कविता

है कहर बाहर

क्यों घरों को छोड़कर बाहर निकलते।
है कहर बाहर नहीं फिर क्यों संभलते।

सड़क गलियों से अभी तक प्यार क्यों है।
मिल रहीं बीमारियाँ जब राह चलते।

हो गए बीमार तो फिर क्या करोगे?
रोओगे रह जाओगे फिर हाथ मलते।

भीड़ में जाना मुनासिब जब नहीं है,
क्यों नहीं यह बात अब तक भी समझते।

मास्क बांधो और छह फुट दूरियाँ हों,
क्यों नहीं पालन नियम का आप करते।