हिंद स्‍वराज

हिंद स्वराज : हिन्दुस्तान की दशा

नवजीवन ट्रस्‍ट द्वारा प्रकाशित महात्‍मा गांधी की महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक ‘हिंद स्‍वराज’ का पांचवां पाठ

hind swarajjपाठक: हिन्दुस्तान अंग्रेजों के हाथ में क्यों है, यह समझा जा सकता है। अब मैं हिन्दुस्तान की हालत के बारे में आपके विचार जानना चाहता हूं।

संपादक: आज हिन्दुस्तान की रंक दशा है। यह आपसे कहते हुए मेरी आंखो में पानी भर आता है और गला सूख जाता है। यह बात मैं आपको पूरी तरह समझा सकूंगा या नहीं इस बारे में मुझे शक है। मेरी पक्की राय है कि हिन्दुस्तान अंग्रेजों से नहीं बल्कि आजकल की सभ्यता से कुचला जा रहा है। उसकी चपेट में वह फंस गया है।

उसमें से बचने का अभी उपाय है लेकिन दिन-ब-दिन समय बीतता जा रहा है। मुझे तो धर्म प्यारा है। इसलिए पहला दुख मुझे यह है कि हिन्दुस्तान धर्मभ्रष्ट होता जा रहा है। धर्म का अर्थ मैं यहां हिन्दू मुस्लिम या जरथोस्ती धर्म नहीं करता लेकिन इन सब धर्मो के अन्दर जो धर्म है वह हिन्दुस्तान से जा रहा है। हम ईश्वर से विमुख होते जा रहे हैं।

हिन्दुस्तान पर यह तोहमत है कि हम आलसी हैं और गोरे लोग मेहनती और उत्साही हैं। इसे हमने मान लिया है। इसलिए हम अपनी हालत को बदलना चाहते हैं। हिन्दू, मुस्लिम, जरथोस्ती, ईसाई सब धर्म सिखाते हैं कि हमें दुनियावी बातों के बारे में मंद और धार्मिक बातों के बारे में उत्साही रहना चाहिये। हमें अपने दुनियावी लोभ की हद बांधनी चाहिये और धार्मिक लोभ को खुला छोड़ देना चाहिये। हमारा उत्साह धार्मिक लोभ में ही रहना चाहिये।

पाठक: इससे तो मालूम होता है कि आप पाखंडी बनने की तालीम देते हैं। धर्म के बारे में ऐसी बातें करके ठग लोग दुनिया को ठगते आये हैं और आज भी ठग रहे हैं।

संपादक: आप धर्म पर गलत आरोप लगाते हैं। पाखंड तो सब धर्मों में है। जहां सूरज है वहां अंधेरा रहता ही है। परछाई हर एक चीज के साथ जुड़ी रहती है। धार्मिक ठगों को आप दुनियावी ठगों से अच्छे पायेंगे। सभ्यता में जो पाखंड मैं आपको बता चुका हूं वैसा पाखंड धर्म में मैंने कभी कहीं देखा नहीं।

पाठक: यह कैसे कहा जा सकता है धर्म के काम पर हिन्दू मुसलमान लड़े, धर्म के नाम पर ईसाइयों में बडे बड़े युद्ध हुए। धर्म के नाम पर हजारों बेगुनाह लोग मारे गये। उन्हें जला दिया गया। उन पर बड़ी बड़ी मुसीबतें गुजारी गई। यह तो सभ्यता से बदतर ही माना जायगा।

संपादक: तो मैं कहूंगा कि यह सब सभ्यता के दुख से ज्यादा बरदाश्त हो सकने जैसा है। आपने जो कुछ कहा वह पाखंड है ऐसा सब लोग समझते हैं। इसलिए पाखंड में फंसे हुए लोग मर गये कि सारा सवाल हल हो गया। जहां भोले लोग हैं वहां ऐसा ही चलता रहेगा लेकिन उसका असर हमेशा के लिए बुरा नहीं रहता। सभ्यता की होली में जो लोग जल मरे हैं उनकी तो कोई हद ही नहीं है। उसकी खूबी यह है कि लोग उसे अच्छा मानकर उसमें कूद पड़ते हैं। फिर वे न तो रहते दीन के और न रहते दुनिया के। वे सच बात को बिलकुल भूल जाते हैं।

सभ्यता चूहे की तरह फूंककर काटती है। उसका असर जब हम जानेंगे तब पुराने वहम मुकाबले में हमें मीठे लगेंगे। मेरा कहना यह नहीं कि हमें उन वहमों को कायम रखना चाहिये। नहीं, उनके खिलाफ तो हम लड़ेंगे ही लेकिन वह लड़ाई धर्म को भूल कर नहीं लड़ी जायेगी बल्कि सही तौर पर धर्म को समझकर और उसकी रक्षा करके लड़ी जायेगी।

पाठक: तब तो आप यह भी कहेंगे कि अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान में शान्ति का जो सुख हमें दिया है वह बेकार है।

संपादक: आप भले शांति देखते हों पर मैं तो शान्ति का सुख नहीं देखता।

पाठक: तब तो ठग, पिंडारी, भील वगैरा देश में जो त्रास गुजारते थे उसमें आपके खयाल से कोई बुराई नहीं थी?

संपादक: आप जरा सोचेंगे तो मालूम होगा कि उनका त्रास बहुत कम था। अगर सचमुच उनका त्रास भयंकर होता तो प्रजा का जड़ मूल से कभी का नाश हो जाता और हाल की शान्ति तो नाम की ही है। मैं यह कहना चाहता हूं कि इस शान्ति से हम नामर्द, नपुंसक और डरपोक बन गये हैं। भीलों और पिंडारियों का स्वभाव अंग्रेजों ने बदल दिया है, ऐसा हम न मान लें। हम पर एक सा जुल्म होता हो तो हमें उसे बरदाश्त करना चाहिये लेकिन दूसरे लोग हमें उस जुल्म से बचावें, यह तो हमारे लिए बिलकुल कलंक जैसा है। हम कमजोर और डरपोक बनें उससे तो भीलों के तीर कमान से मरना मुझे ज्यादा पसंद है।

उस हालत में जो हिन्दुस्तान था उसका जोश कुछ दूसरा ही था। मैंकाले ने हिन्दुस्तानियों को नामर्द माना। वह उसकी अधम अज्ञान दशा को बताता है। हिन्दुस्तानी नामर्द कभी नहीं थे। यह जान लीजिये कि जिस देश में पहाड़ी लोग बसते हैं, जहां बाघ भेड़िये रहते हैं उस देश के रहनेवाले अगर सचमुच डरपोक हों तो उनका नाश ही हो जाये। आप कभी खेतों में गये हैं, मैं आपसे यकीनन् कहता हूं कि खेतों में हमारे किसान आज भी निर्भय होकर सोते हैं जब कि अंग्रेज और आप वहां सोने के लिए आनाकानी करेंगे। बल तो निर्भयता में है, बदन पर मांस के लोंदे होने में बल नहीं है। आप थोड़ा भी सोंचेंगे तो इस बात को समझ जायेंगे।

और आपको, जो स्वराज्य चाहने वाले हैं, मैं सावधान करता हूं कि भील, पिंडारी और ठग ये सब हमारे ही देशी भाई हैं। उन्हें जीतना मेरा और आपका काम है। जब तक आपके ही भाई का डर आपको रहेगा तब तक आप कभी मकसद हासिल नहीं कर सकेंगे।

जारी….

अवश्‍य पढें :

‘हिंद स्वराज की प्रासंगिकता’ को लेकर ‘प्रवक्‍ता डॉट कॉम’ पर व्‍यापक बहस की शुरुआत

‘हिंद स्‍वराज’ का पहला पाठ

हिंद स्वराज : बंग-भंग

हिंद स्वराज : अशांति और असंतोष

हिंद स्वराज : हिन्दुस्तान कैसे गया?