5 नवम्बर पर विशेष: –
मृत्युंजय दीक्षित
सिख समाज के महान संत व गुरु गुरुनानक देव का जन्म 1469 ई में रावी नदी के किनारे स्थित राय भोई की तलवंडी में हुआ था जो अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। यह स्थान देश के विभाजन के पश्चात पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में चला गया। इनके पिता मेहता कालू गांव के पटवारी थे और माता का नाम तृप्ता देवी था। इनकी एक बहन भी थी जिनका नाम नानकी था। बचपन से ही नानक में प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे किन्तु उसी समय से वे सांसारिक चीजों के प्रति उदासीन रहते थे। पढ़ाई- लिखाई में इनका मन कभी नहीं लगा। सात वर्ष की आयु में गांव के विद्यालय में जब अध्यापक पंडित गोपाल दास ने पाठ का आरंभ अक्षरमाला से किया तो बालक नानक ने अध्यापक महोदय से अक्षरमाला का अर्थ पूछ लिया। अध्यापक के कहने पर नानक ने प्रत्येक अक्षर का अर्थ लिख दिया। यह बालक नानक के द्वारा दिया गया पहला दैविक संदेष था। लज्जित अध्यापक ने नानक के पैर पकड़ लिये।
कुछ समय बाद उन्होंने विद्यालय जाना ही छोड़ दिया।अध्यापक स्वयं नानक को घर छोड़ने आये। ऐसी कई चमत्कारिक घटनाएं घटित हुयीं जिससे गांव के लोग नानक को दिव्य शक्ति संपन्न मानने लगे। बचपन से ही इनके प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों में इनकी बहन नानकी तथा गांव के शासक प्रमुख थे। कहा जाता है कि 14 से 18 वर्ष के बीच गुरुदासपुर जिले के बटाला के निवासी भाईमुला की पुत्री सुलक्खनी के साथ नानक का विवाह हुआ। उनकी पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिया किन्तु नानक पारिवारिक बन्धनों में नहीं जकड़े। उनके पिता को भी शीघ्र ही समझ में आ गया कि विवाह के बाद भी नानक अपने लक्ष्य से पथभ्रष्ट नहीं हुए थे। वे शीघ्र ही अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर अपने चार शिष्यों मरदाना, लहना, नाला और रामदास को लेकर यात्रा के लिए निकल पड़े अब उनका परिचय गुरु नानक देव के रूप में हो चुका था।
गुरुनानक देव ने संसार के दुखों को घृण, झूठ और छल – कपट से परे होकर देखा और इस धरती पर मानवता के नवीनीकरण के लिए निकल पड़े। वे सच्चाई की मशाल लिए, अलौकिक प्यार, मानवता की शांति और खुशी के लिए चल पड़े। वे उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम चारों तरफ गये और हिंदू ,मुसलमान, बौद्धों, जैनियों, सूफियों, योगियों और सिद्धों के विभिन्न केद्रों का भ्रमण किया। उन्होंने अपने मुसलमान सहयोगी मर्दाना जो कि एक भाट था के साथ पैदल यात्रा की। उनकी यात्राओं को पंजाबी में उदासियां कहा जाता है। इन यात्राओं में आठ वर्ष बिताने के बाद वे घर वापस लौटे।
गुरुनानक एक प्रकार से सर्वेश्वरवादी थे। उनके दर्शन में वैराग्य तो है ही साथ ही उन्होने तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक स्थितियों पर भी नजर डाली है। संत साहित्य में नानक ने नारी को उच्च स्थान दिया है। इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है। कुछ लोगों ने ईर्ष्या वश तत्कालीन शासक इब्राहीम लोधी को उनके विरुद्ध भड़का दिया जिसके कारण कई दिनों तक कैद में भी रहे। कुछ समय बाद जब पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम लोधी पराजित हुआ तब गुरुनानक कैद से मुक्त हुए।
जीवन के अंतिम दिनों में इनकी ख्याति बढ़ती चली गयी तथा विचारों में भी परिवर्तन हुआ। उन्होने करतारपुर नामक एक नगर भी बसाया था। अपने दैवीय वचनों से उन्होंने उपदेश दिया कोई भी धर्म जो अपने मूल्यों की रक्षा नहीं करता वह आने वाले समय में अपना अस्तित्व खो देता है । उनके संदेश का मुख्य तत्व इस प्रकार था – ईश्वर एक है, ईश्वर ही प्रेम है, वह मंदिर में है, मस्जिद में है और चारदीवारी के बाहर भी वह विद्यमान है। ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य समान हैं। वे सब एक ही प्रकार जन्म लेते हैं और एक ही प्रकार अंतकाल को भी प्राप्त होते हैं। ईश्वर भक्ति प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उसमें जाति- पंथ,रंगभेद की कोई भावना नहीं है। 40वें वर्ष में ही उन्हें सतगुरु के रूप में मान्यता मिल गयी।उनके अनुयायी सिख कहलाये। उनके उपदेशों के संकलन को जपुजी साहिब कहा जाता है। प्रसिद्ध गुरु ग्रंथसाहिब में भी उनके संदेश हैं।सभी सिख उन्हें पूज्य मानते हैं और भक्तिभाव से इनकी पूजा करते हैं।
कवि ननिहाल सिंह ने लिखा है कि, “वे पवित्रता की मूर्ति थे उन्होंने पवित्रता की शिक्षा दी। वे प्रेम की मूर्ति थे उन्होंने प्रेम की शिक्षा दी। वे नम्रता की मूर्ति थे, नम्रता की शिक्षा दी। वे शांति और न्याय के दूत थे। समानता और शुद्धता के अवतार थे। प्रेम और भक्ति का उन्होने उपदेश दिया।
गुरुनानक देव जी के दर्शन, उनकी शिक्षाओं, ब्रह्माण्ड और आकाशगंगा जैसे विषयों पर उनकी गहरी अंतर्दृष्टि के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। 500 साल पहले आकाशगंगा की जानकारी लाखों चन्द्रमाओं सूर्य और ग्रहों से घिरी पृथ्वी के उनके चित्रण ने उस समय के लगभग सभी विद्वानों को अचंभित किया था। गुरुनानक देवजी ने समाज को महिलाओं का सम्मान करने की शिक्षा व उपदेश दिये। संत गुरुनानक देव मानव रूप में एक ईश्वरीय आत्मा थे।
प्रेषक- मृत्युंजय दीक्षित