हरियाली तीज

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मेहंदी मंडित तेरी हथेली

हाथों में चूड़ी  अलबेली,

लाल हरी और नीली-पीली

झूलन सावन चली सहेली।

 

तेरी कुन्दन सी है काया

रूप कहूँ या कह दूँ माया

नेह सभी का तूने पाया

सुख की है बस तुझपर छाया ।

 

मेघा गरजे ,जल बरसाया

बिजली चमकी , शोर मचाया

साजन ने जब अंग लगाया

सावन तीज त्यौहार लो आया।

 

सखियाँ झूला तुझे झुलाएँ

दो आगे , दो पीछे  जाएँ

ननद भौजाई गीत सुनाएँ

सखी सहेली साथ निभाएँ।

 

तेरी नाक का है जो मोती

कैसी  है  ये  उसकी  जोती

सुमन सुगन्धित हार पिरोती

मांगें सखियाँ सभी मनौती।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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