हिंदू पाकिस्तान के मायने…

वीरेन्द्र सिंह परिहार
गत दिनों कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरुर ने कहा कि यदि भाजपा को 2019 के चुनावों में पुनः बहुमत मिलता है तो संविधान का अस्तित्व मिट जाएगा और देश हिंदू पाकिस्तान में बदल जाएगा। संविधान का अस्तित्व खतरे में है, यह बातें तो आए दिन मोदी विरोधियों, भाजपा विरोधियों एवं संघ विरोधियों के मुॅह से सुनने को मिलती ही रहती हैं। अब मोदी सरकार के किन क्रिया-कलापों से संविधान को खतरा उत्पन्न हो गया है? इसके लिए आए दिन यही प्रचारित किया जाता है कि यह सरकार मुस्लिम विरोधी है, दलित विरोधी है और इसके लिए कुछ अपवाद स्वरूप घटनाओं को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर दिया जाता है। जहां तक संविधान का सवाल है, वहां तो इस बात का श्रेय नरेन्द्र मोदी को देना पड़ेगा कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते जिस प्रधानमंत्री संस्था की प्रतिष्ठा तार-तार हो गई थी, उस प्रतिष्ठा को मोदी ने पुनः कायम कर दिया। गहन परीक्षण का विषय यह कि आखिर में शशि थरुर जैसे लोग जब देश को मोदी की अगुवाई में हिन्दू पाकिस्तान बनने की बातें करते हैं तो उनका आशय क्या है? शायद उनका कहने का आशय यह कि जैसे पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है और वहां हिन्दुओं के साथ देशके बंटवारे के बाद सतत् अत्याचार हो रहे हैं। वहां वह अपने रीति-रिवाजों तक का पालन नहीं कर सकते, अपने शवों तक को जला नहीं सकते। यह बात तो अलग! कब उनके पूजा स्थलों को तोड़ दिया जाए, कब उनकी धन-सम्पत्ति लूट ली जाए, कब उनकी बहू-बेटियों का अपहरण कर लिया जाए? कुछ कहा नहीं जा सकता! इसी का नतीजा है कि जिस पाकिस्तान में बंटवारे के वक्त दस प्रतिशत के लगभग हिंदू थे, वहां अब नाम मात्र को बचे हैं और वह भी अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं।
थरुर जैसे लोगों की दृष्टि में 2019 का चुनाव यदि भाजपा जीतकर मोदी पुनः प्रधानमंत्री बने तो मुसलमानों के साथ भी कुछ ऐसा ही व्यवहार होगा जैसा कि हिंदुओं के साथ पाकिस्तान में होता रहा है। पर बड़ी बात यह कि यह कहने के लिए थरुर जैसे लोगों के पास आधार क्या है? शायद थरुर जैसे लोग कहना चाहेंगे कि मोदी सरकार तीन तलाक जैसी प्रथा पर पाबंदी लगा चुकी है, जो मुस्लिमों का निजी मामला है। आगे चलकर उसका रवैया हलाला जैसी प्रथा के विरोध में और कामन सिविल कोड लागू करने के पक्ष में दिखाई देता है। थरुर जैसे लोग यह भी कहना चाहेंगे कि रोंहिग्या मुस्लिमों के भारत में रहने देने के विरोध में होने के कारण मोदी सरकार मुस्लिम विरोधी हैं। शषि थरुर जैसे लोगों का यह भी आरोप होगा कि मोदी सरकार नागरिकता संषोधन विधेयक लाकर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दुओं, बौद्धों, जैनों, सिखों और ईसाईयों को नागरिकता प्रदान करने जा रही है, और वहां से आए मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता क्यों नहीं दे रही है? उनके लिए मोदी सरकार का यह कदम संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ तो है ही, समानता के मूलभूत सिद्धान्त के भी विरुद्ध है।
उपरोक्त बातों में बहुत सी बातों को तो भारत का सर्वोच्च न्यायालय ही अनुचित कह चुका है। जैसे तीन तलाक को गत वर्ष विधि विरुद्ध घोषित कर चुका है। कामन सिविल कोड के पक्ष में भी सर्वोच्च न्यायालय कई बार सरकारों को जोर देकर लागू करने को कह चुका है। पर वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने इसे कभी गंभीरता से नही लिया। जहां तक रोहिंग्या मुस्लिमों का प्रष्न है? वहां एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि ये मूलतः आतंकवादी हैं और इन्हें करीब 100 बेगुनाह हिंदू पुरुष, बच्चों और महिलाओं की हत्या का दोषी बता चुका है। जहां तक नागरिकता संषोधन विधेयक का सवाल है, उसके बारे में यही कहा जा सकता है कि इसमें सवाल हिंदू-मुसलमान या पंथ-मजहब का नहीं, बल्कि शरणार्थी और घुसपैठियों का है। आखिर में सरकार जिन हिंदू, सिखों, बौद्धों, जैनों और यहां तक कि ईसाईयों को इस देश की नागरिकता देना चाहती है, वह पीड़ित और प्रताड़ित होकर इस देश में बतौर शरणार्थी आए हैं और बंटवारे के पूर्व कमोवेश वह भारतवासी ही थे। आखिर में तस्लीमा नसरीन जैसी लेखिका को पीड़ित और प्रताड़ित होकर आने के चलते जब भारत सरकार संरक्षण और नागरिकता देना चाहती है, तो वोट बैंक की राजनीति के चलते ऐसे तत्वों को बेहद तकलीफ होती है। शशि थरुर जैसे लोगों को यह भी तकलीफ होगी कि 2019 में यदि मोदी सरकार पुनः आयी तो बांग्लादेशी घुसपैठियों को देष से बाहर निकालने में पूरी सख्ती बरती जाएगी। जबकि भारत का सर्वोच्च न्यायालय तक इन घुसपैठियों को लेकर इसे राष्ट्र पर आक्रमण बता चुका है। पर पूरा लोकतंत्र, संविधान और यहां तक कि राष्ट्र को भी एक परिवार की सम्पत्ति समझने वालों को इससे क्या लेना-देना? उनके अनुसार तो सर्वोच्च न्यायालय में राम मंदिर  की सुनवाई 2019 के चुनाव के बाद करानी चाहिए। क्योंकि यदि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय राम मंदिर के पक्ष में गया तो इसे घोर साम्प्रदायिक कहा जाएगा। कुल मिलकार कर एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है कि जिसके आधार पर यह कहा जा सके मोदी सरकार किसी स्तर पर मुस्लिमों के प्रति भेदभाव करती है? अलबत्ता मोदी सरकार विभेदकारी, अमानवीय प्रथाओं एवं राष्ट्र विरोधी प्रवृत्तियों से कतई समझौता करने को तैयार नहीं है। आखिर में उसे विकास के साथ इसके लिए भी जनादेश मिला है। पर कांग्रेस पार्टी जो देश के परिदृष्य से मुक्त होने की प्रक्रिया में है, अब भी राष्ट्रीय हितों की कीमत पर तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के करने की ओर पूरी तरह अग्रसर है। तभी तो जब पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अमानवीय अत्याचार होते हैं, तब उनके मुॅह मुस्लिम पाकिस्तान के विरोध में कभी नहीं खुलते, खुले भी कैसे? कहीं उनका वोट बैंक न प्रभावित हो जाए। तभी तो अभी हाल में एक कार्यक्रम में राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम पार्टी बता चुके हैं। पर जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि इसमें भी मुस्लिमों की आधी आबादी महिलाओं के प्रति उनका रवैया पूरी तरह से उनके विरुद्ध है।

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