कविता साहित्‍य

मैं हूँ एक इंसान

manना नाम है मेरा
ना पहचान है मेरी
ना कोई धर्म है मेरा
मैं हूँ एक इंसान।।

ना जोड़ो मुझे किसी धर्म से,
मेरा धर्म भी इंसानियत है।
मेरा कर्म भी इंसानियत है।।

दूर रहो मुझसे,
ऐ धर्म के पेहरेदारों,
तू जितने पास आया है!
उतनी इंसानियत खो दी मैंने।

तुझे सत्ता में आना है,
मुझे तो घर चलना है।
तुझे तो वोट पाना है,
मुझे रोटी कामना है।।

मत लड़ाओ मुझे,
जाति धर्म के नाम पर,
तुझे तो सत्ता मिल जायेगी।
मेरी तो इंसानियत मीट जायेगी।।

ना कर मेरे देश की,
दूसरे देश में बदनामी,
तेरा तो कुछ नही बिगड़ेगा।
मेरी नज़रे झुक जायेगी।।

तुझे तो देशवासियो को
बस वोट पाना है।।
मुझे तो भारतीये होने का
कर्त्तव्य भी निभाना है।।

अरे एे मुर्ख,
मांगना ही है तो मांग,
पहले बनकर एक इंसान,
तुझे देशवासियो का
प्यार भी मिल जायेगा।
और सत्ता भी मिल जायेगी।।

वैदिका गुप्ता