छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षाः वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्‍यकता

(छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर विशेष)

निरंजन कुमार

छत्तीसगढ़ राज्य इन दिनों अपनी स्थापना दिवस मना रहा है। एक नवंबर से सप्ताह भर तक राज्य के प्रगति की गाथाएं सुनाई जाएंगी। राज्य की जनता को विकास की उन झलकियों से अवगत कराया जाएगा जो उन्होंने कभी देखा ही नहीं है। स्थापना से लेकर अब तक की वास्तविकता पर नजर दौड़ाएं तो हमें कुछ और ही प्रतीत होता है। यहां अभी ज्यादा कुछ हरा-भरा नहीं हैं। एक तो नक्सलवाद सारे विकास पर भारी दिख रहा है वहीं कई और समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं जो वास्तविकता की आईना दिखाती हैं। खासकर वनांचल क्षेत्र में स्थिति जस की तस बनी हुई हैं। न हीं वहां ढांचागत सुधार दिख रहा है और न ही षिक्षा के क्षेत्र में विशेष प्रगति नजर आ रही है।

यदि हम प्रदेश के वनांचल क्षेत्र में उच्च षिक्षा की बात करें तो परिदृश्‍य अभी भी अंधकारमय दिखता हैं। नए विश्‍वविद्यालय और नई संस्थाओं की स्थापना के साथ व्यापक योजनाएं शुरू करने के क्षेत्र में राज्य सरकार ने कई मुकाम छूए हैं परंतु अब भी इस क्षेत्र में अषिक्षा का अंधेरा कायम है। क्षेत्र के लोग षिक्षा की अहमियत तो जानते हैं लेकिन रोजी-रोटी की जुगाड़ उनके जीवन की पहली प्राथमिकता बनी हुई है। उनके लिए शिक्षा न तो नौकरी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है न ही यह अन्य अधिकार पाने का हथियार बन सकी है। डिग्री पाने वाले के आंकड़े जरूर बढ़े हैं लकिन उसके अनुपात में लोग षिक्षित व प्रबुद्ध नहीं हुए हैं। शिक्षा का अधिकार क्या होता है, इसके बारे में शायद ही कोई लोग बता पाने में सक्षम हैं। अपने अधिकारों को पाने के लिए सरकार ने उन्हें सूचना का अधिकार प्रदान किया है लेकिन उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं है। दिल्ली से चली यह जानकारी व सुविधा वनांचल क्षेत्र तक अभी नहीं पहुंची है। सरकारी आंकड़ों के खेल में न जाएं तो हमें यह मानकर चलना होगा कि यहां की उच्च षिक्षा की स्थिति बदतर से कम नहीं है। अभी बहुत कुछ नहीं सबकुछ किया जाना बाकी है।

शिक्षा विशेषज्ञों की सलाह पर वनांचल क्षेत्र में कई शैक्षणिक योजनाएं चली हैं पर उसे ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई है। हाल ही में एक अखबार में रिपोर्ट आई थी कि जनजातीय क्षेत्र में कंप्यूटर की शिक्षा के नाम पर करोड़ों फूंक दिए गए पर सुविधा पाए विद्यार्थियों ने माउस चलाने के अलावा कुछ नहीं सीखा। यदि हम वनांचल क्षेत्र की जमीनी सच्चाई देखें तो वे पढ़ाई इसलिए कर रहे हैं क्योंकि लोगों को पढ़ते देखा है। इधर के अधिकतर विद्यार्थियों के लिए शिक्षाकर्मी सबसे बड़ा पद बना हुआ है। उससे आगे सोचने की क्षमता उनमें न के बराबर है। अच्छी प्रतिभाएं भी शिक्षाकर्मी बनकर अपने को समेट ले रही हैं। विद्यार्थी पढ़ने को लालायित हैं परंतु गांव व कस्बों की परंपरा सकारात्मक नहीं है। उन्हें सही गाइडेंस नहीं मिल पा रहा है। क्या पढ़ाई करे यह बताने वाला न तो उनके परिवार में कोई है न ही समाज में। क्योंकि अधिकतर विद्यार्थियों के माता-पिता किसान हैं। वे अपने बच्चों को शिक्षा के बारे में कुछ भी बता पाने में अक्षम होते हैं। नतीजतन विद्यार्थियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। विद्यार्थियों को राह दिखाने वालों की बेहद कमी है। उनके लिए बी.ए, बी.एस.सी, बी.कॉम, एम.ए, एम.एस.सी और बी.एड ही सबसे उच्च डिग्री बनी हुई है। कैरियर का चुनाव करते समय रूचि, अभिक्षमता आदि का कोई ख्याल नहीं रखा जाता। इंजीनियरिंग व मेडिकल की पढ़ाई को कठिन मानकर विद्यार्थी पहले ही अपने को इससे किनारा कर लेते हैं। लाॅ व कंप्यूटर को अच्छा मानते हैं परंतु इस क्षेत्र में पढ़ाई कहां व कैसे करें इसके बारे में उनके पास ज्यादा जानकारियां नहीं होती हैं। सूचनाओं के अभाव में क्षेत्र में स्थापित आई.टी.आई की डिग्रियां भी अर्थहीन साबित हो रही हैं। नब्बे फीसद विद्यार्थियों को अभी भी यह नहीं मालूम कि रिसर्च, एम.बी.ए, एम.सी.ए, बी.बी.ए, लाइब्रेरी साइंस, मीडिया इत्यादि क्षेत्र में भी अच्छे कैरियर बनाए जा सकते हैं।

जहां तक क्षेत्र में सुविधाओं का सवाल है वर्तमान स्थिति में उसे पर्याप्त कहा जा सकता है। लगभग सभी क्षेत्र में तहसील व ब्लॉक स्तर पर कोई न कोई महाविद्यालय स्थापित हैं। जिला मुख्यालय में तो हर तरह की पढ़ाई के केंद्र खुल गए हैं। सरकारी व प्राइवेट नौकरी की भी कोई कमी नहीं कही जा सकती है। इधर स्थानीय स्तर पर भी पद भरे जा रहे हैं। स्‍कॉलरशिप देने के लिए कई संस्थाएं भी सामने आई हैं। यदि कमी है तो जागरूकता की। उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता अपेक्षा से बहुत कम है। इस ओर सबसे पहले काम करने की जरूरत है। लोगों को शिक्षा से मिलने वाली लाभ के बारे में बताना होगा। उन्हें इस बात का विश्‍वास दिलाना होगा कि शिक्षा पाने से व्यक्ति में न केवल इंसानियत आती है बल्कि इसके सहारे रोजगार पाकर आत्मनिर्भर जीवन भी जीया जा सकता है। इसके लिए क्षेत्रीय जनमानस में चेतना का प्रसार करने की आवश्‍यकता है। जिससे यहां के लोग परंपरागत संकुचित मानसिकता से बाहर आकर हर पहलूओं पर गंभीरता से विचार कर सकें। उन्हें कामकाज से मुक्त कर केवल शिक्षा की ओर प्रेरित करनी चाहिए। अभी तक तो जब-जब विद्यार्थियों को घरेलू कार्यों से छुट्टी मिलती है तब-तब वे स्कूल कॉलेज आते हैं। जबकि स्थिति इसके उलट होने चाहिए।

इसके लिए सबसे बेहतर उपाय यह है कि शिक्षा का अधिकार कानून का विस्तार करके उसे कॉलेज स्तर तक बढ़ा देना चाहिए। समाज में इस बात का संदेश फैलाना जरूरी है कि मानव संसाधन निर्माण पर व्यय एक दीर्घकालिक पूंजी व्यय है। जिसे स्वेच्छा से स्वीकार करना चाहिए। अभी भी इस क्षेत्र में साक्षरता को ही शिक्षा माना जाता है। लोगों को इसके बीच का फर्क बताना होगा। सारी जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ देने की पनप रही प्रवृति घातक साबित हो रही है। कुल मिलाकर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। सरकार को भी कुछ ऐसी जमीनी योजनाएं शुरू करना चाहिए जिससे विद्यार्थी शिक्षा का मशाल थामने को आगे आएं और ज्ञान रूपी समाज की परिकल्पना प्रदेश में भी चरितार्थ हो। (चरखा फीचर्स)

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