हुड्डा क्या, अब तो कांग्रेस को ही जाना है हरियाणा से

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जगमोहन फुटेला 

कांग्रेस और हरियाणा के मुख्यमंत्री दोनों ने वक्ती तौर पर अपने बचाव का इंतजाम कर लिया है. हुड्डा खुद तो क्यों ही जाएंगे. कांग्रेस भी उन्हें नहीं हटाएगी. क्योंकि फजीहत का फाईनल अभी बाकी है.

प्रदेश अध्यक्ष फूल चंद मुलाना ने हिसार की नैतिक जिम्मेवारी कबूल ली है. इस्तीफे की पेशकश भी की है. कांग्रेस कह रही है वो जल्दी में नहीं है. हारे हुए जयप्रकाश प्रदेश की राजनीति में हुड्डा के विरोधी बिरेंदर, शैलजा और किरन चौधरी के खिलाफ कारवाई की मांग कर रहे हैं. तो वे सब हुड्डा पे ठीकरा फोड़ने की कोशिश में. कांग्रेस है कि पसोपेश में है. कहीं न कहीं गलती उस से हरियाणा के पार्टी प्रबंधन में भी हो गई है. प्रदेश के पार्टी प्रभारी बीके हरिप्रसाद का रिपोर्ट कार्ड खुद हाईकमान ने नज़रंदाज़ किया है. उनके खुद प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारिणी सम्मलेन में मुख्यमंत्री हुड्डा के साथ स्टेज शेयर न करने का इतिहास है. विधानसभा का चुनाव हारने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष चले आ रहे फूल चन्द मुख्यमंत्री के प्यार में ऐसे पागल हैं कि यूथ कांग्रेस से फासला बना के चलते रहे हैं. मुख्यमंत्री यूथ कांग्रेस के कार्यक्रम का बहिष्कार करते हैं क्योंकि उसका अध्यक्ष उनको खरी खोटी सुना देने वाले मंत्री कैप्टन अजय यादव का बेटा है.

हरियाणा काग्रेस में दरअसल आवे का आवा ही ऊता पड़ा है. जहां हाथ रख दो वहीं दर्द है. आज कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बिरेंदर सिंह को लगता है कि उनकी परंपरागत सीट उचाना से विधानसभा का चुनाव उन्हें हुड्डा ने हरवाया. हुड्डा के लाये उम्मीदवार जेपी ने तो बाकायदा लिख भेजा है हाईकमान को कि उन्हें बिरेंदर, केन्द्रीय मंत्री शैलजा और हरियाणा में मंत्री किरण चौधरी ने हरवाया. उनकी हरवा सकने की क्षमता मान लेने के बाद जेपी तीनों के खिलाफ कारवाई की मांग भी कर रहे हैं. यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चिरंजीवी और उनके पिता मंत्री अजय यादव के साथ हुड्डा की खटपट भी जगजाहिर है. हुड्डा को अजय और राव इंदरजीत दोनों नहीं सुहाते. बावजूद इसके कि अजय यादव सात बार जीते हुए विधायक हैं और अहीरवाल में कांग्रेस आज है तो उन के दम से है. भिवानी में आज भी बंसी लाल के नाम का सिक्का चलने के बावजूद हुड्डा की उनकी बहु किरण या उनके बेटे रणबीर महेंद्र दोनों से दोनों में आपसी सम्बन्ध बहुत अच्छे नहीं होने के बावजूद नहीं पटती. सिरसा में सांसद अशोक तंवर वहां के मंत्री बनाए गए विधायक के कार्यक्रमों में नहीं जाते. तंवर से सुलह को कहने पे मंत्री गोपाल कांडा सरकारी कार पटक के निकल जाते हैं. कांग्रेस मुंह ताकती रह जाती है. पूरे हरियाणा में दो ही दलित चेहरे हैं कांग्रेस के पास. मुलाना और शैलजा. दोनों अम्बाला से हैं. मुलाना, मुलाना से हारे विधायक. शैलजा जीती हुई सांसद. दोनों को एक ही शहर में होने के बावजूद कभी एक दूसरे के यहाँ देखा नहीं गया है.

जैसे ज़माने ने मारे जवां कैसे कैसे और ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे, वैसे ही अव्वल तो कांग्रेस ने खुद पहले तो भजन लाल, बिरेंदर, राव इंदरजीत, मांगे राम गुप्ता और अवतार भडानाओं को हाशिये पर धकेलने में कसर नहीं छोड़ी. बाकी कसर चुन चुन कर हुड्डा ने पूरी कर दी है. हालत ये हो गई है कि एक से करता नहीं दूसरा कोई बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे चुप तेरी महफ़िल में है. सब के सब जैसे बगावत और तख्तापलट पे उतरे हुए हैं. ऊपर बने रहने की लड़ाई हर जगह पहले भी थी. लेकिन हरियाणा में तो वो कांग्रेस को अब वो मिटा देने की हद तक है. हिसार इसका सबूत है. कभी कभी लगता है कि कांग्रेस अब इस आंतरिक अराजकता को काबू कर पाने की हालत में ही नहीं है.

है भी नहीं. जानकार बताते हैं कि हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री भी हाईकमान की मर्ज़ी नहीं, मजबूरी से बने थे. तथ्य ये हैं कि हरियाणा के पिछले चुनाव परिणामों के बाद विधायकों से मुख्यमंत्री कौन पर सोनिया गाँधी की मर्ज़ी का प्रस्ताव पास करा लिया गया था और दलितों को साथ रखने की सियासी ज़रूरत के चलते शैलजा को मुख्यमंत्री बनाने का मन हाईकमान ने बना लिया था. फिर ऐसी सूचनाएं आईं कि हुड्डा के कुछ समर्थकों ने मोहसिना किदवई के दफ्तर के बाहर हंगामा काट दिया और उधर चुनाव संपन्न करा कर वापिस लौट रहे केन्द्रीय बालों को रोहतक में कुछ भी अनहोनी हो सकने के मद्देनज़र हरियाणा में ही रोक दिया गया. कांग्रेस डर गई. हुड्डा मुख्यमंत्री हो गए. तब तो कांग्रेस डरी हुई थी या नहीं. लेकिन आज ये डर ज़रूर है कि हुड्डा को हटाया तो उसकी सरकार जा सकती है. क्या पता हुड्डा खुद ही गिरवा दें. और नहीं हटाया तो कांग्रेस पहले तो अपने नेताओं से गई. अब जनता से जाएगी.

मैं नजूमी नहीं हूँ. सबसे सयाना पत्रकार भी नहीं. मैंने कहा था हिसार में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रहेगी. मैं कह रहा हूँ कि आने वाले दोनों विधानसभाई चुनाव भी कांग्रेस हारेगी. रतिया से भी और आदमपुर से भी. रतिया में इन्डियन नेशनल लोकदल और आदमपुर में कुलदीप विश्नोई के उम्मीदवार को जीतना चाहिए. जो भी जीते. ये लगभग तय है कि हिसार संसदीय चुनाव की तरह कांग्रेस अपनी लाज भी नहीं बचा पाएगी. कांग्रेस को हुड्डा की कुर्बानी तब चाहिए.

तभी शुरू होगी हरियाणा में कांग्रेस की असली अग्निपरीक्षा. कांग्रेस को तब अपनी सरकार भी बचानी होगी और हरियाणा में अपना अस्तित्व भी. सरकार बचाने से मेरा मतलब हुड्डा की ही तरफ से हो सकने वाले भितरघात से है और हरियाणा में अस्तित्व से मेरा तात्पर्य हरियाणा के उस औद्योगिक पतन के प्रारम्भ से है जो हुड्डा सरकार की नाकामियों की वजह से मारुति के पलायन के रूप में सामने आया है. हिसार आएगा, जाएगा. लेकिन मारुति गई तो हरियाणा में न कोई नया उद्योग आएगा, न रोज़गार रहेंगे, न शांति. और ये सब प्रशासनिक दिवालियेपन का परिणाम है. माना कि औद्योगिक सदभाव हरियाणा में सर्वश्रेष्ठ कभी भी नहीं रहा. लेकिन गुडगाँव के हौंडा काण्ड के बाद से हालात बहुत ज़्यादा बिगड़े हैं. मारुति प्रकरण इसकी पराकाष्ठा है. परिणति उसके पलायन के रूप में परिभाषित हो ही गई है. प्रशासनिक अक्षमता का इस से बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि सरकार ने हाई कोर्ट की मनाही के बावजूद हडताली कर्मचारियों को मारुति परिसर में धरने, नारेबाजी करने दी. तब भी कि जब वे भीतर काम कर रहे कर्मचारियों के खाने पानी तक का रास्ता जाम किये हुए थे. मारुती प्रबंधन को मान ही लेना पड़ा कि सरकार उसके माल असबाब या उसके वफादार कर्मचारियों की जान तक की हिफाज़त नहीं करेगी. अपनी करोड़ों रूपये की अचल संपत्ति अपने चलते हुए करोड़ों के कारोबार को छोड़ कर जाने का निर्णय आसान नहीं होता. मगर मारुति को लेना पड़ा. ये सरकार के प्रति औद्योगिक घरानों के अविश्वास का परिणाम है.

एक गलती कभी दूसरी का निदान नहीं होती. लेकिन कांग्रेस वो करती आई है. गया हुआ हिसार कभी लौट भी आएगा. हुड्डा को भी देर सबेर जाना ही है. वे अभी नहीं जा रहे तो इस कारण से कि आगामी विधानसभा उपचुनावों की लगभग निश्चित हार के बाद कोई और अपनी गर्दन नपवाना नहीं चाहता. लेकिन मारुती के साथ हरियाणा से जो रोज़ी रोटी जा रही है उसकी भरपाई कांग्रेस नहीं कर पाएगी. ये बात अगर जनता के गले उतर गई तो फिर कांग्रेस को यूपी बिहार की तरह यहाँ लम्बे बनवास पर जाना है.

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