विविधा

मैं हिन्दू होने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ : डॉ. मीणा

प्रवक्‍ता डॉट कॉम के लोकप्रिय व नियमित कंट्रीब्‍यूटर डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ ने यह टिप्‍पणी डॉ. कुसुमलता केडिया के लेख ‘ईसाई धर्म और नारी मुक्ति’ पर एक टिप्‍पणीकार डॉ. राजेश कपूर के उकसावे पर की थी। ‘प्रवक्‍ता’ पर प्रकाशित डॉ. मीणा के लेखों पर लंबी चर्चा होती रही है। उनके विचार व व्‍यक्तित्‍व को लेकर भी कई टिप्‍पणीकार बार-बार सवाल उठाते रहे हैं। निम्‍नलिखित टिप्‍पणी में डॉ. मीणा ने सब कुछ स्‍पष्‍ट कर दिया है। (सं.)

इस लेख के समर्थन में पाठक बढचढकर टिप्पणी लिख रहे हैं, वे कितने सच्चे हैं? इस बात का आकलन इस बात से ही हो जाता है कि वे स्वयं को भारतीय संस्कृति का प्रवर्तक और संरक्षक बतलाते हैं| भारत की संस्कृति को संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति बताते/दर्शाते हैं| भारत की संस्कृति पर हमला करने वालों को देख लेने या जान से मारने की धमकी देने वालों का खुला या मूक समर्थन करते हैं| इसके उपरान्त भी भारतीय संस्कृति में मित्र की जो परिभाषा दी गयी है, उसकी धज्जियॉं उड़ाते हुए भी मुझ जैसे लोगों के जान के दुश्मन बनकर भी, अगले ही पल मुझे मित्र लिखते हैं और अगली ही पंक्ति में अपने मित्र का सार्वजनिक रूप से अपमान भी करते हैं|

ऐसे तथाकथित भारतीय संस्कृति के संरक्षक मित्र इस लेख को पढकर फूले नहीं समा रहे हैं| एक भी व्यक्ति श्री अनुपम जी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर गौर करने या समर्थन करने के लिये एक शब्द नहीं लिख रहा है|

मेरे ऐसे तथाकथित मित्रों को मेरे बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्तियॉं हैं| जिन्हें समय-समय पर मैं तोड़ता भी आ रहा हूँ और आगे भी तोड़ता रहूँगा, लेकिन सच्चाई को लिखने में कभी भी इनसे भय नहीं खाने वाला हूँ|

इसलिये यहॉं पर कुछ बातें स्पष्ट करना जरूरी है कि-

१. मेरे तथाकथित मित्रों यदि आप प्रवक्ता पर या अन्य किसी भी साईट पर ईमानदारी से देखेंगे तो पायेंगे कि गत दो माह से मेरी उपस्थिति सांकेतिक ही रही है| जिसका कारण मेरी अस्वस्थता रही| जिसके चलते मेरे सभी कार्य प्रभावित रहे, लेकिन अब मैं फिर से स्वस्थ हो रहा हूँ और मेरी दिनचर्या नियमित होने जा रही है| इसके अलावा किसी भी आलेख से भागने का कोई कारण नहीं है|

२. दूसरे मेरे इन तथाकथित मित्रों को यह भी ज्ञात होना चाहिये कि मुझे नैट-मीनिया नहीं है| मैं हर लेख पर अपनी टिप्पणी नहीं लिखता हूँ, क्योंकि यह कार्य मेरा पूर्ण कालिक कार्य नहीं है| मैं अपना शौक पूरा करने या अपनी बात को कहने के लिये वेब मीडिया का उपयोग करता हूँ| पत्रकारिता मेरा व्यवसाय नहीं है|

३. मैं भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान का मुख्य संस्थापक और वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यक्ष हूँ, जिसके करीब पॉंच हजार आजीवन सदस्य देश के १८ राज्यों में यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं| इस संगठन की नीति के अनुसार हम किसी गैर-सदस्य, किसी उद्योगपति या किसी भी देशी या विदेशी सरकार या किसी भी ऐजेंसी से अनुदान स्वीकार नहीं करते हैं|

४. मैं एक समाचार-पत्र का सम्पादक हूँ, जिसकी प्रकाशक मेरी पत्नी है| इस समाचार-पत्र में हम सरकारी विज्ञापन स्वीकार नहीं करते हैं|

५. मैं सम्पूर्ण रूप से धार्मिक व्यक्ति हूँ और मेरी ईश्‍वर में अटूट श्रृद्धा एवं आस्था है| मैं हिन्दू होने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ| संसार के जितने भी धर्मों के बारे में, मैं अभी तक जान पाया हूँ, उन सभी में, मैं हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ| यह अलग बात है कि हिन्दू धर्म में अत्यधिक अच्छा हो सकने की सर्वाधिक सम्भावना है, लेकिन उसे मनुवादियों ने दबा रखा है| इसके उपरान्त भी हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ है| यदि समय मिला तो इस बारे में विस्तार से लिखूँगा|

६. मुझे अनेक राज्यों में सरकारी एवं सामाजिक सेवा करने का अवसर मिला है| इस दौरान मेरा वास्ता सभी धर्मों के लोगों से पड़ा है| यदि सार रूप में कहा जाये तो मुझे जितने भी क्रिश्‍चनों से वास्ता पड़ा उनमें से एक भी वफादार नहीं मिला| जबकि मेरे सर्वाधिक विश्‍वासपात्र मित्रों/शुभचिन्तकों में ब्राह्मणों की संख्या सर्वाधिक है| और ये सभी मेरे ब्राह्मन मित्र प्रवक्ता पर या कहीं पर भी प्रस्तुत मेरे सभी विचारों को जानते हैं और फिर भी से मुझसे असहमत नहीं हैं| क्योंकि ये सब मुझे समग्रता से जानते हैं| भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान के सचिव एवं कोषाध्यक्ष ब्राह्मण हैं| मैंने आज तक कभी भी ब्राह्मणों से नफरत नहीं की है, बल्कि मनुवादी, जिसे ब्राह्मणवादी विचारधारा भी कहते हैं, को और इसके पोषकों को मैं मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन (भारतीय सन्दर्भ में) मानता हूँ| इस अन्तर को नहीं समझ सकने वाले लोग मुझे हिन्दुत्व का और ब्राह्मणों का दुश्मन मान बैठे हैं| इसमें कम से कम मेरा दोष नहीं है|

७. यद्यपि मैं मानवअधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों का बड़ा समर्थक हूँ और मुझे इस क्षेत्र में कार्य करने में खुशी होती है, लेकिन भारतीय हालातों के बारे में और विशेषकर भारत के दबे-कुचले बहसंख्यक लोगों के बारे में लिखते या कार्य करते समय, विदेशों में क्या हो रहा है, इस बारे में, मैं अधिक चिन्तन नहीं करता, क्योंकि मेरा वास्ता भारत से है, इण्डिया से नहीं| मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति को भारत में ही रहना है और भारत में मेरे जैसे लोगों के नम्बर एक दुश्मन क्रिश्‍चन नहीं, बल्कि मनुवादी हैं| इसलिये मैं विदेशी ताकतों के कृत्यों को बहाना बनाकर मुनवादियों के अत्याचारों को नजरअन्दाज नहीं कर सकता! अभी भी भारत की बहुसंख्यक हिन्दू और गैर-हिन्दू आबादी के दु:खों का बड़ा कारण मनुवाद है| जिसे आसानी से प्रमाणित किया जा सकता है|

८. आएसएस से मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है, लेकिन चूँकि संघ मनुवाद का समर्थक तथा बहुसंख्यक वंचित भारतीयों को समान हक प्रदान करने का विरोध करता है, इसलिये मेरी नजर में संघ देश का दुश्मन है| भाजपा संघ का राजनैतिक चेहरा है|

९. मुझे कॉंग्रेस से कोई व्यक्तिगत लगाव नहीं है, सिवाय कॉंग्रेस की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नीति के, जबकि मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी में ये दोनों गुण नहीं थे, इस कारण से मैं उसे इस देश का राष्ट्रपिता बनाये जाने तक के खिलाफ हूँ| गॉंधी देश के बहुसंख्यक वंचित भारतीयों को समान हक प्रदान करने के विरुद्ध था, क्योंकि वह कट्टर मुनवादी हिन्दू था| गॉंधी को धर्मनिरपेक्षता या सामाजिक न्याय की विचारधारा में नाटकीय आस्था थी| आजादी से पूर्व के कॉंग्रेसियों में,गॉंधी सबसे बड़ा कट्टर हिन्दू था और देश का विभाजन गॉंधी की ही इसी मनुवादी सोच का नतीजा है|

जहॉं तक इस लेख का सवाल है, एक भारतीय स्त्री द्वारा, भारतीय स्त्री के हालतों के बारे में असत्य, मंगदंथ और काल्पनिक तथ्य प्रस्तुत करने वाला इससे घटिया लेख मैंने मेरे जीवन में नहीं पढ़ा!