कविता

जय हो पण्डित लेखराम

-विमलेश बंसल ‘आर्या’-  poetry

जन्म लिया था रावलपिंडी, पाढीवार के कुहुटा ग्राम-2।

तारा का अनमोल सितारा, जय हो पंडित लेखराम-2॥

1. थे पंडित, विद्वान, साहसी, सच्चे देशभक्त प्यारे।

तारा सिंह के पुत्र प्यारे, मां की आँखों के तारे।

 संस्कृत, हिंदी में पारंगत, फ़ारसी, उर्दू बनी हमांम॥

तारा का अनमोल सितारा…

2 एक दिवस पढ़ रहे मदरसे, घटना घटित हुई न्यारी।

मिली न छुट्टी घर जाने को, मौलवी क्रूर हुए भारी।

मां गंगा जल पिया हो जिसने, क्यों पिये मुगलों का जाम॥

तारा का अनमोल सितारा…

3 मिली नौकरी पुलिस में उनको, उत्तम सेवा देते थे।

लेकिन अन्यायों के आगे, सिर न कभी झुकाते थे।

छोड़ दिया पद उच्च किया कद, पर न झुके, झुका दिया अवाम॥

तारा का अनमोल सितारा…

4 पढ़ी पुस्तकें मुंशी जी की, आर्य समांज की ओर बढ़े।

दयानंद के सच्चे शिष्य बन, हिंदू हित के लिये लड़े।

कादियान, पेशावर आदि, बना दिये आर्यों के धाम॥

तारा का अनमोल सितारा…

5 करी न परवाह स्वयं पुत्र की, मां से सुने उलाहने थे।

भारत मां की रक्षा के हित, लाखों पुत्र बचाने थे।

शुद्ध किये मलकाने सारे, सेवा दी बढ़-चढ़ निष्काम॥

तारा का अनमोल सितारा…

6 अंतिम घटना बड़ी दर्दमय, जीवन ने अंगड़ाई ली।

 चाकू खाकर चाकू छीना, मुगलों से लड़ी लड़ाई थी।

लेख लिख दिया विश्व पटल पर, जीत लिया जीवन संग्राम॥

तारा का अनमोल सितारा…

7 आओ हम सब नमन करें, पंडित जी के बलिदान को।

भारत मां की रक्षा के हित, किया न्यौछावर प्राण को।

विमल चलें उन पद चिह्नों पर, करने उनको कोटि प्रणाम॥

तारा का अनमोल सितारा…