कोरोना से निपटने में कितने सक्षम हैं हम?

कैसा है देश का बुनियादी स्वास्थ्य ढ़ांचा?

योगेश कुमार गोयल

            पूरी दुनिया में कोरोना से दो लाख से अधिक व्यक्ति संक्रमित हो चुके हैं और करीब दस हजार मौत के मुंह में समा चुके हैं। हालांकि भारत में अभी तक 170 के आसपास कोरोना संक्रमितों के मामले सामने आए हैं, जिनमें से कुछ इलाज के बाद ठीक होकर घर भी लौट चुके हैं। दुनियाभर के 170 से भी ज्यादा देशों में फैल चुके कोरोना संक्रमण के मामले में भारत की स्थिति भले ही अभी बेहतर है लेकिन जिस गति से यह संक्रमण पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है और मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है, उसी के मद्देनजर भारत सरकार द्वारा तमाम एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं और देश में इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर इस भावी खतरे से निपटने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं। दुनियाभर में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा नकदी के उपयोग से इसके और बढ़ने के खतरे के मद्देनजर लोगों से नकद लेन-देन के बजाय ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का उपयोग करने की अपील की जा रही हैं।

            भारत में कुछ दिनों पूर्व तक कोरोना को लेकर हालात काफी हद तक सामान्य थे और शुरूआती दौर में केरल में मिले तीन मरीजों के ठीक होने के बाद राहत की सांस ली जा रही थी लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर जिस प्रकार देखते ही देखते कोरोना मरीजों की संख्या तीन से बढ़कर डेढ़ सौ के पार पहुंच गई है, उसे देखते हुए भारत की सीमाओं को सील करना, विदेशों से आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना और कई शहरों में सिनेमा हॉल, मॉल, स्कूल-कॉलेज, जिम इत्यादि अस्थायी रूप से बंद कर देना समय की बड़ी मांग थी। हालांकि इससे देश की अर्थव्यवस्था को काफी बड़ा नुकसान होगा लेकिन कोरोना की वैश्विक दहशत को देखते हुए ये कदम बेहद जरूरी थे।

            भारत में कोरोना फिलहाल द्वितीय स्टेज में है अर्थात् ज्यादातर विदेशों से आए व्यक्ति ही संक्रमण के शिकार मिले हैं लेकिन कोरोना के आसन्न खतरे को देखते हुए यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है कि अगर देश में कोरोना का संक्रमण बढ़ता है तो भारत इससे निपटने में कितना सक्षम है? कोरोना जांच के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की 72 लैब जांच कर रही हैं और एनएबीएल से मान्यता प्राप्त कुछ निजी लैब भी जल्द ही देश में कोरोना संक्रमण की जांच करने लगेंगी। सरकारी क्षेत्र में जांच के लिए फिलहाल आईसीएमआर की 72 लैबोरेटरी हैं तथा इस माह के अंत तक 49 लैब और काम करने लगेंगी। दरअसल कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के मद्देनजर नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिबरेशन लैबोरेटरीज (एनएबीएल) से मान्यता प्राप्त 51 लैबोरटरी के साथ सरकार की बात चल रही है। स्थितियों से निपटने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा सीआरपीएफ को देश में 37 स्थानों पर 5440 बिस्तरों की क्षमता वाले केन्द्र तैयार करने के पहले ही निर्देश दिए जा चुके हैं। स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्द्धन का कहना है कि भारत में इस वायरस का संक्रमण न फैले और अगर कुछ मामले सामने आते भी हैं तो उनका पूरा इलाज किया जा सके, ऐसी व्यवस्था की जा चुकी है। उनका कहना है कि किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है और कोरोना संक्रमण को लेकर यह गलत सोच है कि इसका इलाज संभव नहीं। स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक देश कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार है और किसी को भी डरने या घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार हर मोर्चे पर तैनात है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने संदेश में कह चुके हैं कि हमें कोरोना से घबराने की नहीं बल्कि साथ मिलकर काम करने और आत्मसुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए छोटे लेकिन महत्वपूर्ण उपाय करने की जरूरत है।

            हालांकि सरकार द्वारा कोरोना को भारत में महामारी बनने से रोकने के लिए समुचित प्रबंध किए जा रहे हैं लेकिन कोरोना के मंडराते खतरे के मद्देनजर अगर देश के बुनियादी स्वास्थ्य ढ़ाचे पर नजर डालें तो ‘नेशनल स्वास्थ्य सर्वे 2019’ की रिपोर्ट के मुताबिक स्थिति संतोषजनक नहीं है। देशभर में डॉक्टरों तथा स्वास्थ्य कर्मियों की काफी कमी है और खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति काफी खराब है। तमाम अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में बिस्तर नहीं हैं और जहां हैं, वहां भी उनकी हालत ठीक नहीं है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि अगर ग्रामीण भारत की सिर्फ 0.03 फीसदी आबादी को जरूरत पड़े तो सरकारी अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं होंगे। हालांकि इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल 25778 सरकारी अस्पतालों में से करीब 21 हजार ग्रामीण क्षेत्रों में हैं जबकि पांच हजार शहरी क्षेत्रों में। देखने में यह भले ही बहुत सुखद पहलू प्रतीत होता है लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो ग्रामीण भारत में 73 फीसदी सरकारी अस्पताल होने के बावजूद देश के सभी सरकारी अस्पतालों में मौजूद 7.13 लाख बिस्तरों में से ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में महज 2.6 लाख बिस्तर ही हैं। राष्ट्रीय औसत के आधार पर प्रत्येक दस हजार लोगों पर करीब छह बिस्तर ही उपलब्ध हैं और बिहार की हालत तो इस मामले में बेहद खराब है, जहां प्रत्येक 9 हजार लोगों पर सरकारी अस्पतालों में केवल एक ही बिस्तर उपलब्ध है। कुछ अन्य राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, गुजरात इत्यादि में करीब 2 हजार लोगों पर एक बिस्तर उपलब्ध है।

            अगर बात करें सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता की तो वहां भी तस्वीर बदरंग दिखाई देती है। देशभर में करीब 1.17 लाख सरकारी डॉक्टर हैं अर्थात् लगभग 10700 लोगों पर एक डॉक्टर ही उपलब्ध है। ग्रामीण भारत में यह औसत 26 हजार लोगों पर एक डॉक्टर का है। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019 के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 6.2 करोड़ की ग्रामीण आबादी पर सरकारी अस्पतालों में 70 हजार लोगों के लिए केवल एक डॉक्टर उपलब्ध है। इसी प्रकार बिहार तथा झारखंड में भी ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार लोगों के लिए केवल एक डॉक्टर उपलब्ध है। सरकारी अस्पतालों में रजिस्टर्ड नर्स और मिडवाइव्स की संख्या बीस लाख से अधिक है, जिसका औसत प्रत्येक 610 लोगों पर एक नर्स का है। अगर सरकारी अस्पतालों की बात की जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर औसतन हर 47 हजार व्यक्तियों पर एक सरकारी अस्पताल है लेकिन बड़ी आबादी वाले राज्यों की स्थिति इस मामले में अच्छी नहीं है। जहां अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्यों में एक लाख आबादी पर क्रमशः 16 व 12 सरकारी अस्पताल हैं, वहीं देश की कुल 21 फीसदी आबादी वाले राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात तथा आंध्र प्रदेश में अस्पतालों की संख्या प्रति एक लाख लोगों पर एक से भी कम है। दिल्ली में 1.54 लाख लोगों पर एक, महाराष्ट्र में औसतन 1.6 लाख लोगों पर एक, मध्य प्रदेश में 1.56 लाख तथा छत्तीसगढ़ में 1.19 लाख लोगों पर एक-एक, गुजरात में 1.37 लाख और आंध्र प्रदेश में प्रत्येक दो लाख लोगों पर एक-एक अस्पताल हैं। अरूणाचल प्रदेश तथा हिमाचल में क्रमशः 6300 और 8570 लोगों पर एक-एक अस्पताल उपलब्ध हैं।

            हालांकि फिलहाल संतोषजनक स्थिति यही है कि सरकार तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा समय रहते जिस प्रकार की सक्रियता दिखाई गई है और लोगों को लगातार इस खतरे को लेकर जागरूक किया जा रहा है, उससे लगता है कि हम कोरोना संकट का मुकाबला करने के लिए तैयार हो रहे हैं। भारत में संक्रमण फैलने की स्थिति में उससे निपटने में सबसे बड़ी बाधा यहां सोशल मीडिया के जरिये तेजी से फैलती अफवाहें बन सकती है। इसलिए सबसे जरूरी है कि सोशल मीडिया के ‘महाज्ञानी पंडितों’ की बातों और उनके द्वारा कोरोना से बचने के लिए सुझाये जाने वाले बेतुके उपायों पर भरोसा करने के बजाय सरकार द्वारा लगातार जारी किए जा रहे दिशा-निर्देशों पर ही अमल किया जाए और देशी नुस्खों को अपनाने के बजाय डॉक्टरों की सलाह पर ही भरोसा करें। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है कि तमाम वे जरूरी सावधानियां अपनाई जाएं, जिनका परामर्श सरकार तथा योग्य चिकित्सकों द्वारा लगातार दिया जा रहा है। अगर हम साफ-सफाई की आदतें अपनाने के साथ-साथ बचाव के उपायों पर भी अमल करें तो भारत में कोरोना को महामारी बनने से रोकना मुश्किल नहीं है लेकिन यदि हमारी गलत आदतों और लापरवाहियों के कारण देश में कोरोना संक्रमण फैलता है तो जिस तरह का देश का बुनियादी स्वास्थ्य ढ़ांचा है, उसे देखते हुए भारत में स्थिति विकराल हो सकती है। इसलिए बेहद जरूरी है कि कोरोना को लेकर घबराएं नहीं बल्कि पूरी तरह सतर्क रहें और सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करें ताकि कोरोना को भारत में महामारी का रूप धारण करने से आसानी से रोका जा सके।

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