ऋचा कुलश्रेष्ठ

मुरादाबाद में छजलैट के बैरमपुर गाँव निवासी हरबंस ने जब आईसीटी परियोजना के प्रशिक्षण में हिस्सा लिया था तब यह नहीं सोचा था कि यह प्रशिक्षण उनके जीवन का रुख ही बदल देगा। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें विकास खंड प्रभारी जितेंद्र कुमार ने धान का श्री पद्धति के बारे में बताया। हरबंस ने एक प्रयोग के तौर पर ब्लॉक प्रभारी की देखरेख में सिर्फ एक बीघा जमीन पर धान की रोपाई श्री पद्धति से की। इस पद्धति के अनुसार जब उन्होंने मात्र 12 दिन की पौध की रोपाई बिना पानी वाले खेत में की तो गाँव वालों ने उनका उपहास भी उड़ाया लेकिन हरबंस ने हौसला नहीं हारा।
परियोजना के कर्मचारियों और अधिकारियों के सहयोग से उन्होंने पूरी मेहनत से धान की रोपाई की। कुछ ही समय में उनके रोपे हुए धान के अंकुर निकलने शुरू हो गए जो कि साधारण विधि से रोपे गए धान के अंकुरों से करीब तीन गुना ज्यादा थे। इसके अलावा उनकी इस फसल पर रोग और कीट का भी कोई प्रभाव नहीं हुआ। इससे उनके गाँव के वे लोग आश्चर्यचकित रह गए जो उनका उपहास उड़ाया करते थे। इस नई पद्धति से हरबंस की एक बीघा जमीन में पाँच कुंतल 70 किलो धान की पैदावार हुई जबकि साधारण विधि से बोए गए खेत से उन्हें चार कुंतल 30 किलो धान मिलता था। हरबंस कहते हैं कि पैदावार बढ़ने के साथ साथ बीज, खाद, पानी और दवाई पर होने वाला खर्च भी बेहद कम हुआ।
अपने इस प्रयोग से उत्साहित होकर हरबंस ने अगले साल छह बीघा जमीन में श्री पद्धति से धान की रोपाई की है और उनकी देखादेखी दूसरे कई किसानों ने भी आईसीटी अधिकारियों की मदद से इसी पद्धति से धान की रोपाई की और कम खर्च में अधिक उत्पादन हासिल किया।
उधर, बिजनौर में नूरपूर के मोरना गाँव के आलोक कुमार ने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आईसीटी परियोजना के कृषक प्रशिक्षण में हिस्सा लेते वक्त मधुमक्खी पालन के बारे में जानकारी प्राप्त की।
फिर उन्होंने अलग से समय लेकर मधुमक्खी पालन के बारे में विस्तृत जानकारी ली। तब उन्हें इस व्यवसाय के बारे में कुछ साहित्य दिया गया और उचित प्रशिक्षण के लिए जलीलपुर के सैंदवार में मधुमक्खी पालन कर रहे रमेश सिंह के पास भेज दिया गया जहाँ आलोक कुमार ने इस काम के बारे में विधिवत जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने 3500 रुपये प्रति बक्से के हिसाब से दस बक्से खरीद कर अपने गाँव में लगाए। फिर तो उनका काम धीरे धीरे इतना बढ़ा कि डेढ़ साल में उन्होंने दस बक्सों से 80 बक्से कर लिए और एक बक्से से करीब 60-75 किलो शहद प्रति वर्ष के हिसाब से प्राप्त करने लगे।
उन्होंने बताया कि उनका शहद हरिद्वार में 60 रुपए किलो थोक के भाव पर बिक जाता है और इससे उन्हें प्रति वर्ष ढ़ाई से तीन लाख रुपए तक की आमदनी हो जाती है। इसके अलावा उन्होंने अपने ही गाँव के तीन और लोगों को भी इस काम से जोड़ लिया है और उन्हें भी रोज़गार उपलब्ध करवा रहे हैं। वे इस स्वरोज़ग़ार के लिए आईसीटी परियोजना और इसके कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देना नहीं भूलते।
इसी तरह आईसीटी परियोजना के माध्यम से मुरादाबाद के बैरमपुर गाँव के बिजली न होने की समस्या से ग्रस्त अनेक किसानों ने सोलर लाइटें लगवाकर, बिजनौर के गाँव भगवानपुर के किसानों ने पशुओं का मुफ्त टीकाकरण करवाकर और बिजनौर के ही नयागाँव निवासी चंद्रपाल सिंह ने परियोजना के ब्लाँक प्रभारी की देखरेख में सब्जियों की खेती कर भरपूर लाभ प्राप्त किया है।
भारत सरकार की आईसीटी परियोजना में किसानों को लाभांवित करने के लिए सीएफ़टी के तहत पहले कुछ गाँवों का चयन किया जाता है उसके बाद चयनित गाँवों का सर्वेक्षण करवाया जाता है। सर्वेक्षण में पाई गई क्षेत्रीय जरूरतों और कमियों के आधार पर किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। किसानों को उनकी मिट्टी, जलवायु और फसल के अनुरूप कृषि संबंधी मुद्दों और प्रणाली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी भी उपलब्ध कराई जाती है ताकि उन्हें कम लागत पर ज़्यादा और टिकाऊ उत्पादन मिले और कृषि संबंधी कार्यों में हर प्रकार के जोखिम को कम किया जा सके। प्रशिक्षण के साथ साथ किसानों को शासन से मिलने वाली सभी सुविधाओं, क्रेडिट कार्ड और ऋण इत्यादि के बारे में समग्र जानकारी भी दी जाती है। कोशिश की जाती है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसानों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके, उनका मुनाफ़ा बढ़े और वे विभिन्न कृषि उत्पादनों में और अधिक निपुण बनें। और परिणामस्वरूप चार फ़ीसदी की ऱाष्ट्रीय कृषि विकास दर हासिल हो। इसके अलावा सकल घरेलू उत्पाद के साथ कृषि के माध्यम से होने वाली आय में भी वृद्धि हो सके।
परियोजना के तहत पूरे उत्तर प्रदेश में किसानों और खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से विकास खंड स्तर पर मौसम केंद्र बनाए गए हैं। इन मौसम केंद्रों में विभिन्न फसलों को प्रभावित करने वाले हर तरह के जोखिमों, प्रतिदिन का तापमान, वर्षा की स्थिति और आर्द्रता इत्यादि का आकलन किया जाता है। किसानों के लिए लाभदायक इस जानकारी को मोबाइल के विशेष क्विक अलर्ट सिस्टम (क्यूएएस) के माध्यम से परियोजना की वेबसाइट पर भेजी जाती है। वेबसाइट से यह जानकारी एसएमएस के माध्यम से प्रत्येक विकास खंड के प्रतिनिधि और गाँव के मुखिया से होती हुई किसानों तक पहुँच जाती है। किसान इस जानकारी का लाभ उठाकर खेती के लिए होने वाले हर प्रकार के जोखिम से बच सकते हैं।
क्विक अलर्ट सिस्टम के माध्यम से मौसम संबंधी जानकारी के अलावा कीट और विभिन्न फसलों के विशेष रोगों के प्रकोप की भी जानकारी किसानों को समय से पहले ही दे दी जाती है। मौसम, मिट्टी, फसल प्रबंधन, जल प्रबंधन, बीज शोधन, बीज बदलाव, पौध प्रबंधन, पशु स्वास्थ्य, मत्स्य पालन, पशु टीकाकरण, अंडा उत्पादन, जल संग्रहण समेत अपनी हर शंका का प्रशिक्षण में या ऑनलाइन निदान होने से किसान प्राकृतिक आपदाओं और अचानक होने वाले नुकसानों से बच जाते हैं।
परियोजना की खास बात यह है कि सरकार को परियोजना की गतिविधियों की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाती है ताकि किसान को कृषि निवेश समय से उपलब्ध कराया जा सके और उनकी फसल को कीड़ों और बीमारियों से बचाने के अलावा प्राकृतिक आपदाओं से भी बचाया जा सके। ग्राम स्तर पर किसानों को उनकी परिस्थिति और कृषि प्रणाली के अनुरूप दिए जाने वाले प्रशिक्षण में ऑनलाइन म़ॉनिटरिंग- प्रबंधन और सूचना संचार तकनीकों के विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे प्रबंध तंत्र खेती के लिए मौजूदा खाद, कीड़े, बीमारी और खरपतवार नाशकों और साधनों का प्रभावी इस्तेमाल और निवेश करवा कर खेती से बेहतरीन गुणवत्ता वाली फसल और अधिकतम मुनाफ़ा पैदा करवा सके। किसानों को उनके फायदे और ज़रूरत के अनुसार कृषि साहित्य भी उपलब्ध कराया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान और बाद में कृषक कॉल सेंटरों के माध्यम से किसानों की कृषि संबंधी समस्याओं के निदान का प्रयास किया जाता है।
किसानों को ऑनलाइन तकनीक से कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जा रही अनेक आधुनिक तकनीकों की जानकारी देने के लिए खेतों पर ही फसल संबंधी प्रदर्शन और तुलनात्मक अध्ययनों की जानकारी देने के लिए कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाता हैं। खेतों की मिट्टी का स्वास्थ्य दुरुस्त रखने के लिए खेतों से ही मिट्टी के नमूने लेकर समय-समय पर उनकी जाँच कराई जाती है और इसके बाद संतुलित खाद और उर्वरकों की संस्तुति कर उनके उचित समय पर उपयोग करने की जानकारी दी जाती है जो पर्यावरण और फसल के लिए हर प्रकार से फ़ायदेमंद साबित हो। किसानों को मुख्य फसलों की क्रय-विक्रय दरों और आवक की जानकारी भी साप्ताहिक रूप से ऑनलाइन ही दी जाती है ताकि वे समय पर अपना उत्पादन उचित मूल्य पर बेच कर लाभांवित हों।
श्री आर. सिंह जी, आपको लेख अच्छा लगा और कुछ और जानकारियाँ आपने मांगी हैं। यह देखकर मुझे अच्छा लगा कि कोई तो है जो ऐसे विषयों में रुचि रखता है और इस बारे में ज्यादा जानने का इच्छुक भी है। जवाब देने में जो देरी हुई, उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि यह प्रोजेक्ट अभी सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही चल रहा है। प्रोजेक्ट डाला ही उत्तर प्रदेश के लिए गया था जो पास हो गया और वहाँ सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। इसके पूरी तरह से सफल होने के बाद संभवतया दूसरे प्रदेशों में भी इस प्रोजेक्ट को चलाने के लिए अर्जी डाली जाएगी और पास होने पर प्रोजेक्ट को इसी तरह से चलाया भी जाएगा। आईसीटी परियोजना उत्तर प्रदेश के ७१ जिलों के ८२० ब्लाक में २००८ से चलाया जा रहा है और इसमें २००८-०९ में २३२६७१ किसानों को जोड़ा गया था जिसमें २००९-१० में १६०४१४१ किसान और जुड़ कर लाभांवित हो रहे हैं अब २०१०-२०११ के लिए पिछली नवंबर से २०,१८२७९ किसान और जोड़े जा रहे हैं। हर महीने करीब १६ ब्लाकों के १६-१६ गाँवों में किसानों की ट्रेनिंग आयोजित की जाती है। इसके अलावा यह भी उल्लेखनीय है कि अब तक २००८-०९ में १२१९९, २००९-१० में ७९८३८ किसान प्रशिक्षण आयोजित किए जा चुके हैं जबकि १०१०-२०११ में १००५७१ प्रशिक्षण आयोजित किए जाने हैं। यदि कोई और जानकारी भी चाहते हों तो जरूर पूछिएगा। धन्यवाद
ऋचा जी आपका यह लेख पढ़ने में तो अच्छा लगा,पर आप क्या यह बताने का कष्ट करेंगी की इस आई सी टी परियोजना से कितने ग्रामीण लाभान्वित हो रहे हैं?क्या यह परियोजना अभी प्रयोगात्मक रूप में कुछ चुने हुए क्षेत्रों में लागू हुआ है या सामान्यतः देश के या राज्य के अधिकतर किसानों या ग्रामीणों की दशा सुधारने में यह कारगर सिद्ध हुआ है?अगर यह परियोजना,जैसा की आपकी लेख से पता चलता है, इतना लाभदायक है तो इसका जल्द से जल्द विस्तार होना चाहिए.क्या उसके लिए कारगर कदम उठाये गए हैं?कही ऐसा तो नहीं है की थोड़े दिनों में कुछ लोगों को फ़ायदा पहुचाते पहुचाते यह परियोजना ही समाप्त हो जाये और हमारे आम ग्रामीण जनों की हालत वही की वही रह जाये.हम विकास की कितनी ही लम्बी बातें कर ले पर यह कटु सत्य है की जब तक हम आम ग्रामीण जनता को स्वावलंबी न बना दे और उनका कस्बों,शहरों और नगरों की तरफ पलायन न रोक दे तब तक भारत का सर्वांगीण विकास संभव ही नहीं.