खुशहाली की राह दिखाती हर्बल खेती

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दुनियाभर में हर्बल पदार्थों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अमेरिका में 33 फीसदी लोग हर्बल पद्धति में विश्वास करते हैं। अमेरिका में आयुर्वेद विश्वविद्यालय खुल रहे हैं और जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, नीदरलैंड, रूस और इटली में भी आयुर्वेद पीठ स्थापित हो रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में 62 अरब अमेरिकी डालर के मूल्यों के हर्बल पदार्थों की मांग है और यह मांग वर्ष 2050 तक पांच ट्रिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। एक अनुमान के मुताबिक चीन द्वारा सलाना करीब 22 हजार करोड़ रुपए के औषधीय पौधों पर आधारित पदार्थों का निर्यात किया जा रहा है. रसायन और उर्वरक मंत्रालय में राज्यमंत्री श्रीकांत जेना के मुताबिक भारतीय उद्योग मानीटरिंग केन्द्र, नवंबर 2009 के अनुसार 2009-10 के दौरान औषधों की बिक्री में 8.7 प्रतिशत वृध्दि की आशा है। 2007-08 के दौरान औषध बाजार का कुल बाजार आकार 78610 करोड़ रुपए था। भावी वर्षों के लिए बाजार के आकार का कोई आधिकारिक प्राक्कलन नहीं किया गया है। लेकिन, चिंता की बात यह है कि औषधीय पौधों की बढ़ती मांग के कारण इनका अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिसके चलते हालत यह हो गई है कि औषधीय पौधों की अनेक प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं।

औषधीय पौधों के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए नवम्बर, 2000 में केन्द्र सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत मेडिसनल प्लांट बोर्ड का गठन किया था। इस बोर्ड ने भारतीय जलवायु के मद्देनजर 32 प्रकार के ऐसे औषधीय पौधों की सूची बनाई है, जिनकी खेती करके किसान ज्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं। इस प्रकार इन औषधीय पौधें की एक ओर उपलब्धता बढ़ेगी तो दूसरी ओर उनके लुप्त होने का खतरा भी नहीं रहेगा। बढ़ती आबादी और घटती कृषि भूमि ने किसानों की हालत को बद से बदतर कर दिया है। लेकिन, ऐसी हालत में जड़ी-बूटी आधारित कृषि किसानों के लिए आजीविका कमाने का एक नया रास्ता खोलती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में आंवला, अश्वगंधा, सैना, कुरु, सफेद मूसली, ईसबगोल, अशोक, अतीस, जटामांसी, बनककड़ी, महामेदा, तुलसी, ब्राहमी, हरड़, बेहड़ा, चंदन, धीकवर, कालामेधा, गिलोय, ज्वाटे, मरूआ, सदाबहार, हरश्रृंगार, घृतकुमारी, पत्थरचट्टा, नागदौन, शंखपुष्पी, शतावर, हल्दी, सर्पगंधा, विल्व, पुदीना, अकरकरा, सुदर्शन, पुर्नवादि, भृंगराज, लहसुन, काला जीरा और गुलदाऊदी की बहुत मांग है।

भारत में हरियाणा एक ऐसा राज्य है जहां सरकार औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने पर खास जोर दे रही है। राज्य में शामलात भूमि पर औषधीय पौधे लगाए जा रहे हैं। इससे पंचायत की आमदनी में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ किसानों को औषधीय पौधों की खेती की ओर आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी। राज्य के यमुनानगर जिले के चूहड़पुर में चौधारी देवीलाल हर्बल पार्क स्थापित किया गया है। इसका उद्धाटन तत्कालीन राष्टपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था।

काबिले गौर है कि डा. कलाम ने भी अपने कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन में औषधीय पौधों का बगीचा तैयार करवाया था। हरियाणा में परंपरागत नगदी फसलों की खेती करने वाले किसानों का रुझान अब औषधीय पौधों की खेती की तरफ बढ़ रहा है। कैथल जिले के गांव चंदाना निवासी कुशलपाल सिरोही अन्य फसलों के साथ-साथ औषधीय पौधों की खेती भी करते हैं। इस समय उनके खेत में लेमन ग्रास, गुलाब, तुलसी, अश्वगंधा, सर्पगंधा, धतूरा, करकरा और शंखपुष्पी जैसे अनेक औषधीय पौधे लगे हैं। उनका कहना है कि औषधीय पौधे ज्यादा आमदनी देते हैं। गुलाब का असली अर्क तीन से चार लाख रुपए प्रति लीटर बिकता है।

आयुर्वेद की पढ़ाई कर रहे यमुनानगर जिले के गांव रुलेसर निवासी इरशाद अहमद ने अपने खेत में रुद्राक्ष, चंदन और दारूहरिद्रा के अनेक पौधे लगाए हैं। खास बात यह है कि जहां रूद्राक्ष के वृक्ष चार साल के बाद फल देना शुरू करते हैं, वहीं उनके पौधे महज ढाई साल के कम अरसे में ही फलों से लद गए हैं। इरशाद अहमद के मुताबिक रूद्राक्ष के पौधों को पालने के लिए उन्होंने देसी पद्धति का इस्तेमाल किया है। उन्होंने गोबर और घरेलू जैविक खाद को पौधों की जड़ों में डाला और गोमूत्र से इनकी सिंचाई की। दीमक व अन्य हानिकारक कीटों से निपटने के लिए उन्होंने पौधों पर हींग मिले पानी का छिड़काव किया।

रूद्राक्ष व्यापारी राजेश त्रिपाठी कहते हैं कि रूद्राक्ष एक फल की गुठली है। फल की गुठली को साफ करने के बाद इसे पालिश किया जाता है, तभी यह धारण करने योग्य बनता है। गले का हार या अन्य अलंकरण बनाने के लिए इन पर रंग किया जाता है। आमतौर पर रूद्राक्ष का आकार 1.3 से.मी. तक होता है। ये गोल या अंडाकार होते हैं। इनकी कीमत इनके मुखों के आधार पर तय होती है। अमूमन रूद्राक्ष एक से 21 मुख तक का होता है। लेकिन 1, 18, 19, 20, और 21 मुख के रूद्राक्ष कम ही मिलते हैं। असली रूद्राक्ष की कीमत हजारों से लेकर लाखों रूपए तक आंकी जाती है। इनमें सबसे ज्यादा कीमती रूद्राक्ष एक मुख वाला होता है।

रूद्राक्ष की बढ़ती मांग के चलते आजकल बाजार में नकली रूद्राक्षों की भी भरमार है। नकली रूद्राक्ष लकड़ी के बनाए जाते हैं। इनकी पहचान यह है कि ये पानी में तैरते हैं, जबकि असली रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है। गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति से रूद्राक्ष का गहरा संबंध है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसे बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। यहां के समाज में मान्यता है कि रूद्राक्ष धारण करने से अनेक प्रकार की बीमारियों से निजात पाई जा सकती है। रूद्राक्ष के प्राकृतिक वृक्ष उत्तर-पूर्वी भारत और पश्चिमी तटों पर पाए जाते हैं। नेपाल में इसके वृक्षों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये मध्यम आकार के होते हैं। मई और जून के महीने में इस पर सफेद फूल लगते हैं और सितम्बर से नवम्बर के बीच फल पकते हैं। अब मैदानी इलाकों में भी इसे उगाया जाने लगा है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि औषधीय पौधों की खेती कर किसान प्रति एकड़ दो से ढाई लाख रुपए सालाना अर्जित कर सकते हैं। बस, जरूरत है किसानों को थोड़ा-सा जागरूक करने की। इसमें कृषि विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। गांवों में कार्यशालाएं आयोजित कर किसानों को औषधीय पौधों की खेती की जानकारी दी जा सकती है। उन्हें बीज व पौधे आदि उपलब्ध कराने के अलावा पौधों की समुचित देखभाल का तरीका बताया जाना चाहिए। लेकिन इस सबसे जरूरी यह है कि किसानों की फसल को सही दामों पर बेचने की व्यवस्था करवाई जाए।

-फ़िरदौस ख़ान

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

2 COMMENTS

  1. firdos g namaste, badhia lekh likha. shayad aap bhul gai hongi, jab aap hisar bhaskar me thi, tab ma panipat bhaskar me tha. kai bar news ke sambandh me baat bhi hui thi. lekh ke liye saadhuwad.

  2. एक नम्र सुझाव देना चाहता हूं। भारतके व्यवसायी निवेशक आयुर्वैदिक उद्यानोंमे निवेश के लिए शीघ्रतासे सोचकर योजना बनाते हुए आगे बढे। और साथमे परदेशमे ( अमरिकामे) उसका प्रचार और जानकारी भी फैलाए। अथ से इति तक, एक पूरा जाल खडा करे। योग और ध्यान (मेडिटेशन), भारतका होते हुए भी, ९५ % उद्योग अमरिकीयोंके हस्तगत है। भारत इसपर कितनी मुद्रा कमा सकता था? पर ना हो सका।गलती हमारी है, शायद विश्वास की कमी है। अब, इस बार, अवसर को पहिचानो।औषधियों के पौधे एक योजनाबद्ध रीतिसे लगाए, ताकि उनकी आपूर्ति होती रहे।सर्वनाश ना करें।और एक हि संकेत फिरसे दोहराता हूं, इस अवसरसे लाभ ले, जनता को नौकरीयां, और व्यवसाय बडे पैमानेपर खडा करे।भारतकी जनताकी भलाई भी होती रहे।याद आता है, चिन्मयानंदजी ने कहा था, कि मुझसे योग, ध्यान सीखॊ; नहीं तो कल आपको योगी टॉम, डिक या हॅरी से सीखना पडेगा। यहां ऐसाहि हो रहा है। सू्ज्ञके लिए संकेतहि पर्याप्त है।॥शुभस्य शीघ्रम्‌॥फ़िरदौस जी समयोचित लेखके लिए धन्यवाद।

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