
—विनय कुमार विनायक
तुम कैसे हिन्दू हो?
हिन्दुत्व की कुछ भी पहचान नहीं,
तुमने शिखा को रखना छोड़ दिया,
तुमने उपनयन से मुख मोड़ लिया,
तुम मंदिर उपासना को नहीं जाते हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
तुमने धोती पगड़ी को छोड़ दिया,
तुमने तिलक से नाता तोड़ लिया,
तुम सोलह संस्कार तक भूल गए,
तुम कड़ा कलावा भी त्याग दिए हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
संविधान ने देश को सेकुलर बनाया,
मगर तुम सेकुलर क्यों बन गए हो?
तुम दलित भोज में शामिल ना होते,
मगर मस्जिद में इफ्तार खाने जाते हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
भजन-कीर्तन, पूजा-अरदास नहीं करते,
सारे रीति-रिवाज नारियों के सिर मढ़ते,
तुम सिक्खों सा व्रतवीर नहीं बनते हो,
तुम धनलोलुप अमीर बन जाना चाहते हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
तुम सभी सनातनी को हिन्दू कहते,
मगर ऊंच-नीच जाति में बंटे हुए हो,
दलितों के हाथ का अन्न नहीं खाते,
तुम अवसर मिलते ही उनको सताते हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
जिन्हें तुम नीच-पतित कहते रहे हो,
उनके धर्मांतरित हो जाने पे डरते हो,
डर से ही सही उन्हें तुम कद्र करते हो,
उनकी संख्या बढ़ते ही पलायन करते हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
ईष्या द्वेष जलन में जीते रहते हो,
अपनों को अपना नहीं समझते हो,
दूसरों से अच्छाई की उम्मीद रखते,
लेकिन दूसरे की भलाई नहीं करते हो!
तुम कैसे हिन्दू हो?
तुम निज मुख पे बेबसी क्यों लिए हो?
तुम अपने देवताओं से सीख नहीं लेते,
राम कृष्ण शिव दुर्गा के कर में अस्त्र
क्यों? जान लो आत्म रक्षार्थ जरुरी होते!
तुम कैसे हिन्दू हो?
शस्त्रधारी आर्य संतान पहचान छुपाए हो,
हनुमान सा हाथ में वज्र-ध्वज तिरंगा हो,
बुरे दौर हेतु राम सा शक्ति साधना करो,
क्षमा शोभती उनको जिनके पास संबल हो!
—विनय कुमार विनायक