हिंदु मुस्लिम संबंध-3

0
316

hinduअनिल गुप्ता
पिछले दो लेखों में हमने देखा की औरंगजेब के मरने के बाद मुग़ल साम्राज्य के बिखराव के दौर में इस्लामिक पुनरुत्थान के आन्दोलन शुरू किये गए जिनमे हिंदुस्तान के मुसलमानों को लगातार ये समझाया गया की तुम भारतीय नहीं हो बल्कि वैश्विक इस्लामी बिरादरी का एक हिस्सा हो.तुम्हारी जीवन शेली बिलकुल अलग है.तुम्हे अरबी,तुर्की ढंग की दाढ़ी रखनी है,उन्ही के जैसे कपडे पहनने हैं,उन्ही के जैसे विशिष्ट डिजाईन की टोपी पहननी है.उन्ही की तरह ’हलाल’ का गोश्त खाना है.आदि-आदि.लगभग डेढ़ शताब्दी तक निरंतर चले इस अभियान ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया और अंग्रेजों ने भी हिन्दुओं से अलग व्यव्हार करने वाले इस वर्ग को अपना हस्तक बना कर इस फुट को और भी बढ़ाने का काम किया.जिन मुस्लिम पुनरुत्थानवादियों ने ये अभियान चलाये उन्होंने इस बात पर भी ऐतराज किया की अधिकांश मतांतरित मुसलमान अपने पूर्व धर्म(हिन्दू धर्म) की बहुत सी परम्पराओं को मतान्तरण के बाद भी जारी रखा हुआ है.और उन्होंने सभी पुरानी ”हिन्दू” परम्पराओं को छोड़ने का आग्रह किया.महिलाओं को चूड़ियाँ पहनने,सिन्दूर लगाने, मेहंदी लगाने और ऐसे अन्य रिवाजों को भी त्यागने के लिए जोर दिया गया.वो ये बात भूल गए की स्वयं इस्लाम में जिन रिवाजों को अपनाया गया था उनमे से अनेकों इस्लाम पूर्व की मध्य एशिया के यहूदी समाज की परम्पराओं से ली गयी थीं.जैसे सुन्नत या खतना जो यहूदियों से लिया गया था.हज के समय जो बिना सिले वस्त्र पहन कर जाने की परंपरा है वह इस्लाम पूर्व दक्षिण भारत से व्यापर संबंधों के चलते दक्षिण के मंदिरों में अंगवस्त्रम पहनकर जाने की परंपरा से ही प्रभावित है.इसी प्रकार पांच वक्त नमाज की परंपरा भी दक्षिण भारत के मंदिरों में पांच समय पूजा की परंपरा,जो आज तक भी प्रचलित है,से प्रभावित है.इसी प्रकार जुम्मे को पवित्र दिन मानने की परंपरा मध्य पूर्व के लोगों के गुरु शुक्राचार्य के अनुयायी होने से जुडी है.देवताओं के गुरु बृहस्पति शुक्राचार्य के भाई होने के कारण जुम्मेरात अर्थात बृहस्पतिवार को भी इस्लाम में पवित्र माना जाता है.
लगातार लगभग डेढ़ सदी तक इस अलगाव का प्रचार किये जाने से और किसी के द्वारा उसका प्रतिकार न करने के कारण हिन्दू मुस्लिमों के बीच खायी चौड़ी होती चली गयी.ऐसे में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में गाँधी युग के प्रारंभ होने के बाद जिस प्रकार मुस्लिम अलगाववाद को पानी दिया गया और मुस्लिमों की समस्त देश विरोधी मांगों को भी उनके धार्मिक मान्यता का भाग मानने की जो भूल कांग्रेस के नेतृत्व ने की वह देश के विभाजन तक तो पहुंची ही बल्कि आज फिर वैसी ही परिस्थिति निर्माण होती दिखाई पड रही हैं.
१८७१ में डब्ल्यू.डब्ल्यू.हंटर नामक एक अंग्रेज ने एक पुस्तक ”द इन्डियन मुसलमांस:आर दे बाऊंड इन कोंसायेंस टू रिबेल अगेंस्ट द क्वीन?”.ये पुस्तक उस समय के भारत के वायसराय लार्ड मेयो के आग्रह पर इस उद्देश्य से लिखी गयी थी की इस्लामी साम्राज्यवाद के अवशिष्ट मुसलमानों का नजरिया ब्रिटिश साम्राज्यवादीयों के प्रति बदल जाये.मुस्लमान स्वयं भी अपने लिए नयी भूमिका की तलाश कर रहे थे.इससे उन्हें अंग्रेजों के पिट्ठू बनने और हिन्दुओं के विरुद्ध आक्रामक होने का रास्ता दिखाई दिया.उनके द्वारा अब तक जो अपनी बहादुरी का मुखौटा लगा रखा था उसे तो महाराजा रणजीत सिंह और उनसे पूर्व सिख गुरुओं की तलवार ने उतार दिया था.उन्हें अपने ’खोये हुए गौरव’ पर अफ़सोस जताने के अलावा कोई काम नहीं रह गया था.लेकिन इस पुस्तक ने उन्हें अपने आप को ’गरीब और पीड़ित माईनोरिटी’ के रूप में पेश करके अपने लिए विशेषाधिकार मांगने का मार्ग सुझा दिया.यह थ्योरी आज तक भी अपना असर दिखा रही है.और इसी मानसिकता के चलते आज उन्होंने भारत से अलग करके दो मुस्लिम देश बना लिए हैं.
मुसलमानों के प्रति इस ’उत्पीडन’ का पहला मुद्दा बना हिन्दुओं द्वारा गोमांस की खुली बिक्री का विरोध.नव गठित नगर पालिकाओं में उन्होंने उन जिलों में जहाँ हिन्दू बहुसंख्या में थे गोमांस की खुली बिक्री पर प्रतिबन्ध हेतु प्रस्ताव पारित कर दिए.और क़त्लघरों को नगर की सीमा से बाहर करने का प्रस्ताव भी पारित कर दिया.इस पर मुस्लिमों की प्रतिक्रिया संघर्षात्मक थी.मुल्लाओं ने फतवे जारी कर दिए की बिना गाय की कुर्बानी के ईद का त्यौहार पूरा नहीं हो सकता.( इधर कुछ वर्षों से देवबंद सेमिनारी द्वारा ईद पर गोकशी से परहेज बरतने के फतवे दिए जाने लगे हैं जो एक अच्छी पहल है).इसके अलावा मुस्लिम विद्वानों ने ये भी कहना शुरू किया की ’संपन्न’ हिन्दू ’गरीब’ मुसलमानों को उनकी सामर्थ्य में मिल सकने वाले पौष्टिक खाने से वंचित करना चाहते हैं.ये भी कहा गया की गोकशी उनका ’मजहबी हक़’ है.मुसलमानों द्वारा अंग्रेजों की शह पर इस बारे में इतना शोर किया की जिन सूबों में मुसलमानों द्वारा स्वयं गोकशी बंद कर दी थी उनमे भी ’इस्लाम खतरे में है’ का नारा लगने लगा और वहां भी पूर्व निर्णय को पलटकर गोकशी शुरू कर दीगयी.अंग्रेज अधिकारीयों ने उनका पूरा साथ दिया.
हिन्दुओं को इस्लाम के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था.वर्ना वो कह सकते थे की सेंकडों इस्लामी धर्मगुरुओं ने स्पष्ट कहा था की गोकशी ’जन्नत’ में जगह पाने के लिए नहीं बल्कि हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए की जाती है.दुर्भाग्य से कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर मुसलमानों का साथ दिया है.यद्यपि संविधान के अनुच्छेद ४८ में ये नीति निर्देशक सिद्धांत दिया है की ’राज्य द्वारा गाय, गोवंश तथा अन्य दुधारू और भारवाहक पशुओं’ के संरक्षण, और संवर्धन का कार्य किया जायेगा.फिर भी आज तक गोकशी रोकने के लिए कोई केन्द्रीय कानून नहीं बनाया गया है.पिछले वर्ष मुझे केरल में तिरुअनंतपुरम जाने का अवसर मिला.जिस होटल में मैं ठहरा था वह वहां के प्रसिद्द हिन्दू मंदिर ’श्री पद्मनाभं’ से एक फर्लांग की दूरी पर था और वहां धड़ल्ले से गोमांश से बनी खाद्य सामग्री परोसी जा रही थी जिसे देखकर बहुत बुरा लगा.इंदिरा जी के शाशन में तो ७ नवम्बर १९६६ को गोभक्त सन्यासियों पर गोरक्षा आन्दोलन के लिए गोली तक चलवाई गईथी.
दूसरा मुद्दा बना मस्जिदों के आगे किसी प्रकार का संगीत न बजाया जाये.जब कोई हिन्दुओं का जलूस निकलता तो या तो उसे मस्जिद के आगे से जाने की अनुमति ही नहीं दी जाती थी या अगर कहीं पर जलूस मस्जिद के आगे से निकल गया तो उसपर मस्जिद से पत्थर फेंके जाते थे.दुर्भाग्य से ये स्थिति आज भी कायम है.और सेंकडों दंगे इसी मुद्दे पर हो चुके हैं जिनमे बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू और मुसलमान दोनों की जाने गयी हैं.अंग्रेजों ने तो इसमें मुसलमानों का साथ दिया ही लेकिन आज़ादी और विभाजन के बाद भी ’कानून और व्यवस्था’ बनाये रखने के नाम पर हिन्दुओं को अक्सर अपने धर्म के अनुसार आचरण करने के संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जाता है.
तीसरा मुद्दा बना उर्दू का.
लेकिन इन मुद्दों के पीछे एक ही विचार काम करता है की किस प्रकार इस ”दारुल हरब” को ”दारुल इस्लाम” बनाया जाये.
लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस का दृष्टिकोण गाँधी जी के भारत वापस लौटने तक पूरी तरह से राष्ट्रवादी हो चूका था.अंग्रेजों द्वारा बंग भंग का निर्णय और अंग्रेजों द्वारा प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप आगा खान के नेतृत्व में लार्ड मिन्टो को दिया गया मांगपत्र तथा उसके तुरंत बाद आगा खान की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग की स्थापना ने भी कांग्रेस में राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत किया.लेकिन गाँधी जी के वापस आते ही ये धारा बदलने लगी.राष्ट्रवादी आन्दोलन और लाल,बाल,पाल की तिकड़ी के जबरदस्त आन्दोलन और विरोध के कारण बंग भंग का निर्णय बदलना पड़ा.उससे मुसलमान खफा हुए.उधर विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद तुर्की साम्राज्य को अंग्रेजों ने विघटित कर दिया जिससे मुसलमानों में रोष बढ़ा.गांधीजी ने इस समय मुसलमानों का साथ देने के लिए १९१६ में लखनऊ में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का संयुक्त अधिवेशन कराया.इसी अधिवेशन में मुस्लिम अलगाववाद पर पक्की मोहर कांग्रेस ने लगायी जब मुसलमानों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया गया और उनकी जनसँख्या के अनुपात से भी अधिक प्रतिनिधित्व स्वीकार किया गया.यहीं से तुष्टिकरण की नीति शुरू हुई.कांग्रेस में केवल पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने ही इस समझौते का विरोध किया……………………………………………………………..क्रमशः.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,346 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress