अमेरिका-चीन में पुनः शुरू हुए व्यापार युद्ध का कारोबारी लाभ आखिर कैसे उठाएगा भारत?

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कमलेश पांडेय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हम भारतीयों के मनोमस्तिष्क में  इसलिए हमेशा बसे रहते हैं कि उन्होंने आपदा को अवसर में बदलने का हुनर दिखलाया-सिखलाया-बतलाया है। इस हेतु राष्ट्रीय जज्बे को जिस शानदार-जानदार तरीके से उन्होंने प्रदर्शित किया-करवाया है, उसने हम सबको उनका मुरीद बना दिया है। वैश्विक महामारी कोरोना के पहले, कोविड-19 के दौरान और उसके बाद भी उन्होंने दुनियावी त्रासदी/पारस्परिक संघर्षों-संकटों को जितना सकारात्मक तरीके से लिया है, उससे भारत पुनः विश्वगुरू बनने की ओर अग्रसर है। उनके नेतृत्व में भारत अब याचक कम, दाता ज्यादा नजर आता है। 

यही वजह है कि समावेशी व्यापार प्रचलन स्थापित-संचालित-नियंत्रित करने में विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की विफलता के बाद दुनिया के देशों में मचे व्यापार युद्ध मतलब टैरिफ वॉर से उतपन्न होने वाले द्विपक्षीय कारोबारी आपदा को तीसरे पक्ष हेतु अवसर में बदलने के लिए भारत के लिए क्या संभावनाएं हैं और उसकी क्या रणनीति होनी चाहिए, इस विषय पर हम यहां चर्चा करेंगे। क्योंकि आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध भारतीय निर्यातकों के लिए फायदेमंद हो सकता है। 

समझा जाता है कि अमेरिका-चीन जैसे दो बड़े देशों के इस अप्रत्याशित कदम से अमेरिकी बाजार में भारतीय निर्यात बढ़ने की उम्मीद है। वहीं, आंकड़ा जन्य अनुभव बताता है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल (2016-2020) के दौरान जब अमेरिका ने चीनी चीजों पर टैरिफ लगाया था, तो उस दौरान भारत चौथा सबसे बड़ा फायदा पाने वाला देश था।

इसलिए विशेषज्ञों का कहना है चीन से आयात पर अमेरिका की ओर से टैरिफ लगाए जाने से भारत को अमेरिका में निर्यात के लिए बहुत अवसर मिलेंगे। क्योंकि टैरिफ लगाए जाने से चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर असर पड़ेगा। 

बताया जाता है कि इससे अमेरिकी बाजार में उनके सामान की कीमतें बढ़ जाएंगी। इससे अमेरिकी खरीदार उच्च लागत से बचने के लिए वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करेंगे। इससे भारत को फायदा होगा। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 1 फरवरी 2025 को एक इग्जेक्युटिव आदेश पर हस्ताक्षर किए। जिसमें मेक्सिको से आने वाले सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया। वहीं, कनाडा से आने वाले सामानों पर भी 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया। जबकि, कनाडा के ऊर्जा संसाधनों पर 10 प्रतिशत टैरिफ ही लगाने की घोषणा की गई। इस ऑर्डर में ही चीन से आयात पर भी 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बात थी, जिससे चीन बौखला गया।

अलबत्ता, अमेरिका के जवाब में चीन ने भी कुछ अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगा दिया है। उसके इस जवाबी कदम के साथ ही दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध शुरू हो गया है। उधर, अमेरिकी कदम के जवाब में मेक्सिको और कनाडा ने भी अमेरिकी टैरिफ के बदले में जवाबी टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। इससे व्यापार युद्ध कई देशों के बीच पहुंच गया है। निकट भविष्य में इसके चक्कर में और कई देशों के आने की संभावना है। स्वाभाविक है कि इन सभी कदमों का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

बता दें कि इस बारे में अपनी सफाई देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि यह कदम अवैध इमिग्रेशन और ड्रग्स तस्करी से उपजी चिंताओं को लेकर उठाया गया है। क्योंकि रिपब्लिकन नेता ट्रंप ने इन दो मुख्य मुद्दों को अपने चुनावी अभियान का आधार बनाया था। चूंकि चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद से ही उनकी ओर से जनता से किये हुए वादों को पूरा करने की दिशा में कदम उठाए जाने के संकेत दिए जा रहे थे। इसलिए यह कदम उठाया गया है।

सवाल है कि चीन के अमेरिका पर टैरिफ लगाने का कितना प्रभाव उसपर पड़ेगा, तो जानकारों के मुताबिक जवाब यह होगा कि अमेरिका पर इसका सीमित प्रभाव हो सकता है। क्योंकि अमेरिका दुनिया में तरल प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, लेकिन उस निर्यात में चीन की हिस्सेदारी महज 2.3 फीसदी के आसपास है। वहीं, चीन का सबसे बड़ा कार आयात यूरोप और जापान से होता है। इसलिए विशेषज्ञ इसे चीन की सौदेबाजी की शक्ति हासिल करने के तौर-तरीके के रूप में इसे देख रहे हैं।

वहीं, जहां तक इस ट्रेड वॉर के चीन पर असर होने का सवाल है तो जानकार बताते हैं कि चीन 120 से अधिक देशों के लिए प्रमुख व्यापार भागीदार है और अमेरिका उनमें से सिर्फ एक है। वहीं, पिछले दो दशकों में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में व्यापार के महत्व को लगातार कम किया है और घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी की है। यही वजह है कि आज आयात और निर्यात का चीन के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 37 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि 2000 के दशक की शुरुआत में यह 60 फीसदी से अधिक था। इसलिए 10 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ उसे सिर्फ चुभेगा, जबकि पेइचिंग इस झटके को बर्दाश्त कर सकता है।

कुछ यही वजह है कि चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने भी अमेरिका के खिलाफ कई उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इसके साथ ही गत मंगलवार को उसने अमेरिकी सर्च इंजन ‘गूगल’ की जांच की भी बात कही, ताकि उसके कारोबारी हितों को चोट पहुंचाया जा सके। बताया गया है कि चीन द्वारा अमेरिकी कोयला और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) उत्पादों पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। साथ ही कच्चे तेल, कृषि मशीनरी, बड़ी कारों पर भी 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। वहीं, मंत्रालय ने कहा कि अमेरिकी उत्पादों पर नए टैरिफ 10 फरवरी से शुरू यानी प्रभावी होंगे।

वहीं, चीन की ओर से यह भी कहा गया है कि अमेरिका का एकतरफा टैरिफ बढ़ाना वर्ल्ड ट्रेड अऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का घोर उल्लंघन है। यह उनकी समस्याओं को हल करने में कोई मदद नहीं करेगा। हां, इतना जरूर है कि यह चीन और अमेरिका के बीच सामान्य आर्थिक और व्यापार सहयोग को नुकसान पहुंचाएगा। चूंकि वैश्विक थानेदारी के लिए दोनों में आपसी होड़ मची हुई है, इसलिए यह स्वाभाविक कदम भी है। निकट भविष्य में कुछ और कदम भी उठाए जा सकते हैं।

उधर, चीन के स्टेट ऐडमिनिस्ट्रेशन फॉर मार्केट रेगुलेशन ने यह भी कहा है कि वह गूगल पर विश्वास विरोध (एंटीट्रस्ट) कानूनों के उल्लंघन के संदेह में जांच कर रहा है। हालांकि, इसमें किसी टैरिफ का विशेष रूप से जिक्र नहीं किया गया। हालांकि, यह घोषणा वह ट्रंप के 10 प्रतिशत टैरिफ लागू होने के कुछ ही मिनट बाद ही की गई। 

बताया जाता है कि ट्रंप ने मेक्सिको, कनाडा और चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर कड़े टैरिफ लगाने संबंधी एक आदेश पर गत शनिवार को हस्ताक्षर किए थे। इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि फू कांग ने टैरिफ को लेकर अमेरिकी प्रशासन पर निशाना साधा था। इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि व्यापारिक युद्ध से किसी का भला नहीं होता। बकौल कांग, ‘हम इस अनुचित वृद्धि का कड़ा विरोध करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिका को अपनी समस्याओं पर गौर करना चाहिए। ऐसा समाधान ढूंढना चाहिए जो उसके लिए और पूरे विश्व के लिए फायदेमंद हो।’ हालांकि, ट्रंप ने अगले कुछ दिन में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ बातचीत करने की योजना बनाई है। जबकि उनके द्वारा चीन पर लगाया गया 10 प्रतिशत टैरिफ गत मंगलवार से ही लागू हो गया। 

उधर, इक्वाडोर के राष्ट्रपति डैनियल नोबोआ ने भी मेक्सिको की चीजों पर 27 प्रतिशत टैरिफ लागू करने की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि इक्वाडोर के उत्पादकों के साथ निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठाया गया है। माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में नोबोआ ने कहा कि वह मेक्सिको के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है, लेकिन दुर्व्यवहार होने पर नहीं। हालांकि उन्होंने विस्तार से इस बारे में कुछ भी नहीं बताया है। राष्ट्रपति नोबोआ ने सिर्फ इतना कहा है कि जब तक मुक्त व्यापार समझौता यानी एफटीए नहीं होता, मेक्सिको की चीजों पर 27 फीसदी टैरिफ लागू होगा।

वहीं, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रुडो और मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम के साथ अलग-अलग बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दोनों देशों पर टैरिफ लगाए जाने के फैसले को लागू करने पर कम से कम एक महीने के लिए रोक लगाने पर सहमति जताई है। बता दें कि टैरिफ लगाए जाने के बाद, कनाडा के पीएम टुडो ने कहा था कि अमेरिका की कार्रवाई ने हमें एकजुट करने के बजाय अलग थलग कर दिया है। उन्होंने कहा था कि उनका देश शराब और फलों सहित 155 अरब डॉलर तक के अमेरिकी आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। टुडो ने ‘एक्स’ पर पोस्ट अपने हालिया बयान में कहा है कि, ‘ट्रंप के साथ बातचीत में उन्होंने सीमा सुरक्षा पर अतिरिक्त सहयोग का वादा किया। इसके तहत टैरिफ को कम से कम 30 दिन के लिए रोक दिया जाएगा और हम साथ मिलकर काम करेंगे।’ उन्होंने कहा कि वह भी अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई रोक रहे हैं। 

वहीं, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने कहा कि ट्रंप ने मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ को एक महीने के लिए रोक दिया है। शिनबाम ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘मेक्सिको तुरंत नैशनल गार्ड के 10,000 सदस्यों की तैनाती के साथ उत्तरी सीमा को मजबूत करेगा, ताकि मेक्सिको से अमेरिका में फेंटेनाइल सहित मादक पदार्थों की तस्करी को रोका जा सके।’ वहीं, अमेरिका भी मेक्सिको में हथियारों की तस्करी रोकने के लिए तैयार है।

इसलिए सवाल यह भी है कि अमेरिका-चीन में पुनः शुरू हुए व्यापार युद्ध का कारोबारी लाभ आखिर कैसे उठाएगा भारत? उसे इस हेतु पुनः व्यापक तैयारी करनी होगी। खुद को दुनियावी मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करना होगा। ताकि चीन की तरह ही भारत पर भी दुनियावी देशों का भरोसा बढ़ सके। भारत को सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि कनाडा, मेक्सिको और चीन को भी निर्यात बढ़ाने हेतु पहल करनी चाहिए। पीएम मोदी का ‘मेक इन इंडिया, मेक फ़ॉर द वर्ल्ड’ अभियान, उनकी इसी दूरदर्शिता की ओर इशारा भी करता है। इस नजरिए से भारतीय मानव संसाधनों और आधारभूत संरचनाओं में भी वो लगातार निवेश कर-करवा रहे हैं। इसलिए उम्मीद है कि भारत समकालीन वैश्विक परिस्थितियों का भरपूर कारोबारी फायदा अपनी जनसंख्या के भरणपोषण और राष्ट्र को एक नई मजबूती प्रदान करने के लिए उठाएगा।

कमलेश पांडेय

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