कविता

हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये

हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये

तेरी वंदना कर सकु मुझे दो क्षण तो दीजिये

दो पुष्प चरणों में धरू इंतजाम ऐसा कीजिये  

अवशेष नही हो वंदना मेरी अर्चना पूरी कीजिये

कभी दो पग चलकर,मैं मंदिर न तेरे आया

दो नयनों की करुण व्यथा,मैं तुझे सुना न पाया

अश्रु भरे इन नयनों की,लाज आज रख लीजिये

हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये

इस नश्वर काया ने,मुझे खूब भरमाया

यौवन की मादकता ने,खुद से दूर कराया

लेखनी को शस्त्र बना, जनगण को जोड़ता

कलम की गरिमा रहे,अन्याय का गला मरोड़ता

पीव काल के कपाल पर  मैं प्रलयंकर सा डोलता

मेरे चित्त बिराजी शारदे,माँ अभय आज कीजिये

हे वीणापाणि आज इतना तो कीजिये ।  

आत्‍माराम यादव पीव