कविता

मानव वही जो मानव के शिक्षा स्वास्थ्य बसोबास की बात करे

—विनय कुमार विनायक

आज डर के साये में जी रहा इंसानियत,

आज सच कहने का छिन लिया गया हक,

आज पीछे छूट गया है इंसान का ईमान,

आज इंसानी वजूद से अहं रब की इबादत!

आज धर्म मजहब के नाम पर

लोग हो गए इतने आत्ममुग्ध  

कि तर्क वितर्क की हमारी परम्परा

शिद्दत से हो गई है विलुप्त!

आज धर्मग्रंथों की हीनग्रंथी के बचाव में

वकालत की जाने लगी है जोर जबरदस्त

अब कवि शायर लेखक तो बहुत मिल जाते

पर कोई कबीर नानक गोविंद नहीं बन पाते!

आज पूरी तरह से पहरा है

कबीर दादू दयाल रैदास मीरा होने पर

राजा राम मोहन राय ईश्वरचंद होना गुनाह है!

आज रज्जब रहीम रसखान अमीर खुसरो सुजान

होने की राह में ढेर सारे रोड़े अटका दिए गए

अपने ही भाईयों को विदेशी मजहब में भटका दिए!

हर तरह घुप्प अंधेरा है

सबको अपने-अपने ईश्वर खुदा धर्मग्रंथ का

अंधभक्त हो जाना हो गया अति प्यारा है

किसी को खुद की कटी नाक पर है बड़ा गुमान

किसी को अपनी जाति के जालिम मवाली पर अभिमान!

किसी को अपने पूर्वजों के द्वारा आदमी को

दी गई गालियों को सहेजकर रखने की है बड़ी जिद,

आज खोटे सिक्कों को प्रचलन में बनाए रखने की

व्यापक सहमति मगर कुरीति मिटने की नहीं है उम्मीद!

आज मानवता के दुश्मन की लंबी हो गई जुबान

देश भक्ति और मानवता की बात करने वाले को

सीधे तौर पर नकार व दुत्कार दिए जाते ये कहके

कि हमारे धर्मग्रंथ में मनाही इंसानी जज्बाती बातें!

हमेशा मानव-मानव में भेद-भाव अलगाव करना,

अपने धर्म मजहब को उम्दा कहके घृणा फैलाना

किसी मनुज या आदम की संतान का काम नहीं,

जो ईर्ष्या द्वेष जलन आक्रोश आडम्बर त्याग के

पर दुख निवारण में काम आए सच्चा इंसान वही!

मानव वो है नहीं,जो हमेशा धर्म की बिसात बिछाता,

रह रह कर अपने ईश्वर खुदा रब की औकात बताता,

इंसान हेतु इंसानियत से बड़ा होता नहीं है कोई रिश्ता,

इंसानियत जिनके दिल में बसे वो सबसे बड़ा फरिश्ता!

ईश्वर अल्लाह खुदा रब को मानने वाला सच्चा बंदा

काम करते नहीं गंदा,चलाते नहीं छल छंद का धंधा,

मानव वही जो मानव के शिक्षा स्वास्थ्य भोजन और

बसोबास खातिर करे प्रयत्न,चले मिलाके कंधे से कंधा!

—विनय कुमार विनायक