IIT रुड़की : ये कैसी इंजीनियरिंग है? / सुरेश चिपलूनकर

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अमूमन ऐसा माना जाता है कि IIT में आने वाले छात्र भारत के सबसे बेहतरीन दिमाग वाले बच्चे होते हैं, क्योंकि वे बहुत ही कड़ी प्रतिस्पर्धा करके वहाँ तक पहुँचते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि यहाँ से निकले हुए प्रतिभाशाली दिमाग अपने नये-नये आईडियाज़ से देश और समाज को लाभान्वित करने के प्रकल्पों में लगायेंगे। जिन लोगों ने IIT रुड़की के छात्रों को टीवी पर “लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता” में भाग लेते देखा होगा, उनकी कुछ धारणाएं अवश्य खण्डित हुई होंगी।

जिन लोगों ने IIT के “प्रतिभाशाली” छात्रों के “पुण्य प्रताप” नहीं देखे या इस बारे में नहीं जानते होंगे, उन्हें बताना जरुरी है कि रुड़की स्थित IIT के छात्रों ने कॉलेज में एक प्रतियोगिता आयोजित की थी, जिसे लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता कहा गया। इसमें लड़कों ने मुँह में लिपस्टिक दबा रखी थी और उसे सामने वाली लड़की के होंठों पर उसे ठीक से लगाना था (मुझे यह नहीं पता कि यह “प्रतिभाशाली” आइडिया किस छात्र का था, किस शिक्षक का था या किसी आयोजन समिति का था), ऐसा “नावीन्यपूर्ण” आइडिया किसी IITian के दिमाग में आया होगा इस बात पर भी मुझे शक है… बहरहाल आइडिया किसी का भी हो, IIT रुड़की में जो नज़ारा था वह पूर्ण रुप से “छिछोरेपन” की श्रेणी में आता है और इसमें किसी भी सभ्य इंसान को कोई शक नहीं है।

इस घटना की तीव्र निंदा की गई और उत्तराखण्ड सरकार ने इसकी पूरी जाँच करने के आदेश दे दिये हैं।

पहले आप “छिछोरग्रस्त वीडियो” देखिये, फ़िर आगे बात करते हैं…

जब यह वीडियो टीवी चैनलों पर दिखाया गया तो स्वाभाविक रुप से “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता”(?) के पक्षधर अपने-अपने तर्क लेकर खड़े हो गये। जब भी कभी इस प्रकार की कोई “अ-भारतीय” और “अशोभनीय” घटना होती है तो अमूमन उसका विरोध ABVP या विहिप द्वारा किया जाता है (NSUI के आदर्श, चूंकि रॉल विंसी घान्दी हैं इसलिये वह ऐसी घटनाओं का विरोध नहीं करती)। फ़िर मीडिया जिसे कि कोई बहाना चाहिये ही होता है कि वे किस तरह “भारतीय संस्कृति” की बात करने वालों को “पिछड़ा”, “बर्बर” और “हिंसक” साबित करें तड़ से इस पर पैनल चर्चा आयोजित कर डालता है। इस पैनल चर्चा में अक्सर “सेकुलरों” के साथ (खुद को तीसमारखां समझने वाले) “प्रगतिशीलों”(?) और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता वाले “वाचाल” मौजूद होते हैं।

ऐसे प्रगतिशील रटे-रटाये तर्क करते रहते हैं, जैसे कि “…यह प्राचीन देश “कामसूत्र” का देश है और हम ऐसे कृत्यों को सामान्य समझते हैं…” (इनसे पूछना चाहिये कि भईया जब यह कामसूत्र और खजुराहो का देश है तो क्या हम फ़ुटपाथ पर सेक्स करते फ़िरें?), या फ़िर तर्क ये होता है कि पुराने जमाने में भी भारतीय संस्कृति में इस तरह का खुलापन और “कामुकता” को राजा-महाराजों ने सामाजिक मान्यता दी थी (तो भईया, क्या हम भी राजाओं की तरह हरम और रनिवास बना लें और उसमें कई-कई औरतें रख लें? हमें मान्यता प्रदान करोगे?)…। इसी मूर्खतापूर्ण तर्क को आगे बढ़ायें तो फ़िर एक समय तो मनुष्य बन्दर था और नंगा घूमता था, तो क्या दिल्ली और रुड़की में मनुष्य को नंगा घूमने की आज़ादी प्रदान कर दें? कैसा अजीब तर्क हैं… भाई मेरे… यदि भारत में खजुराहो है… तो क्या हम भी अपने घरों में “इरोटिक” पेंटिंग्स लगा लें?

रही बात “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” की… तो इसका “वीभत्स देशद्रोही रुप” एक औरत हाल ही में हमें रायपुर, दिल्ली और कश्मीर में दिखा चुकी है, क्या “वैसी” अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता चाहते हैं ये प्रगतिशील लोग? भारत में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का फ़ायदा एक “घटिया चित्रकार” पहले भी उठा चुका है, जिसे बड़ी मुश्किल से खदेड़ा गया था इस देश से।

और सबसे बड़ी बात यह कि, क्या IIT के ये छात्र, लड़कियों को लिपस्टिक लगाने को “स्वतन्त्रता” या “स्वस्थ प्रतियोगिता” मानते हैं? यदि मानते हैं तब तो इनकी बुनियादी शिक्षा पर ही सवाल उठाये जाने चाहिये। क्या IIT में पढ़ने वाले इन छात्रों को पता नहीं है कि आज भारत के गाँव-गाँव में बच्चे यहाँ तक पहुँचने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे हैं और IIT उनके लिये एक सपना है, एक आदर्श है… वहाँ ऐसी छिछोरी हरकते करते उन्हें शर्म नहीं आई? कभी सोचा नहीं कि इस कृत्य के दृश्यों का प्रभाव “बाहर” कैसा पड़ेगा? नहीं सोचा तो फ़िर काहे के “प्रतिभाशाली दिमाग” हुए तुम लोग? भारत के इन चुनिंदा प्रतिभाशाली बच्चों को “अल्हड़”(?) और इसे “नादानी में किया गया कृत्य” कहा जा सकता है? जिस छिछोरे ने यह आइडिया दिया, क्यों नहीं उसी समय उसके मुँह पर तमाचा जड़ दिया गया? आज तुमने लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता रखी है और “प्रगतिशील” उसका गाल बजा-बजाकर समर्थन कर रहे हैं…। इन सड़े हुए दिमागों का बस चले तो हो सकता है कि कल कॉलेज में तुम “ब्रा पहनाओ प्रतियोगिता” भी रख लो, जिसमें लड़के अपनी लड़की सहपाठियों को एक हाथ से “ब्रा पहनाकर देखें”…। फ़िर ABVP और विहिप को गालियाँ दे-देकर मन भर जाये और भारतीय संस्कृति और शालीनता को बीयर की कैन में डुबो दो… तब हो सकता है कि 3-4 साल बाद आने वाली IIT बैच के लड़के “पैंटी पहनाओ प्रतियोगिता” भी रख लें। यदि सड़क पर खुलेआम चुम्बन लेना और देवताओं के नंगे चित्र बनाना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, तो उसके थोबड़े पर हमें भी चार चप्पल लगाने की स्वतन्त्रता दो भईया… यह भेदभाव क्यों?

ऐ, IIT वालों… माना कि तुममें से अधिकतर को भारत में नहीं रहना है, विदेश ही जाना है… तो क्या पश्चिम का सिर्फ़ नंगापन ही उधार में लोगे? तरस आता है ऐसी घटिया सोच पर…। कुछ दिन पहले दिल्ली के राजपथ पर BSF का एक जवान अपने चार बच्चों के साथ पूर्ण नग्न अवस्था में विरोध प्रदर्शन कर रहा था… उसका वह नंगापन भी “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” था, लेकिन नौकरी गंवाने और बच्चों को भूख से बेहाल देखकर उसने व्यवस्था के खिलाफ़ नंगा होना स्वीकार किया, जबकि IIT के इन छात्रों ने “नंगापन” सिर्फ़ और सिर्फ़ मस्तीखोरी के लिये किया… और यह अक्षम्य है… अपने घर के भीतर तुम्हें जो करना है करो, लेकिन सार्वजनिक जगह (और वह भी कॉलेज) पर ऐसी “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिये…।

अब अन्त में कुछ सलाह ABVP और विहिप के लिये –

1) वर्तमान समय में यह बात हमेशा याद रखो कि मीडिया पर एक “वर्ग विशेष” का पूरा कब्जा है, जो हमेशा इस ताक में रहता है कि कैसे आपको बदनाम किया जाये, इसलिये प्रत्येक विरोध का तरीका शालीन, तर्कपूर्ण और सभ्य रखने की पूरी कोशिश करो…

2) छिछोरों को “जमकर रगेदने” का सबसे बढ़िया तरीका है “अदालत” का रास्ता, आपके पास वीडियो उपलब्ध है, उसमें दिखाई दे रहे लड़कों के खिलाफ़ “अश्लीलता फ़ैलाने” का आरोप लगाकर उन्हें कोर्ट में घसीटो। ऐसे दसियों कानून हैं और यदि जेठमलानी और जेटली जैसे वकीलों को छोड़ भी दिया जाये तो कोई भी सामान्य सा वकील इन उच्छृंखल और असभ्य लड़कों को कोर्ट के कम से कम 10-20 चक्कर तो आसानी से खिलवा सकता है। ये IIT के लड़के हैं, कोई ऊपर से उतरे हुए देवदूत नहीं हैं, जब MF हुसैन जैसे घाघ को सिर्फ़ मुकदमों के बल पर देशनिकाला दे दिया तो इन कल के लौण्डों की क्या औकात है।कोर्ट के 2-4 चक्कर खाते ही अक्ल ठिकाने आ जायेगी और फ़िर ऐसी छिछोरी हरकतें भूल जायेंगे और पढ़ाई में ध्यान लगाएंगे। इस प्रक्रिया में एकाध लड़के (जिसने यह फ़ूहड़ आइडिया दिया होगा) को IIT से बाहर भी निकाल दिया जाये तो देश पर कोई आफ़त नहीं टूट पड़ेगी… कम से कम आगे के लिये एक सबक तो मिलेगा।

तात्पर्य यह कि जिस तरह अक्षय कुमार को सरेआम अपनी पत्नी ट्विंकल द्वारा पैंट की चेन खोलने को लेकर पहले सार्वजनिक रुप से और फ़िर कोर्ट में रगेदा गया था, वैसा ही इन लड़कों को भी रगेदना चाहिये… अक्षय-ट्विंकल तो फ़िर भी पति-पत्नी थे, रुड़की के ये छात्र तो पति-पत्नी नहीं हैं। राखी सावन्त या मल्लिका शेरावत टीवी पर ऐसी हरकतें करें तो उसे एक-दो बार “इग्नोर” किया जा सकता है लेकिन कॉलेज (वह भी कोई साधारण दो कौड़ी वाला नहीं, बल्कि IIT) के सांस्कृतिक कार्यक्रम में ऐसी बदनुमा हरकत!!!

3) यही तरीका उन लड़कियों के लिये भी अपनाया जा सकता है जो कि हो सकता है अपने बॉयफ़्रेण्ड की फ़जीहत देखकर उसके बचाव में आगे आयें, लेकिन विरोध का तरीका वही अदालत वाला ही…। वरना कई “पिंक चड्डियाँ” भी आप पर हमला करने को तैयार बैठी हैं।

भारतीय संस्कृति को गरियाने और लतियाने का यह उपक्रम काफ़ी समय से चला आ रहा है और इसमें अक्सर “रईसों की औलादें” शामिल होती हैं, चाहे मुम्बई की रेव पार्टियाँ हों, रात के 3 बजे दारु पीकर फ़ुटपाथ पर गरीबों को कुचलना हो, कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में कपड़े उतारना हो, या फ़िर एमटीवी मार्का “चुम्बन प्रतियोगिता”, “वक्ष दिखाओ प्रतियोगिता”, “नितम्ब हिलाओ प्रतियोगिता”…इत्यादि हो। परन्तु IIT के छात्रों द्वारा ऐसा छिछोरा मामला सार्वजनिक रुप से पहली बार सामने आया है जो कि गम्भीर बात है। फ़िर भी जैसा कि ऊपर कहा गया है, श्रीराम सेना जैसा मारपीट वाला तरीका अपनाने की बजाय, इन “हल्के” लोगों को न्यायालय में रगड़ो, देश के विभिन्न हिस्सों में पार्टी और संगठन के वकीलों की मदद से ढेर सारे केस दायर कर दो… फ़िर भले ही इन के बाप कितने ही पैसे वाले हों… जेसिका लाल को गोली मारने वाले बिगड़ैल रईसजादे मनु शर्मा की तरह जब एड़ियाँ रगड़ते अदालतों, थानों, लॉक-अप के चक्कर काटेंगे, तब सारी “पश्चिमी हवा” पिछवाड़े के रास्ते से निकल जायेगी… ध्यान में रखने वाली सबसे प्रमुख बात यह है कि “कथित उदारतावादियों”, “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के कथित पक्षधरों”, “अश्लील से अश्लील बात को भी हमेशा भारतीय इतिहास और संस्कृति से जोड़ने वालों” इत्यादि की कतई परवाह न करो… ये भौंकते ही रहेंगे और मीडिया भी इन्हीं को अधिक कवरेज भी देगा।

फ़िर ऐसा भी नहीं है कि ABVP या विहिप को “इन जैसों” के खिलाफ़ आक्रामक रुख अपनाना ही नहीं चाहिये, जब पानी सिर के ऊपर से गुज़रने लगे तो इन पर और आसपास मौजूद कैमरों पर कम्बल ओढ़ाकर एकाध बार “जमकर सार्वजनिक अभिनन्दन” करने में कोई बुराई नहीं है। फ़िर भी कोई इस मुगालते में न रहे कि ये लोग मुन्ना भाई की तरह सिर्फ़ गुलाब भेंट करने से मान जायेंगे… गुलाब के नीचे स्थित चार-छः कांटों वाली संटी भी खास जगह पर पड़नी चाहिये…।

25 COMMENTS

  1. वास्तव में सैक्स को बिक्रीयोग्य सामग्री (सेलेबल कमोडिटी) बनाना एक विश्व-व्यापी कारोबार का मूलमंत्र है जिसके अंतर्गत अरबों-खरबों रुपये का व्यापार भारत में भी चल रहा है। सौन्दर्य प्रतियोगितायें, फैशन परेड, सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग – ये सब इसी प्रक्रिया से संचालित हो रहे हैं। विवाह संस्था को नकारते हुए लिव-इन रिलेशनशिप को पुचकारना, समान-यौन के मध्य शारीरिक संबंधों को स्वीकार्यता प्रदान करना, ब्लू फिल्मों का कारोबार, सब इसी के अनिवार्य अंग हैं। जो महिला जितने अधिक वस्त्र उतार सके, उसे उतना ही अधिक ’बोल्ड’ बता कर शाबाशी देना भी इसी प्रक्रिया के अंतर्गत आता है। पाश्चात्य संस्कृति पूरी तरह से इस बाज़ारवाद की चपेट में है और भारत में भी लिबरलाइज़ेशन, ग्लोबलाइज़ेशन के साथ – साथ इस सैक्स बाज़ार ने भी अपनी जड़ें जमाई हैं। निरंकुश सैक्स के कारण एड्स फैलने के कारण इस बाज़ार वाद को कुछ धक्का अवश्य लगा है और बाज़ारी शक्तियां पूरी ताकत से उसका तोड़ खोजने में व्यस्त हैं परन्तु हमारी सरकार “सेफ सैक्स” की बातें करती है – अपने जीवन साथी के प्रति वफादारी की नहीं ! कारण यही है, बाज़ारवाद ! आई.आई.टी. रुड़की में लिप्सटिक प्रतियोगिता के नाम पर जो कुछ हो रहा था, वह कुछ मीडिया मुगलों की शह पर हो रहा होगा, ऐसा विश्वास करने के पर्याप्त कारण हैं क्योंकि सैक्स को सेलेबल बनाने में मीडिया की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है और इसका कारण भारी भरकम कमाई है। आपका युद्ध किसी संस्कृति से नहीं है – येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने को आतुर बहुराष्ट्रीय कंपनियों से है जो हमारे जैसी दस देशों की सरकारों को खरीद सकती हैं।

  2. विक्की की टिपन्नी को कुछ लोगों ने अन्यथा लिया है और उन्होंने उनके कथन को कोई घिनोना प्रयास समझ विक्की को बुरा भला भी कह डाला है| मैंने स्वयं अपनी टिपन्नी में IIT कांड को केवल बदलते समय का परिणाम जान अपने को मेरी अवस्था में पिछड़ा पाया है| पचास वर्ष पहले मेरे युवा शरीर और अबोध मन में अपने कर्म-संबंधी अच्छे बुरे व नैतिक अनैतिक परिणामों का प्रतिद्वन्द्व बना रहता था| गाँव में घर के अंदर बाहर सभी कन्याएं बहने थीं| दिल्ली शहर में रहते संयम और लोक लाज ने युवा रोमांचक ह्रदय पर प्रतिबन्ध लगाए थे| बुरे परिणामों का ध्यान आते मीठे स्वपन से अकस्मात उठ खड़ा होता था| क्या यह सब अच्छे संस्कारों के कारण है? संस्कार तो उन युवकों और युवतीयों में भी अच्छे ही थे जो चलचित्र नागिन के गीत पर बेकरार मन और तन डोलते प्रेम बांसुरी बजाने वाले को ढूंडते रहते थे| कुछ समाज से छुप कामुकता के भोंचाल में बहते मर्यादा की सीमा का उलंघन भी कर बैठते थे| मैं देखूं कौन इस बात का खंडन करता है कि शरीर की भी भूख है| इसी कारण हिंदू शास्त्रों में विवाह के पूर्व ब्रह्मचर्य का पालन करने की सूझ दी है| लेकिन यह वैदिक सूझ-बुझ धर्म और नैतिकता के अनुकूल वातावरण की उपज है| आज जब चारों ओर भ्रष्टाचार और अनैतिकता का नंगा नाच हो शरीर की भूख प्रचंड रूप ग्रहण कर चुकी है| स्वतन्त्र भारत में पहले विद्यालयों और उनके बाहर सड़क, बाजार, व मेलों में लड़कों और लड़कियों के पृथकत्व के कारण लड़कों का लड़कियों को घूरने जैसा स्वाभाविक व्यवहार आज आयु में छोटे बड़े सभी पुरुषों में स्पर्शसंचारी रोग की तरह ऐसे फ़ैल गया है कि कांग्रेस सत्ता, शराब, या धूम्रपान की तरह उससे पीछा छुड़ाना दूभर हो गया है| मेरा सोचना है कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में कई प्रकार के विकार हैं लेकिन यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर है कि उसका चरित्र उन विकारों पर अकुंश धरे है कि नहीं|

    उवाच जी के आंकड़े भारत और अमरीका में परिस्थितियों की असमानता के कारण भ्रान्ति
    जगाते हैं| भारत में स्त्री अभी भी पुरुष के ऊपर निर्भर है और उसके द्वारा शोषित होते हुए भी वह विवाह के बंधन में जैसे तैसे बंधी रहती है| अपितु पढ़ी लिखी व व्यवसायी युवापीढ़ी पृथकीकरण द्वारा विवाहित जीवन में रोज की झिक झिक को समाप्त करने में नहीं चूकती?

    अब मुख्य प्रश्न यह है कि क्या परिपक्व युवक और युवती खुले में सम्माननीय अंतर्वैयक्तिक संबंध रखें अथवा गोपनीयता की अकाल कोठरी में वासना में डूबे रहें? संभवत: विक्की को विश्वास है कि उसके माता पिता ने उसकी बहन को उच्च विद्या के साथ साथ ऐसे संस्कार दीये हैं कि वह अच्छे बुरे की पहचान कर सकती है और पुरुष-प्रधान भारत में किसी की भी बेटी बहन कहलाने योग्य है| खेद है कि अजीत भोसले के अशिक्षित व्यापारी ने अपने पुत्र के चरित्र की दृढ़ता पर विश्वास नहीं किया| इसी बात का मुझे भी भय था कि लिपस्टिक लगाओ प्रतियोगिता का टीवी प्रसारण द्वारा भारत के अधिकाँश अशिक्षित वर्ग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है|

  3. अब वोह दीन दूर नहीं जब अमेरिकेन पाई जैसी हालात आएगी ..

  4. मैंने विक्की का रिप्लाई पढ़ा. दिमाग खराब हो गया है इन लोगों का. अगर इतना ही अच्छा लगेगा तुम्हें अपनी बहन को यह सब करते हुए तो कहना तो नहीं चाहिए पर उसे सड़क पर बेनर लगा कर खड़ा कर दो. ईट वालों के दिमाग में जो फितूर है उसे निकालने का एक रास्ता है कोर्ट. सामाजिक तौर पर गन्दगी व अश्लीलता फ़ैलाने के आरोप लगाकर उन्हें कोर्ट में घसीटा जा सकता है. और रही बात विक्की की तो भाई कब भेज रहे हो अपनी…….को. शर्म करो विकास के चक्कर में अपनी मर्यादा को मत भूलो वरना आज नहीं तो कल पछताओगे. IIT रूडकी पर भी केस करना चाहिय.

  5. dear vickky मुझे याद आ रहा है, तुम्हारे जैसे U B I ही जब कॉलेज के बाहर बैठकर चाय पि रहे होते थे और अपनी बताई स्टाइल से pesh aate थे और फिर थोड़ी देर बाद deligacy के रहने वालों से पिट कर आते थे तो फिर पूरे इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम बदनाम होता था . ab भी baaj nahi आ रहे ho . सच में तुम्हारी औकात ही नहीं है की तुम चिपलूनकर शाहब के लेख का मतलब समझ पाओ. जिस अमेरिका के ya वहां की khulepan की वकालत कर रहे हो जो वहां रह रहे हैं उनसे पूंछो bharat देश की सभ्यता और संस्कृति का क्या मतलब है भगवन न करे कभी ऐसा दिन आये बेटा मेरे दोस्तों का अमेरिका में क्या haal हो रहा है ye तो wo ही जाने सब बंगलोरे और नॉएडा की शरण में आ गए है इस deepawali par meri यही प्राथना है की तुम log sudhar jao कम से कम हमारे कॉलेज ko badnaam तो न करो बाकि हम सुधर jayenge.
    shivraj

  6. शुभ दीपावली।
    मुझे एक युनिवर्सिटी के प्राध्यापक के नाते,(२०+ वर्षोंसे) छात्रोंका परामर्शक (ऍडवाइज़र) रहने का अनुभव है।इस लिए कहता हूं। जो मैं २० वर्ष पहले मानता था, आज नहीं मानता हूं।
    नीचे विवाह विच्छेद की संख्यात्मक तुलना, ( अमरिका और भारत)आपके सामने रखता हूं।
    वेबसाईटका पता भी लिखा हुआ है।सभी देश हितैषियों को विचारके लिए प्रस्तुत। अमरिका में केवल २१ % विवाहित जोडे अपनी सगी संतानों के साथ रहते हैं। ५०% पुरूष और ५४% महिलाएं जीवनमें एक बार भी विवाह नहीं करते, आवश्यकता ही नहीं है।विवाहके बाद जो मिलना है, वह बिना जिम्मेवारी मिल जाय, तो कौन मूरख विवाह करके झंझट मोल लेगा। सडन गत ४०/५० वर्ष, कॅंसर की भांति बढ रही है।
    आपको झूठ लिखकर भरमा नहीं रहा हूं।वह, तो इश्वर कृपा, और संस्कारोंके कारण हम बच पाए। यह ऐसी खाई है, कि, इसमें गिरने के बाद फिरसे वापस नहीं उठा जाता।हर वर्ष, १.७५ से २ लाख भ्रूण(गर्भ पात) हत्त्याएं अकेले न्यू योर्क में(एक हिंदू सर्जन ने इसी लिए त्यागपत्र दिया)होती है।
    चूंधियाते उजाले के नीचे घना गहन घोर तमस (अंधेरा) छुपा हुआ है। शुरुवात ऐसे ही होगी, फिर आग फैल जाएगी।
    https://www.divorcerate.org/divorce-rate-in-india.html
    Divorce Rate In India
    Divorce rates in India are amongst the lowest in the world. 11 marriages out of 1,000 marriages (around 1 marriage out of 100 marriages) ends up to divorce in India. This figure was even lower in 1990. In 1990, 7.40 marriages out of 1,000 marriages ended up in divorce in India.
    वेब साइट का अंग्रेज़ी डेटा उपर साईटसे जैसे का वैसा नीचे प्रस्तुत है।हिंदी लिखा मेरा है।
    The divorce rate in India is even quite lower in the villages in India and higher in urban parts of India. These days divorce rates in India’s urban sphere are shooting up.
    Some facts from CIA Worldbook for comparison with US
    –Infant mortality rate
    India – 64.9 deaths/1,000 live births बालक कों की मृत्यु दर हर हजार में ६५ या हर सौ में ६.५ है। यु एस ए मे .६७६ प्रति १०० जन्म
    USA -6.76 deaths/1,000 live births
    –Life expectancy at birth हमारी अपेक्षित आयु ६२.५ वर्ष है, जब अमरिका की ७७.२६ वर्ष है।
    India 62.5 years
    USA 77.26 years
    –Birth rate
    India – 24.79 births/1,000 population हमारा जन्म दर २५ हर १००० की जन संख्या में है।
    USA – 14.2 births/1,000 population
    –Death rate
    India -8.88 deaths/1,000 population USA – 8.7 deaths/1,000 population
    म्रृत्यु दर ८.८८/१,०००
    –Divorce rates
    US – 50%
    India – 1.1%
    =================================================================
    -Divorce rates
    US – 50%
    India – 1.1% वाह मेरे भारत यह संस्कृति का ही योग दान है।

  7. विक्की इस लेख पर तुम्हारी टिपण्णी पढ़कर बहुत अच्छा लगा, मुझे लगता है शायद तुम्हारा दिमाग फिर गया है या कोई सगा iit में है और सुरेश जी के द्वारा अदालत में घसीटने सम्बंधित सलाह को लेकर तुम्हारे….पसीना बह निकला है कही तुम्हारे सगे संबंधी को IIT की पढ़ाई एक तरफ रखकर वकीलों की चिरोरियाँ न करना पढ़े, वैसे तुमने यह कैसे तय कर लिया की ये ही सिर्फ तेज दिमाग वाले हैं बाकी सब कमजोर दिमाग के है, मै तुम्हे बताऊ मेरे शहर में एक डिस्टेम्पर का व्यापारी है वह बमुश्किल 6th तक पढ़ा लिखा है उसका साल-भर का turn- over 55 करोड़ रूपये का है, उसका लड़का बहुत मेहनत करके IIT में हुआ था, उपरोक्त घटना के बाद उसने उसे वापस बुलाने का मन बना लिया है, इस व्यापारी से बात करने के लिए मेरे शहर के सभी गणमान्य हमेशा उत्सुक रहते है, अब तुम्हारी टिप्पणी पढने के बाद मै बड़े पशोपेश में हूँ की तेज दिमाग उस व्यापारी का है या उसके दो कोडी के लड़के का जो बाप के पैसों की बदोलत वहां पहुचा है.वैसे तुम जैसे लोगों का इसमें कोई कसूर नहीं है, क्योंकि तुम जैसे लोगों के कारण ही live-in-relationship, आस्तितित्व में आया है कॉलेजों में कंडोम मशीने लगने लगी है, सम्लेंगिको को कानूनी सुरक्षा मिलने लगी है, लगे रहो बच्चे तुम लोग भारत को बर्बाद करके ही दम लोगे, जहां तक मै समझता हूँ तुम्हारी ओकात सुरेश जी पर टिपण्णी करने की नहीं है ना ही किसी IIT के फूहड़ इन्जीनिएर की.

  8. Vikky : कहते हैं।
    “गीता में भी लिखा है की मनुष्य की भावना को पहले देखना चाहिए”
    कौनसे श्लोक में लिखा है? कुछ, संदर्भ सहित, श्लोक उद्धृत करें, तो और भी अच्छा होगा, मुझे भी उत्सुकता है।.जानकारी चाहता हूं। अन्यथा ना लें।
    दीपावली की शुभ कामनाएं।

  9. सूज्ञोंको सुझाव:
    शायद, जूठे बरतन में, आप शुद्ध जल डालने की कोशिश कर रहे हैं।
    बरतनही जूठा है, सारा डाला हुआ शुद्ध पानी –गंदा हो जाएगा।
    किंतु सुरेश जी ने सुझाए, निर्णायक निर्देशसे सहमति प्रकट करता हूं।
    दीपावली की शुभ कामनाएं।
    और नूतनवर्षाभिनंदन।

  10. सब कुछ देखने के बाद ये समझ में आ गया की इतने तेज दिमाग विद्यार्थियो के दिमाग का मुकाबला ये कम समझ वाले लोग नहीं समझ सकते. आज भी दूसरो के काम में टांग अडाना आम लोगो का शगल है. सब कुछ छोड़कर दूसरो की बहन बेटियों को बीच सड़क पर घूर घूर के देखने वाले आज भारतीय विधार्थियो के पथ से भटकने का आरोप लगा रहे है. हाँ मेरी बहन भी ये सब करती तो मै बहुत खुश होता, आखिर क्यों न हूँ, इस दोगले चरित्र से भरे आदमियों के बीच वो कुछ ऐसे लोगो के मुह पर तमाचा जो मार रही होती. शर्म करो, बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे अपनी जवानी मै दूसरो की बहन को अपनी बहन समझते थे. वो गली में खड़े होकर सीटी तुम्ही लोग बजाते थे. माँ बहन की गालिया तुम्ही लोग पान की दूकान पर खड़े होकर लडकियों के होने के बावजूद तेज आवाज में देते थे. तुम्हे इन बच्चो को कुछ भी कहने का हक नहीं है. ये बच्चे असली में देश का नाम रोशन करेंगे और तुम सब इसी तरह रोते रहोगे. तुम्हारी नज़र ही गन्दी है जो तुम्हे हर जगह गंदगी नज़र आती है. गीता में भी लिखा है की मनुष्य की भावना को पहले देखना चाहिए. जब ये विद्यार्थी केवल खेल की भावना से ही ये कर्म कर रहे थे तो तुम सबको इसे खेल की ही भावना से ही लेना चाहिये था न की अपनी गन्दी सोच की भावना से. जब तक विचारो में पवित्रता नहीं आएगी तब तक तुम लोग इसको खेल की भावना से नहीं देख पाओगे.

    • दोगुला चरित्र किसका है यह सबको समझ आ रहा है
      कुकृत्य को कुकृत्य ही कहा जायेगा iit वाला कुकृत्य करे तो क्या लोग अपनी आंखें बंद कर लें ??????

  11. सर, samsamyik durdasha par bahuaayami lekh ke liye dhanyawaad. IIT रूरकी की yeh lipstick engineering U.B.I.(unfortunately born in India) category ka innovation hai. aage pata nahi kya kya karenge. aapne sahi kaha inka ek hi ilaaj hai, Court me ghasito, inki, inke baap की aur inke guide की akal tab thikane lagegi, jab videsh bhagne ke liye passport keval isliye nahi milega की inke khilaf mukdma likha hai. tab pata chalega की kaun kitne paani me hai. in collegs me yadi kabhi jara sa bhi kuchh abnormal hota tha to turant viriodh hota tha aur avasyaktanusar kambal parade bhi. lekin samajh me nahi aaya की kaise ye sab professor, ayojak aur students is tarah ka pradarshan dekhate rahe. chahe IIT ho chahe IIM ya fir aam college ya aam admi samajik taane baane ko todne waali samvedanhinta katayi bardaast nahi hai.
    shivraj, Aligarh
    09756798010

  12. @केशव जी ये ब्रेन ड्रेन के लिए ही प्रेक्टिस कर रहे है

  13. आई आई टी के छात्रों की यह हरकत बेहद शर्मनाक है .ऐसे ब्रेन का ड्रेन तो ज़रूर हो जाना चाहिए..

  14. ये सभी मैकाले के मानस पुत्रों की आधुनिक शिक्षा की देन है, और वर्तमान भारत की तथाकथिक आधुनिकता की पहचान है,

  15. अफसोसनाक …लेकिन किस-किस बात के लिए कितना रोया जाय सुरेश जी….लगता है की पूरे कूएँ में ही भांग घोल दी गयी है. भले ही अपनी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह हो जाय. लेकिण सामर्थ्य भर तो वास्तव में विरोध दर्ज कराना ही होगा…सदा की तरह शशक्त विरोध.

  16. सुरेश जी,
    एकदम सही सलाह लग रही है ! अदालत बड़े बड़े लोगों के पसीने छुड़ा देती है!! फिर विरोधियों (कांग्रेसियों और वामपंथियों जैसे) का क्या होगा और वो किसको पानी पी पी कर कोसेंगे इसकी हम सहज कल्पना ही कर सकते हैं………………….!!!

  17. माँ बाप के संस्कार या लापरवाही,समाज का पतनशील रास्ता, समझ में नहीं आ रहा किसे दोष दूँ, पर जो हुआ सब बर्बादी के लक्षण हैं

  18. अखबरोँ और चैनलोँ पर अक्सर पढ़ने और देखने मेँ आता है कि भारत मेँ इतने युवा है कि यह सदी निश्चित रुप से भारत की होगी । लेकिन मुझे संशय है क्योँकि एक ओर राहुल गाँधी जैसे दिखावटी युवा नेता है तो दूसरी ओर ऐसे छिछोरे युवा । भारत को विश्व गुरु माना गया है जहाँ की सभ्यता और संस्क्रति सदैव सम्मानीय द्रष्टि से देखी जाती है और आज भी दुनियाभर के लोग अपने दुःखोँ से पार पाने , मोक्ष पाने भारत की गौरवशाली संस्क्रति की शरण मेँ ही आते है , लेकिन पिछले कुछ सालोँ से पश्चिम की तरह खुद को मॉडर्न कहलवाने के चक्कर मेँ इन जैसे लोगोँ ने जो नंगापन मचा रखा है , बहुत ही शर्मनाक है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आज युवतियाँ शहरोँ मेँ अधनंगी घूमती पायी जाती है और पश्चिम की तर्ज पर शादी से पहले सेक्स ( वो भी एक से अधिक के साथ ) कोई अपराध नहीँ रह गया है । साम , दाम , दंड , भेद जैसे भी हो इस तथाकथित ” खुलेपन ” पर सभ्यता का परदा डाला जाना बहुत जरुरी है नहीँ तो आने वाली पीढ़िया फिर हमेँ आदिमानव युग की ओर ले जायेगी ।

  19. niraj rohillaa jee aapkee bhee koii bahan – beti hogee ? zaraa use bhee lipstik lagwaa lo ? mere bhaaii aap ne apane aap ko lipstic lagaane waale ke sthaan par rakh kar kalpanaa kee hogee. ksee kaa bhaaii yaa baap ban kar socho.
    – suresh jee bahut badhiyaa, sashakt lekh hai. iishwar aap ko aur adhik saamarthy pradaan kare.

  20. कानूनसे जो तरिका सुरेश जी ने सुझाया है। बहुत कामका है। चाहो तो दो चार अलग अलग न्यायालयोमें इन्हे उलझा रखना कठिन नहीं है।
    “आपके पास वीडियो उपलब्ध है, उसमें दिखाई दे रहे लड़कों के खिलाफ़ “अश्लीलता फ़ैलाने” का आरोप लगाकर उन्हें कोर्ट में घसीटो।”
    ॥शठं प्रति शाठ्यं॥

  21. सुरेश जी ने ठीक कहा है कि ये IIT के लड़के हैं, कोई ऊपर से उतरे देवदूत नहीं हैं| लेकिन यह भी ठीक है कि ये IIT के लड़के लड़कियां अवश्य उन घरों से आये हैं जहां हर दिन चल रहे टीवी सीरियल नित नए आइदिअज़ के साथ परिवार में सभी सदस्यों का चरित्र-निर्माण करते हैं| जो कुछ घर में प्रचलित लोकप्रिय मीडिया पर देख सीखेंगे, बाहर अपने अनुभव का प्रदर्शन तो करेंगे ही| और वैसे भी पाश्चात्य सभ्यता की नासमझी में हर ओर से बल पकडे कामुक वातावरण में यौवन के आवेग को रोकना इतना सरल नहीं है| हंसी हंसी में यह निष्कपट और अबोध व्यवहार बुरा हैं लेकिन इससे कहीं अधिक बुरा है इसका टीवी पर प्रदर्शन जो खुले में ऐसे व्यवहार का अनुमोदन है| संभवत: आज भ्रष्टाचार और अनैतिकता में डूबे नगरीय समाज में ऐसा व्यवहार युवकों का आदर्श बन कर रह गया है| वास्तव में हम ही पिछड़ गए हैं|

  22. आदरणीय सुरेश भाई इसके अलावा एक उदाहरण और भी है| जब मई इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में पढ़ रहा था, यानी ५ अर्श पहले तब आईआईटी मुंबई के छात्रों ने “सुट्टा” नामक एक गीत भी लौंच किया था| सुट्टा यानी सिगरेट का कश| और इस गीत में माँ बहन की गालियाँ और भी कई अश्लील शब्द थे|
    इसके बाद एक्सएलआरआई कॉलेज (एक एमबीइए कॉलेज) ने भी इस प्रकार का एक गाना लौंच किया था| और इसके बाद तो यह क्रम चलता रहा| एक के बाद एक प्रतिष्ठित संस्थान इस प्रकार की घटिया हरकत करते रहे|
    देश का युवा ही इतना गिर गया है तो भविष्य में इनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?

  23. अब तो खूब हल्ला हो ही चुका है,

    हमको तो खैर कुछ खराब नहीं लगा, जिनको लगा उनके कष्ट को सोचकर ही हमें कष्ट हो रहा है।

  24. वाकई बहुत शर्मनाक घटना है. आज कड़ाई से विरोध नहीं किया गया तो कल यही हर शहर होने लगेगा. यह बिलकुल सही है की IIT में बहुत ही प्रतिभाव्वन छात्र ही दाखिला ले पाते है. किन्तु क्या इन प्रतिभावान छात्रों को अपनी मर्यादा में नहीं रहना चाइये. सार्वजानिक रूप में तो कम से कम कुछ मर्यादाएं का पालन करना चाइये.

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