विविधा

IIT रुड़की : ये कैसी इंजीनियरिंग है? / सुरेश चिपलूनकर

अमूमन ऐसा माना जाता है कि IIT में आने वाले छात्र भारत के सबसे बेहतरीन दिमाग वाले बच्चे होते हैं, क्योंकि वे बहुत ही कड़ी प्रतिस्पर्धा करके वहाँ तक पहुँचते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि यहाँ से निकले हुए प्रतिभाशाली दिमाग अपने नये-नये आईडियाज़ से देश और समाज को लाभान्वित करने के प्रकल्पों में लगायेंगे। जिन लोगों ने IIT रुड़की के छात्रों को टीवी पर “लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता” में भाग लेते देखा होगा, उनकी कुछ धारणाएं अवश्य खण्डित हुई होंगी।

जिन लोगों ने IIT के “प्रतिभाशाली” छात्रों के “पुण्य प्रताप” नहीं देखे या इस बारे में नहीं जानते होंगे, उन्हें बताना जरुरी है कि रुड़की स्थित IIT के छात्रों ने कॉलेज में एक प्रतियोगिता आयोजित की थी, जिसे लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता कहा गया। इसमें लड़कों ने मुँह में लिपस्टिक दबा रखी थी और उसे सामने वाली लड़की के होंठों पर उसे ठीक से लगाना था (मुझे यह नहीं पता कि यह “प्रतिभाशाली” आइडिया किस छात्र का था, किस शिक्षक का था या किसी आयोजन समिति का था), ऐसा “नावीन्यपूर्ण” आइडिया किसी IITian के दिमाग में आया होगा इस बात पर भी मुझे शक है… बहरहाल आइडिया किसी का भी हो, IIT रुड़की में जो नज़ारा था वह पूर्ण रुप से “छिछोरेपन” की श्रेणी में आता है और इसमें किसी भी सभ्य इंसान को कोई शक नहीं है।

इस घटना की तीव्र निंदा की गई और उत्तराखण्ड सरकार ने इसकी पूरी जाँच करने के आदेश दे दिये हैं।

पहले आप “छिछोरग्रस्त वीडियो” देखिये, फ़िर आगे बात करते हैं…

जब यह वीडियो टीवी चैनलों पर दिखाया गया तो स्वाभाविक रुप से “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता”(?) के पक्षधर अपने-अपने तर्क लेकर खड़े हो गये। जब भी कभी इस प्रकार की कोई “अ-भारतीय” और “अशोभनीय” घटना होती है तो अमूमन उसका विरोध ABVP या विहिप द्वारा किया जाता है (NSUI के आदर्श, चूंकि रॉल विंसी घान्दी हैं इसलिये वह ऐसी घटनाओं का विरोध नहीं करती)। फ़िर मीडिया जिसे कि कोई बहाना चाहिये ही होता है कि वे किस तरह “भारतीय संस्कृति” की बात करने वालों को “पिछड़ा”, “बर्बर” और “हिंसक” साबित करें तड़ से इस पर पैनल चर्चा आयोजित कर डालता है। इस पैनल चर्चा में अक्सर “सेकुलरों” के साथ (खुद को तीसमारखां समझने वाले) “प्रगतिशीलों”(?) और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता वाले “वाचाल” मौजूद होते हैं।

ऐसे प्रगतिशील रटे-रटाये तर्क करते रहते हैं, जैसे कि “…यह प्राचीन देश “कामसूत्र” का देश है और हम ऐसे कृत्यों को सामान्य समझते हैं…” (इनसे पूछना चाहिये कि भईया जब यह कामसूत्र और खजुराहो का देश है तो क्या हम फ़ुटपाथ पर सेक्स करते फ़िरें?), या फ़िर तर्क ये होता है कि पुराने जमाने में भी भारतीय संस्कृति में इस तरह का खुलापन और “कामुकता” को राजा-महाराजों ने सामाजिक मान्यता दी थी (तो भईया, क्या हम भी राजाओं की तरह हरम और रनिवास बना लें और उसमें कई-कई औरतें रख लें? हमें मान्यता प्रदान करोगे?)…। इसी मूर्खतापूर्ण तर्क को आगे बढ़ायें तो फ़िर एक समय तो मनुष्य बन्दर था और नंगा घूमता था, तो क्या दिल्ली और रुड़की में मनुष्य को नंगा घूमने की आज़ादी प्रदान कर दें? कैसा अजीब तर्क हैं… भाई मेरे… यदि भारत में खजुराहो है… तो क्या हम भी अपने घरों में “इरोटिक” पेंटिंग्स लगा लें?

रही बात “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” की… तो इसका “वीभत्स देशद्रोही रुप” एक औरत हाल ही में हमें रायपुर, दिल्ली और कश्मीर में दिखा चुकी है, क्या “वैसी” अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता चाहते हैं ये प्रगतिशील लोग? भारत में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का फ़ायदा एक “घटिया चित्रकार” पहले भी उठा चुका है, जिसे बड़ी मुश्किल से खदेड़ा गया था इस देश से।

और सबसे बड़ी बात यह कि, क्या IIT के ये छात्र, लड़कियों को लिपस्टिक लगाने को “स्वतन्त्रता” या “स्वस्थ प्रतियोगिता” मानते हैं? यदि मानते हैं तब तो इनकी बुनियादी शिक्षा पर ही सवाल उठाये जाने चाहिये। क्या IIT में पढ़ने वाले इन छात्रों को पता नहीं है कि आज भारत के गाँव-गाँव में बच्चे यहाँ तक पहुँचने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे हैं और IIT उनके लिये एक सपना है, एक आदर्श है… वहाँ ऐसी छिछोरी हरकते करते उन्हें शर्म नहीं आई? कभी सोचा नहीं कि इस कृत्य के दृश्यों का प्रभाव “बाहर” कैसा पड़ेगा? नहीं सोचा तो फ़िर काहे के “प्रतिभाशाली दिमाग” हुए तुम लोग? भारत के इन चुनिंदा प्रतिभाशाली बच्चों को “अल्हड़”(?) और इसे “नादानी में किया गया कृत्य” कहा जा सकता है? जिस छिछोरे ने यह आइडिया दिया, क्यों नहीं उसी समय उसके मुँह पर तमाचा जड़ दिया गया? आज तुमने लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता रखी है और “प्रगतिशील” उसका गाल बजा-बजाकर समर्थन कर रहे हैं…। इन सड़े हुए दिमागों का बस चले तो हो सकता है कि कल कॉलेज में तुम “ब्रा पहनाओ प्रतियोगिता” भी रख लो, जिसमें लड़के अपनी लड़की सहपाठियों को एक हाथ से “ब्रा पहनाकर देखें”…। फ़िर ABVP और विहिप को गालियाँ दे-देकर मन भर जाये और भारतीय संस्कृति और शालीनता को बीयर की कैन में डुबो दो… तब हो सकता है कि 3-4 साल बाद आने वाली IIT बैच के लड़के “पैंटी पहनाओ प्रतियोगिता” भी रख लें। यदि सड़क पर खुलेआम चुम्बन लेना और देवताओं के नंगे चित्र बनाना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, तो उसके थोबड़े पर हमें भी चार चप्पल लगाने की स्वतन्त्रता दो भईया… यह भेदभाव क्यों?

ऐ, IIT वालों… माना कि तुममें से अधिकतर को भारत में नहीं रहना है, विदेश ही जाना है… तो क्या पश्चिम का सिर्फ़ नंगापन ही उधार में लोगे? तरस आता है ऐसी घटिया सोच पर…। कुछ दिन पहले दिल्ली के राजपथ पर BSF का एक जवान अपने चार बच्चों के साथ पूर्ण नग्न अवस्था में विरोध प्रदर्शन कर रहा था… उसका वह नंगापन भी “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” था, लेकिन नौकरी गंवाने और बच्चों को भूख से बेहाल देखकर उसने व्यवस्था के खिलाफ़ नंगा होना स्वीकार किया, जबकि IIT के इन छात्रों ने “नंगापन” सिर्फ़ और सिर्फ़ मस्तीखोरी के लिये किया… और यह अक्षम्य है… अपने घर के भीतर तुम्हें जो करना है करो, लेकिन सार्वजनिक जगह (और वह भी कॉलेज) पर ऐसी “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिये…।

अब अन्त में कुछ सलाह ABVP और विहिप के लिये –

1) वर्तमान समय में यह बात हमेशा याद रखो कि मीडिया पर एक “वर्ग विशेष” का पूरा कब्जा है, जो हमेशा इस ताक में रहता है कि कैसे आपको बदनाम किया जाये, इसलिये प्रत्येक विरोध का तरीका शालीन, तर्कपूर्ण और सभ्य रखने की पूरी कोशिश करो…

2) छिछोरों को “जमकर रगेदने” का सबसे बढ़िया तरीका है “अदालत” का रास्ता, आपके पास वीडियो उपलब्ध है, उसमें दिखाई दे रहे लड़कों के खिलाफ़ “अश्लीलता फ़ैलाने” का आरोप लगाकर उन्हें कोर्ट में घसीटो। ऐसे दसियों कानून हैं और यदि जेठमलानी और जेटली जैसे वकीलों को छोड़ भी दिया जाये तो कोई भी सामान्य सा वकील इन उच्छृंखल और असभ्य लड़कों को कोर्ट के कम से कम 10-20 चक्कर तो आसानी से खिलवा सकता है। ये IIT के लड़के हैं, कोई ऊपर से उतरे हुए देवदूत नहीं हैं, जब MF हुसैन जैसे घाघ को सिर्फ़ मुकदमों के बल पर देशनिकाला दे दिया तो इन कल के लौण्डों की क्या औकात है।कोर्ट के 2-4 चक्कर खाते ही अक्ल ठिकाने आ जायेगी और फ़िर ऐसी छिछोरी हरकतें भूल जायेंगे और पढ़ाई में ध्यान लगाएंगे। इस प्रक्रिया में एकाध लड़के (जिसने यह फ़ूहड़ आइडिया दिया होगा) को IIT से बाहर भी निकाल दिया जाये तो देश पर कोई आफ़त नहीं टूट पड़ेगी… कम से कम आगे के लिये एक सबक तो मिलेगा।

तात्पर्य यह कि जिस तरह अक्षय कुमार को सरेआम अपनी पत्नी ट्विंकल द्वारा पैंट की चेन खोलने को लेकर पहले सार्वजनिक रुप से और फ़िर कोर्ट में रगेदा गया था, वैसा ही इन लड़कों को भी रगेदना चाहिये… अक्षय-ट्विंकल तो फ़िर भी पति-पत्नी थे, रुड़की के ये छात्र तो पति-पत्नी नहीं हैं। राखी सावन्त या मल्लिका शेरावत टीवी पर ऐसी हरकतें करें तो उसे एक-दो बार “इग्नोर” किया जा सकता है लेकिन कॉलेज (वह भी कोई साधारण दो कौड़ी वाला नहीं, बल्कि IIT) के सांस्कृतिक कार्यक्रम में ऐसी बदनुमा हरकत!!!

3) यही तरीका उन लड़कियों के लिये भी अपनाया जा सकता है जो कि हो सकता है अपने बॉयफ़्रेण्ड की फ़जीहत देखकर उसके बचाव में आगे आयें, लेकिन विरोध का तरीका वही अदालत वाला ही…। वरना कई “पिंक चड्डियाँ” भी आप पर हमला करने को तैयार बैठी हैं।

भारतीय संस्कृति को गरियाने और लतियाने का यह उपक्रम काफ़ी समय से चला आ रहा है और इसमें अक्सर “रईसों की औलादें” शामिल होती हैं, चाहे मुम्बई की रेव पार्टियाँ हों, रात के 3 बजे दारु पीकर फ़ुटपाथ पर गरीबों को कुचलना हो, कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में कपड़े उतारना हो, या फ़िर एमटीवी मार्का “चुम्बन प्रतियोगिता”, “वक्ष दिखाओ प्रतियोगिता”, “नितम्ब हिलाओ प्रतियोगिता”…इत्यादि हो। परन्तु IIT के छात्रों द्वारा ऐसा छिछोरा मामला सार्वजनिक रुप से पहली बार सामने आया है जो कि गम्भीर बात है। फ़िर भी जैसा कि ऊपर कहा गया है, श्रीराम सेना जैसा मारपीट वाला तरीका अपनाने की बजाय, इन “हल्के” लोगों को न्यायालय में रगड़ो, देश के विभिन्न हिस्सों में पार्टी और संगठन के वकीलों की मदद से ढेर सारे केस दायर कर दो… फ़िर भले ही इन के बाप कितने ही पैसे वाले हों… जेसिका लाल को गोली मारने वाले बिगड़ैल रईसजादे मनु शर्मा की तरह जब एड़ियाँ रगड़ते अदालतों, थानों, लॉक-अप के चक्कर काटेंगे, तब सारी “पश्चिमी हवा” पिछवाड़े के रास्ते से निकल जायेगी… ध्यान में रखने वाली सबसे प्रमुख बात यह है कि “कथित उदारतावादियों”, “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के कथित पक्षधरों”, “अश्लील से अश्लील बात को भी हमेशा भारतीय इतिहास और संस्कृति से जोड़ने वालों” इत्यादि की कतई परवाह न करो… ये भौंकते ही रहेंगे और मीडिया भी इन्हीं को अधिक कवरेज भी देगा।

फ़िर ऐसा भी नहीं है कि ABVP या विहिप को “इन जैसों” के खिलाफ़ आक्रामक रुख अपनाना ही नहीं चाहिये, जब पानी सिर के ऊपर से गुज़रने लगे तो इन पर और आसपास मौजूद कैमरों पर कम्बल ओढ़ाकर एकाध बार “जमकर सार्वजनिक अभिनन्दन” करने में कोई बुराई नहीं है। फ़िर भी कोई इस मुगालते में न रहे कि ये लोग मुन्ना भाई की तरह सिर्फ़ गुलाब भेंट करने से मान जायेंगे… गुलाब के नीचे स्थित चार-छः कांटों वाली संटी भी खास जगह पर पड़नी चाहिये…।