हॉकी और हनुमानगढ़… बल्ले बल्ले!

राष्ट्रीय खेल दिवस ( 29 अगस्त)

हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद को समर्पित

~साधना सोलंकी

स्वतंत्र पत्रकार

सचमुच…हॉकी और हनुमानगढ़ की सरजमीं का कुछ ऐसा ही नाता है कि जिसने भी इसे जाना- समझा… इसके नशे को घूंट घूंट पिया तो मुंह से उल्लास की बोली पंजाबियत की महक लिए फूट पड़ी…बल्ले बल्ले! दरअसल यह शहर पंजाब का पड़ौसी है। श्रीगंगानगर जिले से यह शहर सन 1994 में अलग होकर स्वतन्त्र जिला बना। वीर बजरंगी हनुमान के नाम पर इस शहर का नामकरण पुरातन ऐतिहासिक भटनेर से बदलकर हनुमानगढ़ हुआ। जंक्शन और टाउन में बंटे हनुमानगढ़ जिले में हॉकी खेल की जो बल्ले बल्ले हुई…हो रही है, वह आकर्षक है। कहा जा सकता है कि हॉकी प्रेम का यही जुनून ए प्रयास कायम रहा तो यह बल्ले बल्ले सदाबहार हो बरसती रहेगी ! आइए जानते हैं पंच गौरव में शामिल हॉकी और हनुमानगढ़ की दिलचस्प कहानी हॉकी के पूर्व खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों की जुबानी। कहानी जो कि एनएम कालेज हनुमानगढ़ टाउन से परमजीत सिंह गुमान (पूर्व चीफ कोच भारतीय विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय )की अगुवाई में सन 1971 में शुरू होती है और 1974 में इसके उत्साहवर्धक परिणाम आने शुरू हो जाते हैं। यहां से हॉकी राज्य से बाहर झांकती देस परदेस में जीत के तमगे, ट्राफी बटोरती, जशन मनाती राजीव गांधी हॉकी स्टेडियम तक पहुंचती है।

इसके बाद अब जी तोड़ मशक्कत जारी रखते स्टेडियम को एस्ट्रोटर्फ की सौगात से नवाजने की चाहत! हनुमानगढ़ के इन जांबाज खिलाड़ियों, प्रशिक्षको का पांच दशक से आगे बढ़ता सफर पंच गौरव के तहत बाधाओं को परे ढकेलता, उम्मीदों से लबरेज जारी है!

नाज है अपने खिलाड़ियों पर

हरफूल सिंह उम्र के सत्तर बसंत देख चुके हैं। एनएम कालेज मैदान से बतौर खिलाड़ी हॉकी सफर 1974 से 1979 के बीच खूब परवान चढ़ा। पांच बार राजस्थान यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व किया। सीनियर व जूनियर नेशनल को भी रिप्रजेंट किया। बतौर कोच देश को सुरेन्द्र पलाड(कांस्य पदक, टोक्यो ओलंपिक 2021), राजकुमार पाल(ओलंपिक पेरिस 2024), उत्तम सिंह(कैप्टन जूनियर हॉकी टीम विश्व कप, गोल्ड मैडेलिस्ट एशियन हॉकी चैंपियनशिप चाइना 2024), जगवंत सिंह(गोल्ड मैडेलिस्ट जूनियर हॉकी टीम जूनियर एशियन हॉकी चैंपियनशिप हैदराबाद 2008) जैसे अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय खिलाड़ी दिए। 1992 से 2008 के दौरान हरफूल ने एसएआई ट्रेनिंग सेन्टर कुरुक्षेत्र को अपने अनुभव की प्रशासनिक सेवा से नवाजा। 2009 से 2014 एनआईएस पटियाला में चीफ कोच रह यहीं से सेवानिवृत्ति ली।इस बारे में गाजीपुर करमपुर उत्तर प्रदेश के उत्तम सिंह कहते हैं, हरफूल सर की अपने खिलाड़ियों के लिए संवेदना में एक दोस्त, पिता, अभिभावक जैसा प्यार घुला है। वे फटकार भी लगाते हैं और गले से भी लगाते हैं।

~दिल है कि मानता नहीं!

दर्शन सिंह संधु

(पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी, पूर्व राष्ट्रीय रेल्वे खिलाड़ी, वर्तमान में निरंतर व्यक्तिगत तौर पर खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई के लिए प्रयासरत )

हनुमानगढ़ के ही खिलाड़ी और कोच दर्शन सिंह का हॉकी प्रेम जैसे जुनून का पर्याय है। उम्र को पीछे धकेल इस खेल को युवा रखने की उनकी चाहत कमाल है। सांझ उतरी नहीं कि दर्शन के कदम खेल मैदान की ओर खुदबखुद बढ़ने लगते हैं। उनका विशेष झुकाव उन ग्रामीण बेटियों को प्रोत्साहित करने पर रहता है, जो बेहद कमजोर आर्थिक हालात से जूझते इस खेल में रुचि रखती हैं। दर्शन तमाम बच्चों, युवाओं में हॉकी हुनर को रोपते हैं और उनमें खेल के भावी सुनहरे भविष्य को पुख्ता करते हैं। भावुक अपील भी करते हैं कि कृपया नियमित सांय वेला में साथियो सहित खेल मैदान में अवश्य पहुंचे और खेल की सेहतमंद सौगात से भविष्य संवारें। हंसकर कहते है…दिल है कि मानता नहीं!

नशा मुक्ति का बेहतर विकल्प

दर्शन सिंह सहित बातचीत के दौरान खुलासा करते हैं कि यह

खेल सामाजिक सास्कृतिक सरोकारों से भी जुड़ा है। श्रीगंगानगर जिला हो या हनुमानगढ़ और तमाम आस पास का इलाका… नशा लत की बेड़ियों से जकड़ा है। यह लत विशेषकर युवाओं के भविष्य को डस रही है और उन्हें पंगु बना रही है। खेल के प्रति नई पीढ़ी का रुझान बढ़ता है, तो स्वस्थ सेहतमंद सांसो की सकारात्मकता का संदेशा उन्हें जीवन के प्रति आस्थावान बनाता है। यह बदलाव समाज के प्रति संवेदनशील भी बनाता है।

गांव की ये बच्चियां हैं अनमोल!

राजीव गांधी स्टेडियम में दर्शन सिंह के अलावा कोच गुरदीप सिंह ( पास के गांव गुरुसर में पीटीआई शिक्षक) और हरबीर सिंह(एनआईएस कोच राजीव गांधी स्टेडियम) का ग्रामीण कमजोर तबके की बच्चियों, बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पण काबिले तारीफ है। इनके अथक प्रयास का ही नतीजा है कि इन द्वारा प्रशिक्षित बच्चियां अंडर 14 और अंडर 17 राजस्थान विजेता रहीं। दर्शन बताते हैं कि गुरुदीप सिंह अपनी जेब से रोजाना वैन किराया जो कि 500 रुपए करीब है, देकर खिलाड़ियों को स्टेडियम लाते हैं।

जुड़वां भाई मस्तान सिंह नसीब सिंह

एनएम कालेज से ही जुड़े हॉकी प्रेमी, फिजिकल एजुकेशन टीचर व एम्पायर मस्तान सिंह और जुड़वां भाई नसीब सिंह के चर्चे भी खूब हैं। हॉकी के अलावा मस्तान लोकप्रिय कार्टूनिस्ट भी हैं। विविध स्थापित पत्र पत्रिकाओं को उनके इस हुनर ने खूब नवाजा। इनके चलते वे बतौर वोटू भी जाने गए।

मस्तान सिंह के नेतृत्व में प्रशिक्षक के रूप में एनपीएस स्कूल हनुमानगढ़ ने सीबीएसई वेस्ट जोन अंडर 14 हॉकी प्रतियोगिता में तीन गोल्ड मेडल( बॉयज व गर्ल्स) में जीते, साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर दो बार ब्रॉन्ज मेडल (कांस्य पदक) भी जीते गए।

हॉकी जगत हनुमानगढ़ में राष्ट्रीय खिलाड़ी एनआई एस कोच इकबाल सिंह ढिल्लो, हॉकी प्रेमी जन नेता श्योपत सिंह का योगदान भी सराहनीय है। लब्बोलुआब यह कि हनुमानगढ़ को आज हॉकी का गढ़ कहा जाता है तो वजह इस जमीं से जुड़े खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों, हॉकी लवर्स का दमखम ही है!

एस्ट्रोटर्फ आए…बात बन जाए!

हनुमानगढ़ जिले का खेल हॉकी तय होने के बाद यहां एस्ट्रोटर्फ की चाहत पुख्ता हुई है।

साढ़े नौ करोड़ रुपए की लागत से एस्ट्रोटर्फ लगाने व खिलाड़ियों को वाजिब सुविधाएं प्रदान करने की मांग पर सैद्धांतिक सहमति बनी है। जिला खेल विभाग के उक्त प्रस्ताव को मंजूरी देकर राज्य क्रीड़ा परिषद ने खेलो इंडिया को भेज दिया है। राज्य सरकार योजना में हॉकी को पंच गौरव में शामिल करने के बाद उम्मीद के पाखी राजीव गांधी जिला स्टेडियम स्थित हॉकी मैदान की ओर उड़ चले हैं।

दर्शन बताते हैं कि एस्ट्रोटर्फ लगाने के प्रस्ताव पर राज्य क्रीड़ा परिषद ने सहमति रखते इसे केन्द्र सरकार के खेलो इंडिया नई दिल्ली को भेज दिया है।

जिला कलेक्टर कानाराम सहित अन्य अधिकारियों का इसमें विशेष सहयोग रहा।

एस्ट्रोटर्फ से खेल क्षमता में जबरदस्त सुधार

एस्ट्रोटर्फ ( कृत्रिम मैदान) की संख्या कुछ साल पहले तक प्रदेश में ना के बराबर थी। अब यह चार मैदानों पर लगाए जा चुके हैं। जहां यह लगाए जाते हैं, वहां के खिलाडिय़ों के खेल में जबरदस्त सुधार देखने को मिलता है।

भविष्य का हॉकी हब

एस्ट्रोटर्फ लगने पर हनुमानगढ़ राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं का हब बन सकता है।

एस्ट्रोटर्फ के लाभ

इससे हॉकी मैदान को एक समतल और सुखद सतह मिलती है। गेंद का उछाल और खिलाड़ियों की गति नियंत्रित रहती है। मौसम की हर मार से अछूता है और प्राकृतिक घास की तुलना में अधिक टिकाऊ है। खिलाडिय़ों को चोट लगने का जोखिम कम रहता है।

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