वंदना शिवा

मार्च 2015 में, बिल गेट्स ने टेड टॉक के दौरान कोरोनो वायरस की एक छवि दिखाई और दर्शकों को बताया कि यह हमारे समय की सबसे बड़ी संभावित तबाही होगी। उसने कहा कि जीवन के लिए वास्तविक खतरा “मिसाइल नहीं, रोगाणु हैं”। उस टेड टॉक के पांच साल बाद आज जब कोरोनो वायरस महामारी सूनामी की तरह धरती पर फैल गई तो उसने महामारी को ‘विश्व युद्ध’ बताते हुए युद्ध की भाषा को पुनर्जीवित कर दिया है। वह कहता है कि “कोरोनो वायरस महामारी पूरी मानवता के खिलाफ खड़ी है।”
लेकिन सच्चाई यह है कि महामारी कोई युद्ध नहीं है। बल्कि यह तो युद्ध का परिणाम है। जीवन के खिलाफ युद्ध! धन-लोलुपता से जुड़े यांत्रिक मस्तिष्क ने मनुष्य की सोच में यह भ्रम पैदा कर दिया है कि प्रकृति, आदमी से अलग एक मृत, निष्क्रिय वस्तु है, जिसका अधिक से अधिक दोहन किया जाना है। लेकिन वास्तव में हम एक ही जैव-क्षेत्र का हिस्सा हैं और हम विरोम (वायरसों के जमाव) हैं । बायोम और विरोम हैं हम। जब हम हमारे जंगलों, हमारे खेतों तथा अपनी आंतरिक जैव विविधता पर आक्रमण करते हैं, तो दरअसल हम स्वयं के विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं।
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कोरोना वायरस से उत्पन्न स्वास्थ्य-आपात स्थिति, जैविक विलुप्तता, जैव-विविधता के विनाश और जलवायु संकट से पैदा होने वाली स्वास्थ्य-आपात स्थिति से अलग नहीं है। इन सभी आपात स्थितियों की जड़ में वह यांत्रिक, सैन्यवादी, महज मानव-केन्द्रित वैश्विक दृष्टि है, जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग और श्रेष्ठ मानता है। जो अन्य प्राणियों पर अपना स्वामित्व मानता है, जिसे वह नियंत्रित और संचालित कर सकता है। ये सभी आपात स्थितियां उस आर्थिक मॉडल में निहित हैं, जो असीम विकास और असीम लालच के भ्रम पर आधारित हैं, जो ग्रहों की सीमाओं का उल्लंघन करते हैं और जो पारिस्थितिक तंत्र तथा विशिष्ट प्रजातियों की अखंडता को नष्ट करते हैं।
नई बीमारियाँ पैदा होती हैं क्योंकि वैश्विक रूप से औद्योगिकीकृत गलत कृषि-तकनीक; जानवरों, पौधों और अन्य जीवों की पारिस्थितिकी प्रणालियों को नष्ट कर देती हैं तथा उनके आवास, उनकी अखंडता या उनके स्वास्थ्य का कोई सम्मान नहीं करती। आज कोरोनो वायरस जैसी बीमारी का वैश्विक प्रसार इसलिए हुआ है, क्योंकि हमने अन्य प्रजातियों के आवास पर आक्रमण किया है तथा वाणिज्यिक लाभ और लालच के लिए पौधों और जानवरों से छेड़छाड़ की है और एकल कृषि विकसित की है। जब हम जंगलों को साफ करते हैं, खेतों को औद्योगिक एकल कृषि में बदलते हैं, विषैले, पोषक तत्वों से रहित वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, अपने आहार को सिंथेटिक रसायनों तथा आनुवंशिक इंजीनियरिंग एवं औद्योगिक प्रसंस्करण के माध्यम से अवक्रमित करते हैं और इस भ्रम को स्थायी बनाते हैं कि – पृथ्वी और जीवन हमारे लाभ और शोषण के लिए कच्चे माल हैं।
हम आज पूरी दुनिया से वास्तव में जुड़ रहे हैं, लेकिन मनुष्यों सहित सभी जीवों की जैव विविधता, अखंडता और आत्म-संगठन की रक्षा करके स्वास्थ्य की एक निरंतरता से जुड़ने के बजाय, हम बीमारी के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, 3.3 अरब के वैश्विक कार्यबल में से 1.6 अरब अनौपचारिक अर्थव्यवस्था वाले श्रमिकों (जो श्रम बाजार में सबसे कमजोर लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं) की उपार्जन करने की क्षमता को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है। क्योंकि वे श्रम बाज़ार के उन क्षेत्रों में कार्यरत थे जिसे लौकडाउन ने सबसे अधिक प्रभावित किया। विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार करीब 25 करोड़ लोगों को खाने के लाले पड़ सकते हैं, लगभग तीन लाख लोगों की प्रतिदिन जान जा सकती है ! यह भी एक महामारी ही है जो लोगों को मार रही है। जान बचाने के लिए हत्या करना कैसा इंसाफ है?
स्वास्थ्य क्या है? स्वास्थ, जीवन और जीवन प्रणाली के बारे में है। लेकिन बिल गेट्स और उनके जैसे लोग स्वास्थ्य के जिस मानक को पूरी दुनिया में लागू कर रहे हैं और बढ़ावा दे रहे है, उसमें कोई ‘जीवन’ नहीं है। गेट्स ने ऊपर से नीचे तक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए विश्लेषण और नुस्खे के लिए वैश्विक गठजोड़ बनाया है। वह पहले समस्याओं को परिभाषित करने के लिए धन देता है और फिर अपने प्रभाव और धन का उपयोग कुछ खास समाधानों को थोपने के लिए करता है और इस प्रक्रिया में वह और अमीर होता जाता है। उसकी ‘फंडिंग’ से प्रकृति और संस्कृति का लोकतंत्र और जैव विविधता का क्षरण होता है। उसका ‘परोपकार’ केवल परोपकारी-पूंजीवाद नहीं है, बल्कि यह परोपकारी-साम्राज्यवाद है ।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने स्पष्ट रूप से प्रकट कर दिया है कि कैसे हमें नियंत्रित करने योग्य वस्तु बनाया जा रहा है, ताकि हमारा शरीर और दिमाग उनके नए उपनिवेश बन सकें, जिस पर वे आक्रमण कर सकें।
साम्राज्य उपनिवेश बनाते हैं और उपनिवेश, स्वदेशी साझा जीवंत परिसंपत्तियों को अपने मुनाफे के लिए कच्चे माल के स्रोतों में बदल देते हैं। यह एकांतिक शोषक तर्क, प्रकृति में जीवन को बनाए रखने वाले आंतरिक संबंधों को देखने में असमर्थ है। यह विविधता, नवीकरण के चक्र, देने और साझा करने के मूल्य, आत्म-संयोजन एवं पारस्परिकता की शक्ति और क्षमता के प्रति अंधा है। यह उस कचरे के प्रति भी अंधा है जो यह पैदा करता है और उस हिंसा के प्रति भी जो यह फैलाता है। विस्तारित कोरोनावायरस लॉकडाउन, मानवताविहीन भविष्य के लिए एक प्रयोगिक अनुभव रहा है।
26 मार्च, 2020 को जब लॉकडाउन जारी था और कोरोनावायरस महामारी अपने चरम पर थी, उसी समय माइक्रोसॉफ्ट को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा एक पेटेंट दिया गया था। WO 060606 नामक यह पेंटेंट घोषणा करता है कि ‘ मानव शरीर की तमाम गतिविधियों का उपयोग क्रिप्टोकरेंसी सिस्टम की खनन प्रक्रिया में किया जा सकता है …’। माइक्रोसॉफ्ट जिन ‘शारीरिक गतिविधियों’ का उपयोग करना चाहता है, उसमें मानव शरीर से निसृत विकिरण, मस्तिष्क की गतिविधियाँ, शारीरिक द्रव प्रवाह, रक्त प्रवाह, अंग संचालन – जैसे चेहरे, आँखों अथवा मांसपेशियों की गतिविधि सहित सभी अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं, जो छवियों, तरंगों, संकेतों, ग्रंथों, संख्याओं, डिग्री, या किसी अन्य जानकारी या डेटा द्वारा समझी और दर्शाई जा सकती हैं।
यह पेटेंट दावा करता है कि हमारा शरीर और दिमाग को उनकी बौद्धिक संपदा है। उपनिवेशवाद में, उपनिवेशवादी स्वदेशी लोगों की भूमि और संसाधनों को लेने का अधिकार स्वयं को देते हैं, उनकी संस्कृति और संप्रभुता को समाप्त करते हैं और चरम मामलों में उन्हें ही समाप्त कर देते हैं। पेटेंट WO 060606, माइक्रोसॉफ्ट द्वारा ऐसी ही एक घोषणा है कि हमारे शरीर और दिमाग उसके नए उपनिवेश हैं। हमारे शरीर से डेटा निकाले जाएंगे जैसे कि हम उनके लिए ‘कच्चे माल’ की खदानें हों, न कि संप्रभु, आध्यात्मिक, जागरूक, बुद्धिमान लोग, जो ज्ञान और नैतिक मूल्यों के साथ उस प्राकृतिक और सामाजिक दुनिया के कार्यों और प्रभावों के बारे में निर्णय लेते हैं, जिसके हम एक अविभाज्य हिस्सा हैं। हम एक ‘उपयोगकर्ता’ हैं। एक ‘उपयोगकर्ता’ डिजिटल साम्राज्य में एक विकल्पहीन उपभोक्ता है।
लेकिन गेट्स की दृष्टि इतने ही तक सीमित नहीं है। वास्तव में, वह और भी अधिक भयावह है। वह हमारे बच्चों के दिमाग, शरीर और आत्माओं को उपनिवेश बना लेना चाहता है; इसके पूर्व कि हमारे बच्चों को यह समझने का अवसर मिले कि सबसे दुर्बल लोगों के लिए स्वतंत्रता और संप्रभुता किस तरह दिखती और महसूस होती है।
मई 2020 में, न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू कुओमो ने गेट्स फ़ाउंडेशन के साथ ‘शिक्षा को फिर से मजबूत करने’ के लिए साझेदारी की घोषणा की है। एंड्रयू कुओमो ने गेट्स को एक दूरदर्शी कहा है और तर्क दिया है कि महामारी ने “इतिहास में एक ऐसा अवसर बनाया है जब हम वास्तव में [गेट्स के] विचारों … [स्कूलों-कॉलेंजों की] इतनी सारी इमारतें, इतने सारे क्लास रूम क्यों हैं, जबकि हमारे पास तकनीक उपलब्ध है..”
वास्तव में, गेट्स दो दशकों से संयुक्त राज्य की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं । उसके लिए छात्र डेटा के खदान हैं। यही कारण है कि वह जिन चीजों वह को बढ़ावा देता है वह है -अटेंडेंस, कॉलेज में नामांकन, गणित के प्राप्तांक एवं पढ़ने की क्षमता के लिए प्राप्त अंक; क्योंकि इनका आसानी से निर्धारण किया जा सकता है और डेटा उत्पन्न किया सकता है। शिक्षा को पुनर्कल्पित करते हुये, बच्चों पर निगरानी प्रणालियों के माध्यम से नजर रखी जाएगी कि क्या वे कक्षाओं से दूर से घर पर अकेले क्लास करते हुये चौकस हैं? वह एक दु:स्वप्न है जहां बच्चे कभी भी स्कूलों में नहीं लौटते, उनके पास खेलने के अवसर नहीं होते। समाज, संबंध और रिश्तों के बिना बनी उस दुनिया में दोस्ती और प्यार का अभाव होता है।
जब मैं गेट्स और दूसरे तकनीक-मुगलों की बनाई दुनिया के भविष्य में झाँकती हूँ तो मुझे एक ऐसी मानव जाति दिखाई देती है, जो अनेक ध्रुवों में बंटी हुई ‘फालतू’ लोगों का समूह हैं, जिनका उस नए साम्राज्य में कोई स्थान नहीं है। वे, जो उन राज्यों में शामिल होंगे भी, वे डिजिटल दासों से तनिक ही बेहतर होंगे।
हम विरोध कर सकते हैं। हम एक और ही भविष्य का बीजारोपण कर सकते हैं, अपने लोकतंत्रों को गहरा कर सकते हैं, अपनी सर्वजनिकता पुनः प्राप्त कर सकते हैं, पृथ्वी को, जो अपनी विविधता और स्वतंत्रता में समृद्ध है, एक पृथ्वी परिवार के जीवंत सदस्य होने के नाते पुनरुर्जित कर सकते हैं – अपन एकता और पारस्परिकता के साथ। यह एक स्वस्थ भविष्य है। यह वह है जिसके लिए हमें लड़ना चाहिए। यह वह है जिसका हमें दावा करना चाहिए।
[वंदना शिवा एक विश्व-प्रसिद्ध पर्यावरण चिंतक और कार्यकर्ता हैं। उपरोक्त आलेख उनकी अंग्रेजी में प्रकाशित पुस्तक ‘Oneness vs. the 1%: Shattering Illusions, Seeding Freedom’ (चेल्सी ग्रीन पब्लिशिंग, अगस्त 2020) में शामिल किए गए नए उपसंहार पर आधारित है, जिसे लेखिका की अनुमति से हिंदी में अनुदित किया गया है। भारत में इस पुस्तक को Women Unlimited ने प्रकाशित किया है। अनुवादक शैलेंद्र राकेश चिकित्सक एवं साहित्यिक पत्रिका किरण वार्ता के संपादक हैं ]