गजल

हिंदी गजल/मुक्तिका

गले मिल के गला काट रहें हैं।
रहनुमा देश को बाँट रहे हैं।।

अवसादी घेरे हैं आस पास,
चौंसठ घड़ी पहर आठ रहे हैं।

आधुनिक युग का देखा हर बशर,
बनते सदैव वे काठ रहे हैं।

हैं दलों के बीच खाइयाँ बहुत,
खाइयों को हमीं पाट रहे हैं।

उनका इरादा कभी न नेक था,
इज़्तिराब कि जोड़ गाँठ रहे हैं।

अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर