ज्ञानवापी: योगीजी का आग्रह मानकर सद्भाव बनाए मुस्लिम समाज 

दुनिया गोल घूम रही है और हिंदू मुस्लिम सम्बन्ध भी अपनी परिधि पर अयोध्या की एक परिक्रमा लेकर काशी की दूसरी परिक्रमा की ओर अग्रसर हैं. एक दृष्टि से देखा जाए तो पिछले कुछ दशकों की अपेक्षा भारत में हिंदू मुस्लिम परस्पर दंगो में टकरावों में और उलझनों में कमी आई है. यदि हम कुछ सेकुलरों, कांग्रेसियों, कट्टरवादी मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वालों की दृष्टि को छोड़ दें तो भारत में हिंदू मुस्लिम सम्बन्ध एक नई दिशा की ओर अग्रसर हैं. दंगो के इतिहास वाले अनेक क्षेत्रों में दंगों की आवृत्ति कम हुई है और कहीं कहीं तो समाप्त ही हो गई है. इस सुखद स्थिति को दोनों ही पक्षों ने नए राजनीतिक वातावरण के प्रभाव में निर्मित किया है. सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का उद्घोष पींगे अपनी बढ़ा रहा है. नए भारत में यह एक सुखद संकेत है. भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुस्लिम समाज से ज्ञानवापी का हल निकालने व एतिहासिक भूल को सुधारने की आग्रह करना भी एक सुदृढ़ किंतु संवेदनशील लोकतंत्र का प्रतीक है. 

                         इन सब बातों का उल्लेख यहां इसलिए हो रहा है क्योंकि हिंदू मुस्लिम विषयों का एक बड़ा काशी का ज्ञानवापी मामला पुनः न्यायालय की तारीखों में गति से आगे बढ़ रहा है.  ज्ञानवापी मामले में प्रयागराज उच्च न्यायालय ने अपनी कार्यवाही कर निर्णय ३ अगस्त को सुनाना तय किया है. ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने एएसआई सर्वे के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है. लगभग यही प्रक्रिया अयोध्या में भी हुई थी. अयोध्या में तो एक बार मुस्लिम पक्ष की ओर से यहां तक कहा गया था कि यदि पुरातात्विक सर्वेक्षण में मंदिर के चिन्ह और अंश मिलते हैं तो मुस्लिम पक्ष इस भूमि पर से अपना दावा न्यायालय में वापिस ले लेगा किंतु सैकड़ों हजारों पुरातात्विक शिलाएं और शिलालेख मिलने के बाद भी इस वचन को निभाया नहीं गया और अनावश्यक ही कट्टरपंथियों ने देश में हिंदू मुस्लिम सद्भाव को दशकों तक सूली पर लटकाए रखा. 

              इस विषय में हमें एक बार सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण व उसमें देश के प्रथम गृहमंत्री लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल की भूमिका का पुनर्स्मरण करना होगा. यह ध्यान करना होगा कि वल्लभभाई की दृष्टि में वे एक मंदिर मात्र का पुनर्निर्माण नहीं कर रहे थे बल्कि वे एक विदेशी आक्रान्ता द्वारा देश के एक महत्वपूर्ण मानबिंदु के अपमान का व विदेशी शक्ति का प्रतिकार कर रहे थे. सोमनाथ मंदिर का एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा पुनर्निर्माण कराया जाना वस्तुतः भारतीय स्वाभिमान को पुनर्स्थापित करने का एक बहुआयामी प्रयास था. राष्ट्र की यह मान्यता थी कि यह गजनवी द्वारा किया गया सोमनाथ का मंदिर विध्वंस राष्ट्र की संपत्ति को लूटने के साथ साथ हमारे स्वाभिमान, आत्माभिमान और राष्ट्राभिमान तीनों को दलित और  दमित करने का दुष्प्रयास था. लौहपुरुष कीई मान्यता थी कि विदेशी आक्रमणकारी के इस दुष्प्रयास के चिन्हों को राष्ट्र की आत्मा से मिटाना ही होगा, राष्ट्रगौरव जगाना ही होगा, माथे के इस कलंक को हटाना ही होगा. इसी दृष्टि से अब मुस्लिम समाज को स्वयं आगे आकर मथुरा के ज्ञानवापी विषय में वहां सम्मानपूर्वक मंदिर पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए. 

                 अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के समय में यह स्पष्ट देखने में आया था कि भारत का आम मुसलमान मंदिर की भूमि पर से अपना दावा छोड़ना चाहता है और इस विवाद से मुक्ति चाहता है. कुछ कट्टर इस्लामिक संगठन और कट्टर नेता (जिनकी राजनीति ही हिंदू मुस्लिम टकराव के आधार पर चलती है) ऐसा नहीं चाहते थे. भारत के  कई महत्वपूर्ण राजनैतिक दलों सहित कांग्रेस भी अयोध्या विवाद को सुलझने देना नहीं चाहते थे. कांग्रेस ने तो इन सेकुलर दलों का प्रतिनिधित्व करते हुए न्यायालय में अयोध्या सम्बंधित मामले के हल होने के मार्ग में वकील तक खड़े कर दिए थे. बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने तो सुप्रीम कोर्ट के चर्चा वाले प्रस्ताव को लगभग नकार ही दिया है और एक और हर जगह दूध में दही डालने वाले मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवेसी ने भी न्यायालय की पहल को नकार दिया था. ये सब अब भी यही कर रहे हैं. यह स्वाभाविक भी है यदि इन नेताओं ने और इन जैसे अन्य कट्टर और सियासती भूखे मुस्लिम नेताओं ने यदि अड़ंगे न डाले होते तो अमनपसंद आम मुसलमान कभी का इस मुद्दे पर हिन्दू समाज के साथ एक पंगत एक संगत में बैठ चुका होता. भारतीय मुस्लिमों को यह बात विस्मृत नहीं करना चाहिए की औरंगजेब द्वारा छठी शताब्दी के मंदिर को तोड़कर उस पर जो मस्जिद बनाई गई है वह मूलतः तो एक मंदिर ही है. भारतीय मुस्लिम समाज को यह भी स्मरण में रखना चाहिए की हम सभी भारतीयों के लिए औरंगजेब महज एक विदेशी आक्रमणकारी व लूटेरा था. भारतीय मुस्लिमों की रगो में औरंगजेब का रक्त नहीं बल्कि उनके भारतीय (पूर्व हिंदू) पुरखों का रक्त बहता है. भारतीय मुसलमान उस समाज से हैं जिनके पुरखों ने कभी बलात होकर, कभी मजबूर होकर, कभी भयभीत होकर तो कभी माँ, बेटी, बहु की इज्जत व सम्पत्ति की रक्षा करने के उद्देश्य से विवश होकर इस्लाम ग्रहण किया था. नब्बे प्रतिशत भारतीय मुस्लिम अरबी फ़ारसी वंशज न होकर डीएनए से तो हिंदू ही है. जब हमारें पुरखे एक हैं तो आज हमें हमारा वर्तमान और भविष्य भी एक ही होना चाहिए. अयोध्या विवाद के समय न्यायालय ने कई बार ऐसे अवसर निर्मित किए थे जब मुस्लिम समाज आगे आकर अयोध्या की विवादित भूमि को अपने दोनों हाथों से हिंदू समाज को आदरपूर्वक दे सकता था और एक नया इतिहास लिख सकता था. ऐसे प्रयास हुए भी थे. मुस्लिम समाज में इस प्रकार की चर्चाएं चली भी थी किंतु कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों ने अमनपसंद मुस्लिमों के ये सद्प्रयास सफल नहीं होने दिए थे. कट्टर मुस्लिम हावी हुए और अमनपसंद मुस्लिम पराजित हो गया था. अब पुनः इतिहास ने मुस्लिम समाज को यह अवसर प्रदान किया है कि वह एक विदेशी आक्रमणकारी द्वारा विध्वंस किये मंदिर के विवादित स्थान को हिंदुओं को वापिस सौंपकर एक नजीर पेश करे. यद्दपि इस मार्ग में अड़चने अनेक हैं, कई कट्टर मुस्लिम नेता, हिन्दुओं का भय बताते हुए मुस्लिम नेता और कई अवसरवादी मुस्लिम नेता अपनी नेतागिरी की दूकान बंद होनें के डर से इस मार्ग में रोड़े अटकाएंगे. तथापि विश्वास है कि अमनपसंद भारतीय मुसलमान इस बार इन दोगले कट्टर नेताओं की बातों में न आकर सम्पूर्ण विश्व के सामनें भारतीय मुस्लिमों की एक नई पहचान व नई तहजीब की नजीर पेश करेगा. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,270 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress