राम आए हैं तो रामराज का आना भी तो जरूरी है….

सुशील कुमार ‘ नवीन

राम राज बैंठें त्रैलोका। 

हरषित भए गए सब सोका।।

बयरु न कर काहू सन कोई।

राम प्रताप बिषमता खोई।।

आप भी हैरान हो गए होंगे। अपनी हर लेखनी रूपी अक्षय तूणीर से व्यंग्य के तीक्ष्ण तीर छूटने की जगह आज ह्रदय परिवर्तन कर भक्तिमय वातावरण कैसे बना दिए।

    आपका सोचना वाजिब है और हमारे चित्त का सुकोमल होना भी वाजिब है। हो भी क्यों न हो,जब सारा देश राम के जयकारे लगाने में लगा हुआ है तो हम पीछे क्यों रहें? हमारी आस्था पर सवाल न उठ जाएंगे। 

    प्रधान सेवक ने 22 जनवरी को सम्पूर्ण राष्ट्र को राममय बनाने का आह्वान किया है। दिवाली की तरह इस दिन को प्रकाशमय बनाने की कही है। उनकी बात को टालना सहज थोड़े ही है। विरोधी भी इससे अपने आपको दूर नहीं रख सकेंगे। अब इस दिन हमें क्या करना है? क्या-क्या खरीदारी करनी है इस पर शनिवार को विचार मंथन चल ही रहा था, इसी दौरान ज्ञान प्रसाद जी पधार गए। ज्ञान के अपूर्व भंडार ज्ञान प्रसाद जी हमारे मित्रवत तो है ही, इसके साथ गाहे बगाहे हंसी ठिठोली भी इनके साथ कर ही लेते हैं। बंदे में भले ही सौ बुराइयां हो पर हमारी बात का कभी भी बुरा कभी नहीं मानते। औपचारिक आवभगत के बाद आने का प्रयोजन पूछा तो फूट पड़े।

    बोले – मास्टरजी! एक बात बताओ। यो 22 तारीख आला, कै रोला(मामला) है? सारा देश बावला होया हांडे है। घरवाली मंदिर सजान लाग रही सै। छोरे नै राम दरबार लया कर धर राख्या सै। घी के दीए तैयार सै। 20 किलो लाडवा(लड्डू) का ऑर्डर देन मैं जाण लाग रह्या सूं। मामला मेरी समझ तै दूर सै। राम मंदिर तो भारत में बनदे रहवै सै। कोई नई बात तो है नहीं। अयोध्या में और बण ज्यागा। आप सयाने माणस सो। बेड़ा पार     करो। 

    ज्ञानप्रसाद जी की बात को सुनकर हंसी आ गई तो वो फिर बिदक पड़े। बोले- अजीब आदमी हो। कोई समझदार मान तुमसे बात करने आया है,और तुम उसकी खिल्ली उड़ा रहे हो। नहीं बताना हो तो मत बताओ, हम भी वहीं कर लेंगे जो दुनिया कर रही है। चास (जला)ल्यांगे पांच दीए और बांट द्यांगे लाड्डू। रूठकर उठने लगे तो बमुश्किल उन्हें रोका। 

 मैं बोला- दादा! आप तो नाराज हो गए। आपकी बात सुन आदतन हंसी आ गई। आप बड़े भोले हो दादा। बात मंदिर बनने की नहीं है। बात हमारी आस्था की है। हमारी भावना की है। एकजुटता की है। राम को हम नहीं मानेंगे तो क्या पाकिस्तान,अफगानिस्तान वाले मानेंगे।

   वो बोले – बात तो ठीक है। पर लोग कह रहे हैं कि ये मंदिर के नाम पर राजनीति हो रही है। जो पक्ष में हैं वो इसे उत्सव के रूप में मना रहे हैं। जो विपक्ष में है वो इसे राजनीतिक कार्यक्रम बता रहे है।  मैंने कहा – अच्छा,एक बात बताओ। भेड़ चाल के बारे में तो सुना होगा। बोले- सुना क्या, वो तो देखी भी है। झुंड में से जो भेड़ आगे चल पड़ती है,सब भेड़ें उसके पीछे चल पड़ती हैं। आगे वाली भेड़ कुएं में गिर जाएं तो सारी पीछे कुएं में ही गिर जाती है। पर इस बात से 22 तारीख का क्या मामला। 

   मैंने बोला – आप इस बात का नकारात्मक रूप देख रहे हो। इसका सकारात्मक रूप भी तो अनुभव करो। जरूरी नहीं कि हर अनुकरण आपको गलत दिशा में ले जाए। अनुकरण सही दिशा में हो तो लक्ष्य भी प्राप्त होता है। देवत्व को मानना न मानना इच्छा शक्ति पर निर्भर है। जो राम को मानते हैं वो इसे उत्सव के रूप में मनाएंगे, जो नहीं मानते वो न माने। इस रामोत्सव से दूर रहें तो रहें। 

  ज्ञानप्रसाद जी फिर बोल पड़े। बोले – अच्छा मास्टरजी एक बात और बताओ। राम तो 22 जनवरी को आ जाएंगे। राम के साथ क्या रामराज भी आ जाएगा? इस प्रश्न का जवाब मेरे पास भी नहीं था। फिर भी मैंने इतना ही कहा कि पहले राम को तो आने दो। रामराज भी आ जाएगा। अच्छा जी, मास्टरजी राम राम। यह कहकर ज्ञानप्रसाद मेरे मन मस्तिष्क में रामराज नामक यक्ष प्रश्न छोड़कर निकल गए। बात तो ज्ञानप्रसाद जी की सौ फीसदी सही है। भोलेपन के साथ कही गई इस बात में जो गांभीर्यता है,वो आप सब लोग जानते हो। राम का आना देश के जन जन के लिए तभी सार्थक होगा, जब राम के साथ रामराज का दौर फिर से आ जाए। अब तो मन को इसी बात पर दिलासा दी जा सकती है कि राम आए हैं तो रामराज भी जरूर आएगा। जय श्री राम…।

दैहिक दैविक भौतिक तापा। 

राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।

राम भगति रत नर अरु नारी। 

सकल परम गति के अधिकारी

नोट: ये लेखक के व्यक्तिगत विचार है। इसका किसी की भावनाओ के साथ कोई संबंध नहीं है।

सुशील कुमार ‘ नवीन ‘

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