दिल लुभाती रमज़ान की रौनक़

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-फ़िरदौस ख़ान

मरहबा सद मरहबा आमदे-रमज़ान है

खिल उठे मुरझाए दिल, ताज़ा हुआ ईमान है

हम गुनाहगारों पे ये कितना बड़ा अहसान है

या ख़ुदा तूने अता फिर कर दिया रमज़ान है…

माहे-रमज़ान इबादत, नेकियों और रौनक़ का महीना है। यह हिजरी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। इस्लाम के मुताबिक़ अल्लाह ने अपने बंदों पर पांच चीज़ें फ़र्ज क़ी हैं, जिनमें कलमा, नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात शामिल है। रोज़े का फ़र्ज़ अदा करने का मौक़ा रमज़ान में आता है। कहा जाता है कि रमज़ान में हर नेकी का सवाब 70 नेकियों के बराबर होता है और इस महीने में इबादत करने पर 70 गुना सवाब हासिल होता है। इसी मुबारक माह में अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन नाज़िल किया था। यह भी कहा जाता है कि इस महीने में अल्लाह शैतान को क़ैद कर देता है।

इबादत

रमज़ान से पहले मस्जिदों में रंग-रोग़न का काम पूरा कर लिया जाता है। मस्जिदों में शामियाने लग जाते हैं। रमज़ान का चांद देखने के साथ ही इशा की नमाज़ के बाद तरावीह पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है। रमज़ान के महीने में जमात के साथ क़ियामुल्लैल (रात को नमाज़ पढ़ना) करने को ‘तरावीह’ कहते हैं। इसका वक्त रात में इशा की नमाज़ के बाद फ़ज्र की नमाज़ से पहले तक है। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ान में क़ियामुल्लैल में बेहद दिलचस्पी ली। आपने फ़रमाया कि ”जिसने ईमान के साथ और अज्र व सवाब (पुण्य) हासिल करने की नीयत से रमज़ान में क़ियामुल्लैल किया उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे।”उन्होंने फ़रमाया कि ”यह ऐसा महीना है कि इसका पहला हिस्सा अल्लाह की रहमत है, दरमियानी हिस्सा मग़फ़िरत है और आख़िरी हिस्सा जहन्नुम की आग से छुटकारा है।” रमज़ान के तीसरे हिस्से को अशरा भी कहा जाता है। आपने फ़रमाया कि ”रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ (विषम) रातों में लैलतुल क़द्र की तलाश करो।” लैलतुल क़द्र को शबे-क़द्र भी कहा जाता है। शबे-क़द्र के बारे में कुरआन में कहा गया है कि यह हज़ार रातों से बेहतर है, यानि इस रात में इबादत करने का सवाब एक हज़ार रातों की इबादत के बराबर है। मुसलमान रमज़ान की 21, 23, 25, 27 और 29 तारीख़ को पूरी रात इबादत करते हैं।

फ़रहाना कहती हैं- इस महीने में क़ुरआन नाज़िल हुआ, इसलिए रमज़ान बहुत ख़ास है। हर मुसलमान के लिए यह महीना मुक़द्दस और आला है। हमें इस महीने की अहमियत को समझते हुए ज्यादा से ज्यादा वक्त ऌबादत में गुज़ारना चाहिए। वैसे भी रमज़ान में हर नेकी और इबादत का सवाब साल के दूसरे महीनों से ज्यादा ही मिलता है। वे कहती हैं कि शबे-क़द्र को उनके परिवार के सभी लोग रातभर जागते हैं। मर्द इबादत के लिए मस्जिदों में चले जाते हैं और औरतें घर पर इबादत करती हैं।

वहीं, राशिद कहते हैं कि काम की वजह से पांचों वक्त क़ी नमाज़ नहीं हो पाती, लेकिन रमज़ान में उनकी कोशिश रहती है कि नमाज़ और रोज़ा क़ायम हो सके। दोस्तों के साथ मस्जिद में जाकर तरावीह पढ़ने की बात ही कुछ और है। इस महीने की रौनक़ों को देखकर कायनात की ख़ूबसूरती का अहसास होता है। रमज़ान हमें नेकियां और इबादत करने का सबक़ देता है और हमें अल्लाह के क़रीब करता है।

ज़ायक़ा

माहे-रमज़ान में हर तरफ़ ज़ायक़ेदार व्यंजनों की भरमार रहती है। रमज़ान का ज़िक्र लज़ीज़ व्यंजनों के बग़ैर मुकम्मल नहीं होता। रमज़ान का ख़ास व्यंजन हैं फैनी, सेवइयां और खजला। सुबह सहरी के वक्त फ़ैनी को दूध में भिगोकर खाया जाता है। इसी तरह सेवइयों को दूध और मावे के साथ पकाया जाता है। फिर इसमें चीनी और सूखे मेवे मिलाकर परोसा जाता है। इसके अलावा मीठी डबल रोटी भी सहरी का एक ख़ास व्यंजन है। ख़ास तरह की यह मीठी डबल रोटी अमूमन रमज़ान में ही ज्यादा देखने को मिलती है।

इफ्तार के पकवानों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है। अमूमन रोज़ा खजूर के साथ खोला जाता है। दिनभर के रोज़े के बाद शिकंजी और तरह-तरह के शर्बत गले को तर करते हैं। फलों का चाट इफ्तार के का एक अहम हिस्सा है। ताज़े फलों का चाट रोज़े के बाद ताज़गी का अहसास तो कराती ही है, साथ ही यह पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। इसके अलावा ज़ायक़ेदार पकौड़ियां और तले मसालेदार चने भी रोज़ेदारों की पसंद में शामिल हैं। खाने में बिरयानी, नहारी, क़ौरमा, क़ीमा, नरगिसी कोफ्ते, सींक कबाब और गोश्त से बने दूसरे लज़ीज़ व्यंजन शामिल रहते हैं। इन्हें रोटी या नान के साथ खाया जाता है। रुमाली रोटी भी इनके ज़ायके को और बढ़ा देती है। इसके अलावा बाकरखानी भी रमज़ान में ख़ूब खाई जाती है। यह एक बड़े बिस्कुट जैसी होती है और इसे क़ोरमे के साथ खाया जाता है। बिरयानी में हैदराबादी बिरयानी और मुरादाबादी बिरयानी का जवाब नहीं। मीठे में ज़र्दा, शाही टुकड़े, फिरनी और हलवा-परांठा दस्तरख़ान पर की शोभा बढ़ाते हैं।

इशरत जहां कहती हैं कि रमज़ान में यूं तो दिन में ज़्यादा काम नहीं होता, लेकिन सहरी के वक़्त और शाम को काम बढ़ जाता है। इफ़्तार के लिए खाना तो घर में ही तैयार होता है, लेकिन रोटियों की जगह हम बाहर से नान या रुमाली रोटियां मंगाना ज़्यादा पसंद करते हैं।

रमज़ान में रोटी बनाने वालों का काम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। दिल्ली में जामा मस्जिद के पास रोटी बनाने वालों की कई दुकानें हैं। यहां तरह-तरह की रोटियां बनाई जाती हैं, जैसे रुमाली रोटी, नान, बेसनी रोटी आदि। अमूमन इस इलाके क़े होटल वाले भी इन्हीं से रोटियां मंगाते हैं।

ख़रीददारी

रमज़ान में बाज़ार की रौनक़ को चार चांद लग जाते हैं। रमज़ान में दिल्ली के मीना बाज़ार की रौनक़ के तो क्या कहने। दुकानों पर चमचमाते ज़री वाले व अन्य वैरायटी के कपड़े, नक्क़ाशी वाले पारंपरिक बर्तन और इत्र की महक के बीच ख़रीददारी करती औरतें, साथ में चहकते बच्चे। रमज़ान में तरह-तरह का नया सामान बाज़ार में आने लगता है। लोग रमज़ान में ही ईद की ख़रीददारी शुरू कर देते हैं। आधी रात तक बाज़ार सजते हैं। इस दौरान सबसे ज्यादा कपड़ों की ख़रीददारी होती है। दर्ज़ियों का काम बढ़ जाता है। इसलिए लोग ख़ासकर महिलाएं ईद से पहले ही कपड़े सिलवा लेना चाहती हैं। अलविदा जुमे को भी नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ने का दस्तूर है। हर बार नए डिज़ाइनों के कपड़े बाज़ार में आते हैं। नेट, शिफ़ौन, जॉरजेट पर कुन्दन वर्क, सिक्वेंस वर्क, रेशम वर्क और मोतियों का काम महिलाओं को ख़ासा आकर्षित करता है। दिल्ली व अन्य शहरों के बाज़ारों में कोलकाता, सूरत और मुंबई के कपड़ों की धूम रहती है। इसके अलावा सदाबहार चिकन का काम भी ख़ूब पसंद किया जाता है। पुरानी दिल्ली के कपड़ा व्यापारी शाकिर अली कहते हैं कि बाज़ार में जिस चीज़ का मांग बढ़ने लगती है हम उसे ही मंगवाना शुरू कर देते हैं। ईद के महीने में शादी-ब्याह भी ज्यादा होते हैं। इसलिए माहे-रमज़ान में शादी की शॉपिंग भी जमकर होती है। शादियों में आज भी पारंपरिक पहनावे ग़रारे को ख़ासा पसंद किया जाता है।

चूड़ियों और मेहंदी के बिना ईद की ख़रीददारी अधूरी है। रंग-बिरंगी चूड़ियां सदियों से औरतों को लुभाती रही हैं। चूड़ियों के बग़ैर सिंगार पूरा नहीं होता। बाज़ार में तरह-तरह की चूड़ियों की बहार है, जिनमें कांच की चूड़ियां, लाख की चूड़ियां, सोने-चांदी की चूड़िया, और मेटल की चूड़ियां शामिल हैं। सोने की चूड़ियां तो अमीर वर्ग तक ही सीमित हैं। ख़ास बात यह भी है कि आज भी महिलाओं को पारंपरिक कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां ही ज्यादा आकर्षित करती हैं। बाज़ार में कांच की नगों वाली चूड़ियों की भी ख़ासी मांग है। कॉलेज जाने वाली लड़कियां और कामकाजी महिलाएं मेटल और प्लास्टिक की चूड़ियां ज्यादा पसंद करती हैं, क्योंकि यह कम आवाज़ करती हैं और टूटती भी नहीं हैं, जबकि कांच की नाज़ुक चूड़ियां ज्यादा दिनों तक हाथ में नहीं टिक पातीं।

इसके अलावा मस्जिदों के पास लगने वाली हाटें भी रमज़ान की रौनक़ को और बढ़ा देती हैं। इत्र, लोबान और अगरबत्तियों से महक माहौल को सुगंधित कर देती है। इत्र जन्नतुल-फ़िरदौस, बेला, गुलाब, चमेली और हिना का ख़ूब पसंद किया जाता है। रमज़ान में मिस्वाक से दांत साफ़ करना सुन्नत माना जाता है। इसलिए इसकी मांग भी बढ़ जाती है। रमज़ान में टोपियों की बिक्री भी ख़ूब होती है। पहले लोग लखनवी दुपल्ली टोपी ज्यादा पसंद करते थे, लेकिन अब टोपियों की नई वैरायटी पेश की जा रही हैं। अब तो लोग विभिन्न राज्यों की संस्कृतियों से सराबोर पारंपरिक टोपी भी पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा अरबी रुमाल भी ख़ूब बिक रहे हैं। रमज़ान के मौक़े पर इस्लामी साहित्य, तक़रीरों, नअत, हम्द,क़व्वालियों की कैसेट सीटी और डीवीडी की मांग बढ़ जाती है।

यूं तो दुनियाभर में ख़ासकर इस्लामी देशों में रमज़ान बहुत श्रध्दा के साथ मनाया जाता है, लेकिन भारत की बात ही कुछ और है। विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत में मुसलमानों के अलावा ग़ैर मुस्लिम लोग भी रोज़े रखते हैं। कंवर सिंह का कहना है कि वे पिछले कई वर्षों से रमज़ान में रोज़े रखते आ रहे हैं। रमज़ान के दौरान वे सुबह सूरज निकलने के बाद से सूरज छुपने तक कुछ नहीं खाते। उन्हें विश्वास है कि अल्लाह उनके रोज़ों को ज़रूर क़ुबूल करेगा। भारत देश की यही महानता है कि यहां सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। यही जज्बात गंगा-जमुनी तहज़ीब को बरक़रार रखते हैं।

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

6 COMMENTS

  1. is mubarik ramjaan maah men -hujur sallaho aalehi vasllm ne tatkaleen smajik parevesh ke sandarbh men jo ilm ya gyaan farmaya tha uspar chalne wala insaan kabhi dukhi nahin hota or na kisi anya ko dukh deta hai kintu aaj ke daur men to har kism ki shetani hikmaten sar utha rhin hain or bhaaichara mohbbat tatha neki ka abhav hota ja raha hai ,

  2. ऐ खुदा तूने अता कर दिया रमजान हैं …
    फिरदौश जैसी धर्मनिरपेक्ष शाख्श्यित का करते हम सम्मान हैं
    हो उन्हें मुबारक पवित्र रमजान है .

  3. आपने पूरी तस्वीर उम्दा तरीके से खींच दी…
    पकवानों की लिस्ट देखकर तो घुटनों तक लार आ गई है… 🙂 🙂
    हमारे मित्र शमीम के यहाँ बड़ी ज़ायकेदार नानवेज बिरयानी बनती है…
    घर पर तो नानवेज चलता नहीं, लेकिन शमीम भाई जमकर खिलाते हैं…

    आपको माह-ए-रमज़ान और आगामी ईद की मुबारक और शुभकामनाएं…

  4. बाकि तो कुछ नहीं पर डाक्टर होने के नाते हमें सिर्फ ऐसी ही दवायें देनी होती हैं जो दिन मैं केवल दो बार ली जा सकें….और कभी कभार रोजा इफ्तार मैं हमारे कुछ मित्र हमें बुलाते हैं और इतना खिलाते हैं कि बस ……

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