दीपा लिंगढिया
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड
मुझे भी तो चाहिए आजादी
हां, थी मैं अनजान की,
दुनिया ऐसी भी होती है,
बचपन की हर बात याद आती है,
तुम किसी से बात नहीं कर सकती,
लड़की हो, अपनी मर्यादा में रहो,
तुम सिर्फ घर के ही काम करो,
तुम ही घर की इज्जत हो,
अपनी नजरें झुकाकर रखो,
तुम्हें कल पराये घर जाना है,
हर चीज को तरीके से करो,
क्या नहीं थी मेरी भी कोई जिंदगी?
क्यों बचपन से मुझे रोका गया?
हर एक बात पर टोका गया,
आज हर लड़की को चाहिए आज़ादी,
ख्वाहिश और सपने को पूरा करने की,
वो सपने जो हैं हर लड़की के अपने,
अब मैं ज़रूर लड़ेगी ज़माने से,
नहीं रुकूंगी अधिकारों को पाने से,
तब तक लड़ती रहूंगी ज़माने से