हिमाचल मे विकसित होती शिक्षा व्यवस्था

अन्नपूर्णा मित्तल

25 जनवरी 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से लेकर अब तक प्रदेश का 40 साल का सफरनामा काफी रोचक रहा है। प्रदेश ने कृषि, बागवानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, सड़कें एवं संचार क्षेत्र में कई मील के पत्थर कायम किए हैं। भले ही प्रदेश में अब तक हुई तरक्की 100 फीसदी जनता को लाभान्वित नहीं कर पाई हो लेकिन जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रदेश की तरक्की का गवाह तथा एक अहम हिस्सा बना है। शिक्षा, दूरसंचार, बिजली और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रदेश में काफी काम हुआ है।

 

जिस समय प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला उस समय प्रदेश काफी नाजुक दौर में था। प्रदेश हर क्षेत्र में पिछड़ा था। लेकिन 40 सालों में प्रदेश ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन तरक्की की है। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद प्रदेश ने ऊर्जा राज्य के रूप में अपना नाम स्थापित किया है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश ने नए आयाम स्थापित किए हैं। एक समय था जब प्रदेश के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए पंजाब, दिल्ली सहित दूसरे राज्यों में भटकना पड़ता था। आज प्रदेश में सरकारी क्षेत्र चार यूनिवर्सिटी अस्तित्व मे आ गई हैं जो युवाओं को सस्ती एवं गुणात्मक शिक्षा दे रही हैं।

 

पहाड़ी राज्य होने के कारण प्रदेश के अपने संसाधन नहीं थे और प्रदेश की निर्भरता सरकारी नौकरी पर थी। 110 रुपए मासिक वेतनमान वाला क्लर्क वैश्विककरण के दौर में 10,000 रुपए पहला वेतन लेता है। 651 रुपए प्रति व्यक्ति आय आज 50 हजार प्रति व्यक्ति तक जा पहुंच गई है। प्रदेश में चार दशक पहले राज्य में 4926 स्कूल होते थे और अब स्कूलों की संख्या 15186 हो गई है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित एवं विकास निगम के सौजन्य से अनुसूचित जाति वर्ग के निर्धन परिवारों के मेधावी छात्र जो धन के अभाव से अपनी व्यवसायिक व तकनीकी उच्च शिक्षा अध्ययन को जारी नहीं रख सकते है उनके लिए, शिक्षा ऋण प्रदान करता है ताकि वे अपना अध्ययन जारी रख सके। इस योजना का शुभारम्भ वर्ष 2010-11 मे हुआ है। इस योजना के तहत मैट्रिक स्तर से ऊपर व्यवसायिक एवं तकनीकी विषयों में मान्यता: प्राप्त शिक्षा संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों को शिक्षा ऋण उपलब्ध करवाया जाएगा। इजीनिरिंग, मैडिकल, मैनेजमैंट, मैनेजमैंट, आकीटैकचर ,वायोटैक्नौजी, लां जरनालीजम, आदि कोर्स इसके अंतर्गत आते हैं।

 

हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा सुविधाओं के विस्तार की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। फिर भी राज्य की अधिकांश जनता जीवनयापन के स्तर पर ही है और राज्य के विशाल प्राकृतिक संसाधनों का योजनाबद्ध रूप से दोहन होना अभी बाक़ी है। 1970 में शिमला में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही प्रदेश में उच्च शिक्षा संभव हो सकी। इस विश्वविद्यालय से 50 से अधिक महाविद्यालय संबद्ध हैं।

शिमला में एक चिकित्सा महाविद्यालय, पालमपुर में एक कृषि विश्वविद्यालय और सोलन के निकट एक बाग़बानी और वन विश्वविद्यालय भी है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडी (शिमला) और सेंट्रल रिसर्च इस्टिट्यूट (कसौली) में शोध कार्य होता है। 1960 के दशक के बाद के वर्षों से प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के विद्यालयों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, इसी के अनुरूप इनमें दाख़िला लेने वालों की संख्या भी बढ़ी। हमीरपुर में एक अभियांत्रिकी महाविद्यालय भी है। प्रो. प्रेमकुमार धूमल ने अटल शिक्षा कुंज नामक एक शिक्षा केन्द्र का सृजन भी किया है।

 

इंडिया टुडे, जो हमारे देश की एक प्रसिध्द पत्रिका है, ने हिमाचल प्रदेश को निवेश के लिए अच्छे माहौल, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में हासिल हुई उपलब्धियों के मामले में भारत का नं.1 राज्य माना है। यहाँ 18,000 नये अध्यापकों की नियुक्ति की जा रही है। सरकार प्राथमिक शिक्षा के अलावा, उच्चतर और व्यवसायिक शिक्षा पर भी काफी ध्यान दे रही है जिनकी इस राज्य में अब तक उपेक्षा की जाती रही थी।

मुख्यमंत्री ने 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान गत तीन वर्षों में शिक्षा की अधोसंरचना सृजन को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गई, जिसे अगले दो वर्षों में भी जारी रखा जाएगा ताकि हिमाचल प्रदेश को देश का विश्व स्तरीय शिक्षा केन्द्र बनाया जा सके।

हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक सुन्दरता, स्वच्छता और पर्यावरण विश्व श्रेणी के विश्वविद्यालयों और संस्थाओं की स्थापना जैसे गैर- प्रदूषणीय पहलों के लिए आदर्शत: अनुकूल है जो सम्पूर्ण भारत और विश्व भर के विद्यार्थियों को आकर्षित कर सकती है। इससे इस राज्य के लोगों के लिए आमदनी और रोजगार के अवसर बढेंगे।

 

 

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