”ईमानदार” प्रधानमंत्री का भ्रष्टतंत्र

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हमारे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की ईमानदारी का ढिंढोरा पीट कर कांग्रेस पार्टी संसदीय जांच समिति से इस तरह भागने की कोशिश कर रही है जैसे विपक्ष सलीब पर ईसा मसीह को टांगने की कोशिश कर रहा हो मगर क्या यह देश जुलाई 2008 में बुलाये गए संसद के उस विशेष सत्र की घटना को भूल सकता है जब अमरीका के साथ होने वाले परमाणु करार पर लोक सभा की स्वीकृति की मोहर लगवाने के लिए अल्पमत में आई मनमोहन सरकार ने विपक्ष में बैठे सांसदों का मत खरीदा था और लोकसभा की मेज पर नोटों के बण्डल रखे गए थे ?? तब कौन सी ईमानदारी का परिचय इस देश की जनता को मिला था ? क्या ईमानदार की परिभाषा यह है कि महात्मागांधी के तीन बंदरों की तरह बुरा मत देखो, बुरा मत सुनों, और बुरा मत कहो पर अमल करते हुए बुरे काम को होते हुए देखा कर दीवार की तरफ मूंह करके खड़े हो जाओ | डा. मनमोहन सिंह ने इस देश के प्रधानमंत्री है कोई कुटिया में बैठे भागवत भजन करने वाले साधु नही कि हर बात को हरि -इच्छा पर छोड़ कर देश की सरकार चलाते रहे और अपने ईमानदार होने का सबूत देते रहे | यह किसी ईमानदारी है जो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक अफसर को देश का मुख्य सतर्कता आयुक्त बनाने के लिए मजबूर करती है ? या कैसी ईमानदारी है जो अपने ही मंत्रीमंडल के एक मंत्री यह नही कह पाती कि 2-जी स्पेक्ट्रम के लाइंसेस तो बांटो मगर ज़रा यह भी ध्य ान कर लो कि इसमें देश कू कोई नुक्सान ना हो | यह कैसी ईमानदारी है जो परमाणु दायित्व विधेयक को झटके में संसद में पारित कराने की कोशिश करती है और जब इस पर विवाद उठता है तो इस विधेयक में संशोधन कर दिया जाता है ? इस विधेयक को पारित कराते समय संसद को विश्वास दिलाया जाता है कि परमाणु हादसे होने पर मुआवजे के निपटारे के लिए भारत को अंतर्राष्ट्रीय संधि से जुड़ने की कोई जल्दी नही है मगर अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा के भारत आने से पहले ही विएना में इस संधि पर भारत हस्ताक्षर कर देता है ? क्या ईमानदारी यह होती है कि राष्ट्र मंडल खेल आयोजन के नाम पर रोज नए-नए घोटाले उजागर होते रहे और प्रधानमंत्री इनके खत्म होने के बाद एक जांच समिति का गठन कर दे ? क्या ईमानदारी यह होती है कि क्रिकेट के नाम पर अईपीएल की कोचीच टीम को खरीदने के लिए उसके ही मंत्रीमंडल का का सदस्य बीच रास्ते में ही पकड़ लिया जाए ? क्या ईमानदारी इसे कहते है कि भारी संसद में जब उसके ही मंत्रिमंडल का सदस्य 2-जी लाईसेंस घोटाले पर विपक्षी सांसदों से यह कहे कि मुझे क्यों पकड़ते हो, मैंने तो सारा काम अपने सरपरस्त प्रधानमंत्री की जानकारी में ला कर ही किया है और प्रधानमंत्री चुपचाप बैठा रहे ? दरअसल हकीकत ये है कि डा.मनमोहन सिंह के रूप में कांग्रेस पार्टी के खानदानी राज को एक ऐसा मोहरा मिल गया है जो उसका उपयोग मनचाही जगह पर जैसे चाहे वैसे कर सकता है मगर यह देश मुर्दा इंसानों की बस्ती नही है | पूरी दुनिया के सबसे जवाब मुल्क् की नोजवान पीढ़ी को कांग्रेस खानदानी विरासत के मायाजाल में नहीं बाँध सकते | कौन नही जानता कि मनमोहन सिंह दुर्घटनावश राजनीति में विश्व बैंक की सलाह पर स्व.नरसिंहराव द्वारा 1991 में वित्त मंत्री बनाए गए थे और उनकी ही वित्तीय नीतियों के चलते भारत के कृषि क्षेत्र को कंगाल कर किया गया था | कौन नही जानता कि पंडित नेहरू की आर्थिक नीतियों की बुनियाद पर खड़े हो कर इस देश ने विश्व का सबसे बड़ा बाजार बनने की क्षमता अर्जित की थी मगर मनमोहन सिंह की आरती नीतियों ने तो अस्पतालों को भी होटलों में तब्दील काके गरीब आदमी से बीमारी में ईलाज कराने का हक तक छीन लिया | वह कांग्रेस किस मूंह से भ्रषटाचार से निपटने की बात कर सकती है जिसने अपना प्रधानमंत्री ही ऐसे कमजोर राजनीत से बे-जान व्यक्ति को चुना है जिससे उसका भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी रहे | इसका प्रमाण तो महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण है जिसने मुम्बई में केवल तीन-चार फ्लैटो के लिए ही अपना ईमान बेच दिया और ईमानदार मुख्यमंत्री का क्या हाल आज के कांग्रेसी निजाम में होता है इसका प्रमाण श्री के.रोसैया है जिसने झुन्झला कर मुख्यमंत्री का पद ही छोड़ दिया मगर कांग्रेसी इसका गुणगान नही करेंगे क्यों कि ये त्याग थोड़े ही है ? यह तो स्वास्थ्य की वजह से दिया गया इस्तीफा है | यह पलायनवाद की पराकाष्ठा है | इन्होने मनमोहनसिंह को यह सोच कर कुर्सी पर बिठाया होगा कि राज हमारा रहेगा और नाम बादशाह का होगा | इन्होने मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, और इंदिरा गांधी की विरासत के बाद राजीव गांधी, सोनिया गांधी और इसके बाद राहुल गांधी को इसलिए युवा नायक के रूप में महिमा मंडित करना शुरू कर दिया जिससे सत्ता के सारे सुख बिना सत्ता में रहते हुए मिल सके | मगर क्या यह देश और इसकी जागरूक जनता सोई हुई है जो यह तक नही समझ सकता कि राजनीति के ये धुरंधर प्रतीक जो उसके सामने पेश किये जा रहे है वे नकल से इम्तिहान पास करने वाले लोग है | इनमें तो इतनी भी कुव्वत नही कि वे प्रश्न पात्र के उत्तर अपने ज्ञान के बूते पर लिख सके | और देखिये क्या संगत बिठाई गई अपने जैसे ही उधार के कांग्रेसी मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना कर उनके मुंह से ही कहलवाया गया कि कांग्रेस का नया युवा नायक पूरे देश की आशा की किरण है मगर बिहार की जनता ने बता दिया है कि पीतल पर सोने का पानी एक समय के बाद उतरता ही है | इसलिए देशवासियों जागो और अपने पैरों पर खडा होना सीखो और अब सारे मुल्क को बीहार और गुजरात बना डालो नही तो ये मनमोहन सिंह के भ्रष्ट तंत्र में इस देश को रसातल पर जाने से कोई नही रोक पायेगा | उठो देशवासियों ये भारत की धरा तुम्हे पुकार रही है |

— कुशल सचेती
अलवर

12 COMMENTS

  1. हम भ्रष्टन के ,भृष्ट हमारे ….
    कहत -सुनत सब होत दुखारे …
    कहीं पर विपदा ,कहीं मजा रे …
    पूंजीवाद के देख नज़ारे ….

  2. Man mohan jee galat nahee hai, bechare bahoot eemandar hain han lekin galat logo me fanss gaia hai
    Aapko yaad hoga KANDHAR KAND me tatkalin P.M.shree-AATEL JEE ke vgair bataya hi aatankwadion ko chhod diya gaya tha jisase BAJPEIEE je behad du:kh huaa tha yaha tak ki unhone pad chhodne ki baat krke aapne hi party ko katghare me khda kar dia the. vastev me unka dosh nahi tha.usee tarah MANMOHEN JEE BHI FANSS CHUKE HAIN ,..
    aapko bhi aisi teepdi nahi karna chhahia
    -jyotishacharya pt.VINOD CHOUBEY
    BHILAI,(C.G.)

  3. कुशल जी अपने बहुत सटीक वेर्दन किया है .वैसे मनोहन सिंह नैतिक रूप से तभी भ्रशुत हो गए जब बगैर आसाम में एक दिन गुजरे या किराये के ठिकाने का घर नहीं लियर और बयां हलफी देकर वहा से राज्य सभा में निरावाचित हुए फिर कितने ही उपचुनाव हुए यहाँ तक कि amritsar के up चुनाव में भी नहीं लादे पिचले लोकसभा चुनाव में बिना परचा भरे ही प्रधान मंत्री पद के दावेदार बन गए यह घोर अनैत्क और गैर लोकतान्त्रिक bhrasht aacharad tha Ager j.p.c. se party sahamat nahi hai to unake ander vasvik rup se imandari ke prati samman bhaw hoga to unhe tatkal tyag ptra dena chahie nahi to unaki imandarier prashan jarur uthana chahie ya to apne vivek se sochate hai ki galt hua hai to unhe bahut pahale stifa dena chahiye tha.sirf ghus lena imandari nahi hai jis pad per hai aur jis samvidhan ke shapath liye hai yah usaka bhi ghor ulghan hai

  4. मुझे तो लगता है की हम सभी दिग्भर्मित हैं.जब हम अभी भी नहीं सोच पाते की भ्रष्टाचार का बिरवा किसने रोपाथा?.भ्रष्टाचार की नीव तो देश की स्वतन्त्रता के साथ ही पढ़ गयी थी.यह दूसरी बात है की तब यह विष वृक्ष किसी को दिख नही रहा था जो भ्रष्ट थे वे ज़रा धीरे धीरे इस दिशा में अग्रसर हो रहे थे गाहे बगाहे इस तरह की खबरे आती भी थी तो या तो दब जाती थी.या यों कहिये तो दबा दी जाती थी.जिस नेहरू की बड़ाई करते आज भी लोग नहीं थकते उनको मैं भ्रष्टाचारियों को शह देने का सबसे बड़ा दोषी मानता हूँ. इसलिए नहीं की भ्रष्टाचार उस समय सबसे ज्यादा था,बल्कि इसलिए की भ्रष्टाचार को पनपने और बढ़ने के पहले ही उसको कुचल देने या नष्ट कर देने के लिए उन्होंने कुछ भी नहीं किया.फिर आई इंदिराजी. उन्होंने तो भ्रष्टाचार को विश्वसनीयता का तगमा पहना दिया.उन्होंने साफ़ कहा की भ्रष्टाचार कहाँ नहीं है?उनसे कौन पूछता की इतना भ्रष्टाचार कहाँ है?फिर हम तो नैतिकता में विश्व गुरु होने का दावा करते हैं अगर दूसरे भ्रष्ट हैं तो हम क्यों उनसे इस क्षेत्र में बाजी maar ले जाएँ?क्यों न हम दूसरों के लिए नैतिकता का उदाहरण बने?उसी पद पर चलते हुए हम आज यहाँ तक आ पहुचे हैं.बीच में कुछ बाकई इमानदार लोग आये पर वे भी कुछ नहीं कर सके.इसमे मेरे विचार से दो नाम उल्लेखनीय हैं,श्री लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई.पर सच पूछिये तो वे भी कुछ नहीं कर सके.आज भी हालत कुछ वैसे ही हैऔर भरष्टाचार का पौधा अब वृहत वट वृक्ष का रूप ले चूका है और अब उसको मिटाना या जड़ से उखाड़ना इतना आसान भी नहीं है.मनमोहन सिंह व्कतिगत रूप से इमानदार हो सकते हैं पर उनकी नकेल तो किसी अन्य के हाथ में है.दूसरी बात यह भी हो सकती है की bhagya ne unhe pradhan mantri banaa diya to ve bhi shaayad is gaddi ko chodna nahi chahate?

  5. यह इंसानी फितरत है अपनों की गलती नजर नहीं आती. दुसरो की गलती पे ऊँगली उठाना बेहद आसन होता क्योंकि अगर कोई दूसरा बदनाम होगा तो अपना क्या, फायदा नहीं तो मजा लेने में क्या हर्ज है.मैं नहीं कहता की मनमोहन सही है या गलत लेकिन कम से कम वह व्यक्ति अपने भ्रष्ट मुख्मंत्री को हटाने की हिम्मत तो रखता है और उनके विषय में आप की क्या राय
    जिनके पास मुख्यमंत्री हटाने का तो दूर की बात बुलाने की भी … नहीं .ऐसी बाते किसी पार्टी का सदस्य कर सकता लेकिन निष्पक्ष व्यक्ति नहीं.हमाम में सभी नंगे फर्क इतना है कोई किसी पे ऊँगली उठा रहा है कोई नहीं. भारष्ठाचार के लिए राजनेता को दोष देने के बजाय अपने अंदर झांक कर देखे के हमने कितना भरष्ट कर्म किया है या कितने भ्रष्ट कर्म में जाने अनजाने रूप से भागीदार बने हैं .जिस दिन यह बात समझ में लोगों को आजायेगी और भ्रष्ट दामन को छोड़कर भार्ष्ठाचार से अपना अंश भर की भी सहमती छोड़ देगा, उस दिन देश से भारष्ठाचार समाप्त हो जायगा. नहीं तो ये राजनेता हम सबको आपस में लड़ाते रहेंगे, घरों को उजारते रहेंगे, बच्चो को अनाथ और न जाने कई ऐसे कर्म ये करके अपना मनोरजन करेंगे हमारे राज नेता. और कठपुतली बनकर नाचते रहेंगे हम और आप, तमाशा देखेंगे हमारे नेता.क्योंकि दंगो में इनका कोई नुकसान नहीं होता, होते हैं हमारे बच्चे अनाथ हमारी बहने बिधवा और सड़क पे जो भूख से दम तोड़ देता है जीवन वह हम और आप है नेता नहीं ये तो अनसन भी कड़ेंगे तो ऐ सी में.

  6. मनमोहन कोइ आसमान से नहीं टपके है. हर घोटाले में उनका परोक्ष ‘हाथ’ रहा है. चुप रहना और घोटाले दबाना भी एक तरह की मदद ही होती है. कोंग्रेस बार-बार मनमोहन की ईमानदारी की शेखी हांककर पब्लिक को बेवकूफ बना रही है. चारो तरफ चोरो से घिरे मनमोहन दूध के धुले कतई नहीं हो सकते हैं. हाँ अगर वह चोर नहीं है तो निकम्मे और अकुशल जरूर होंगे. वैसे भी लूट में ‘हाथ’ किसी का भी हो. आखिरकार माल तो माता सोनिया के दरबार में ही जाता होगा. बाकी जो झूठन बचती है उसे मनमोहन-कलमाडी-राजा-चव्हान सब मिलकर खा लेते है.

  7. मनमोहन कोई दूध पीते बच्चे नहीं, बड़ों-बड़ों के पर चुप रह कर ही क़तर लेते हैं. कैसे मान लें की वे सब कुछ जानते नहीं ? सब लुट उनकी सहमति व सहयोग से ही तो हो रही है न ?उनकी दयनीय दशा है तो बस इतनी की वे किसी की कठपुतली बड़े स्वाभिमान रहित ढंग से बने बैठे हैं. यानी वे स्वाभिमानी हैं ही नहीं, गुलामी का उनका स्वभाव है, ख़ास कर गोरी रंगत के विदेशियों की गुलामी. यह उनकी नस-नस में समाया हुआ है. आप भूले तो नहीं की उन्हों ने भारत पर शासन करने के लिए ब्रिटेन का आभार प्रकट कर के भारत के चहरे पर कालिख पोंती थी. ब्रितानी रानी के आगे नतमस्तक होकर भारत को अपमानित किया था. ऐसे शासकों के होते भारत स्वावलंबी, शक्तिशाली, स्वाभिमानी कैसे बन सकता है ? एक और स्वतन्त्रता संग्राम की ज़रूरत है न जो इन देश के दुश्मनों से हमें मुक्ति दिलवाए !

  8. चोरों का सरदार ,सिंह फिर भी इमानदार –
    लगता है इमानदारी की परिभाषा ही बदल गई है !
    कुशल जी आपने बड़ी कुशलता से भ्रष्ट तंत्र पर चोट की है
    आप से शत प्रतिशत सहमत हूँ …उतिष्ठकौन्तेय

  9. आलेख का आद्योपांत समर्थन किन्तु उपसंहार में गुजरात या बिहार बनाए जाने का आह्वान क्यों ?क्या रमनसिंह .शिवराजसिंह .येदुरप्पा से मोह भंग हो गया .

  10. ”ईमानदार” प्रधानमंत्री का भ्रष्टतंत्र – by – कुशल सचेती अलवर

    मनमोहन सिंह जी एक कुशल नौकरशाह हैं, जिनको प्रधानमंत्री का काम देखने को कहा गया है. वह नौकरी कर रहे हैं. It suits all concerned

    उनको अलग-अलग पर्याप्त पेंशन मिलेगी.

    उनका प्रयोग होना, प्रयोग होने देना, यह उनका किसी भी अन्य civil servant के भिन्न नहीं है.

    भ्रष्ट मालिक नौकर से भ्रष्ट काम करवा रहा है. जनता जानती है कि शासन किसका है.

    सोनिया जी इमानदार हैं तो मनमोहन जी भी इमानदार; यदि मनमोहन जी भ्रष्ट तो मतलब सोनिया जी भ्रष्ट – यह साफ़ है.

    ”ईमानदार” प्रधानमंत्री का भ्रष्टतंत्र नहीं – यह भ्रष्ट का भ्रष्टतंत्र है.

    कौन ईमानदार ? कोई नहीं

    – अनिल सहगल –

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