मतदाता किस कटोरे का विषपान करे?

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अब्दुल रशीद

लोकतंत्र में मतदान करना हर नागरिक का उत्तरदायित्व होता है और अधिकार भी। यही लोकतंत्र की विशेषता है कि एक आम आदमी अपने मत से अपने लिए सरकार के नुमाइन्दे चुन सकता है। जनता के द्वारा जनता की सरकार के लिए मतदान के जरिए अपना प्रतिनिधि चुनना अपने आप में महत्वपुर्ण है और लोकतंत्र में एक एक मत की कीमत होती है। जाहिर है कि जनता का सर्वाधिक वोट पाने वाला व्यक्ति ही विधायक सांसद के रुप में उसका प्रतिनिधि बन सकता है। इस तरह जनता जैसी सरकार चाहे वैसी सरकार चुन सकती है। शर्त यह है कि जनता के प्रतिनिधि बन जाने के दावेदार लोगों के चेहरे,चाल और चरित्र भी साफ सुथरे हो तभी आम आदमी उनमें से एक को अपना प्रतिनिधि चुन सके।

देश के चार राज्यों में मतदान होने जा रहा है और आम आदमी भी मतदान के लिए तैयार है परंतु वह विवश और लाचार भी है कारण प्रतिनिधि बनने के नाम पर जितने लोग मैदान में है उसमें से अधिकांश का चेहरा और चरित्र मतदाता को धुंधला दिखाई दे रहा है। शराफत की नकाब के पीछे अधिकांशतः के चाल और चरित्र असमाजिक पृष्ठभूमि के है। विकासपुरुष बनने की क्षमता किसी में भी नहीं नजर आ रही।

सियासत करने को उत्सुक राजनैतिक दल भी ऐसे ऐसे उम्मीदवार मैदान में चुनाव लड़ने के लिए उतारे हैं जो उन्हे जीत दिला सके और जीत के नाम पर हर चीज को नजरअंदाज करना राजनैतिक दल की नीति बन गई है। ऐसे में राजनैतिक दल विष भरे कटोरे ही है। किसी कटोरे में धार्मिक विष भरा है तो किसी कटोरे में जातिवाद का विष। किसी कटोरे में माफिया विष है तो किसी कटोरे में अवैध दौलत का विष। किसी कटोरे में आतंक और गुण्डा गर्दी का विष है तो किसी कटोरे में भ्रष्ट आचरण का विष। विष तो हर कटोरे में है। संवैधानिक मजबूरी कहे या जागरूक नागरिक कर्तव्य मतदाता को राजनैतिक विषपान तो करना ही है। ऐसे में अहम सवाल है मतदाता किस कटोरे का विषपान करे? बेहतर होता इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में एक ऐसा भी बटन होता जो इनमें से कोई नहीं का विकल्प होता। क्योंकि अगर जनता विषपान को मजबूर नही रहेगी तो भविष्य में राजनैतिक दल भी विष भरे कटोरे परोसने से निश्चित तौर पर परेहज करेंगें।

 

 

1 COMMENT

  1. सबसे कम बुरे उम्मीदवार को चुना जाय तो सुधार आना शुरू हो सकता है मगर इसकी पहल जनता को ही करनी होगी क्योंकि नेताओं को आज के हालात में लाभ है वे इसे नहीं बदलना चाहते.

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