गजल

जीवन मर्म

poverty1

पाषाण हृदय बनकर कुछ भी नहीं पाओगे ।

वक्त के पीछे तुम बस रोओगे पछताओगे ।।

ये आस तभी तक है जब तक सांसें हैं।

सांस के जाने पर क्या कर पाओगे ।।

इन मन की लहरों को मन में न दबाना तुम ।

ग़र मन में उठा तूफां कैसे बच पाओगे ।।

भार नहीं डालो ये जान बड़ी कोमल ।

इसके थकने से तुम तो मिट जाओगे ।।

ये जन्म मनुज है जाया न इसे करना ।

मरकर भी रहो जीवित ऐसा कब कर पाओगे ।।

भौतिक जीवन मृगतृष्णा है तुम दूर रहो ।

सद्कर्मों को पतवार बना भव पार उतर जाओगे ।

पाषाण हृदय बनकर कुछ भी नहीं पाओगे ।।