपिन (कमरकस्सा) बांधने को कहा, राजा ने गुरूनानकदेव जी की कमर पर कोपिन बाधा तो उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही क्योंकि कोपिन में गठान तो बंध गयी पर कोपिन में कमर नहीं बंधी। राजा ने तीन बार कोशिश कर गुरूनानक देव की कमर में कोपिन बाधने का प्रयास किया लेकिन वे कोपिन नहीं बांध सके और आश्चर्य व चमत्कार से भरे राजा अल्पखौं गुरूनानक देव के चरणो में गिर गया और बोला मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर ले जिसे अपनी करूणा के कारण गुरूनानक ने स्वीकार कर राजा अल्प खाँ जिन्हे बाद में होशग की उपाधि मिली को अपना शिष्य बना लिया। 17 साल बाद 1435 में राजा अल्प खाँ की मृत्यु के बाद उनका पुत्र गजनी खान यहां का उत्तराधिकारी हो गया था।

नर्मदापुर (होशंगाबाद) में जब गुरूनानक देव आये थे तब वर्ष 1418 चल रहा था। नर्मदा के प्रति उनका आगाध्य आध्यात्मिक प्रेम था इसलिये वे उसके तट पर रूके और उन्होंने कीरतपुर पंजाब में लिखना शुरू की श्रीगुरूग्रथसाहिब पोथी लेखन जो अपनी यात्रा में लिखते रहे वह स्याही के अभाव में स्वर्ण स्याही से पोथी लिखना शुरू की जो आज भी मंगलवारा स्थित गुरूद्वारे में दर्शनार्थ रखी है। पांच दशक पूर्व गुरूनानक देव के द्वारा जिस छोटी सी कोठरी मे अपना समय बिताकर पोथी का लेखन किया गया उस स्थान पर दर्शन करने के लिये अनेक स्थानों से श्रद्धालुओं की भीड जुडती थी परन्तु अब इस नयी पीढी को इसका पता नहीं इसलिये वे इस पावन स्थान के दर्शन करने से चूक गयी है। दूसरा बडा कारण जिले का पुरातत्व विभाग एवं जिला प्रशासन है जिसने अपने नगर की इस अनूठी धरोहर की जानकारी से वंचित रखा हुआ है अलबत्ता सिख सम्प्रवदाय के लोग गुरूनानक देव की जयंती के 4 दिन पूर्व से उत्सव मनाकर शहर में जुलुस निकालने की परम्परा का निर्वहन करते आ रहे है।

नानकदेव जी की हस्तलिखित इस श्रीगुरूग्रंथ साहिब पोथी को पिछले 500 सालों से बनापुरा का एक सिख परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी दर्शन कर पाठ करने के साथ इस अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखते आ रहा है था और जिसकी जानकारी स्थानीय नागरिकों को थी किन्तु सिख समाज को नहीं थी जैसे ही एक स्थानीय सिख कुन्दनसिंह को जानकारी हुई तो उन्होने गुरूनानक देव की हस्तलिखित इस धरोहर को अपने पास सुरक्षित रख लिया और 14 अप्रेल 1975 को उसकी पवित्र अर्चना की और आमला से आये सरदार सूरतसिह ने गुरूग्रथ साहिब को पहली माला अर्पित की तब कुन्दनसिंह चडडा और आईएस लाम्बा उस समय उपस्थित थे। तभी से गुरुग्रंथसाहिब को उसी स्थान पर जहाँ नानकजी ठहरे थे स्थापित कर दिया गया और उसके बाद यहाँ प्रतिदिन नियमित पूजा अर्चना शुरू हो गयी और शब्दकीर्तन एव लगर इत्यादि आयोजन शुरू हुये जो क्रम अब तक जारी है

आत्माराम यादव पीव