धर्म-अध्यात्म

साम्राज्यवादी रवैया त्यागे चर्च

आर एल फ्रांसिस

नये साल में पोप बेनेडिक्ट 16वें ने दुनियाभर के नेताओं से ईसाइयों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाने की अपील की है। वेटिकन सिटी में नववर्ष के मौके पर एकत्रित हजारों श्रद्वालुओं को संबोधित करते हुए पोप बेनेडिक्ट ने अफ्रीका महाद्वीप में ईसाई धर्मावलंबियों पर बढ़ते हमलों पर गहरी चिंता प्रगट की थी। बीते कुछ महीनों में मिस्र, नाइजीरिया, इराक और पाकिस्तान में ईसाइयों पर हमलों की घटनाएं बढ़ गई है। बीते क्रिसमस की पूर्व संध्या पर मध्य नाइजीरिया में इस्लामी चरमपंथियों द्वारा किये गए हमलों में 38 लोग मारे गए थे। इसी तरह 31 अक्तूबर को इराक की राजधानी बगदाद में एक चर्च पर हुए हमले में दो पादरियों और सात सुरक्षाकर्मियों सहित 44 ईसाई मारे गए थे। वही नववर्ष के मौके पर मिस्र में एक चर्च पर हुए हमले में 21 लोग मारे गए।

ईसाइयों पर हो रहे हमलों का जिक्र करते हुए पोप बेनेडिक्ट 16वें ने कहा कि मानवता से बड़ा धर्म है और हमें हर हाल में इसकी रक्षा करनी होगी। ईसाइयों पर हमलों के साथ साथ पोप की सबसे बड़ी चिंता ईसाइयों की घटती अबादी भी है। कुछ वर्ष पूर्व पोप बेनेडिक्ट 16वें ने यूरोप की घटती जनसंख्या पर अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा था कि यूरोप अपने भविषय में आस्था खो रहा है उनका कहना था कि आपको दुर्भाग्य से यह बात लिख लेनी चाहिए कि यूरोप खुद को इतिहास से मिटाने के रास्ते पर चल रहा है।

महत्वपूर्ण यह है कि पोप की नजर भविष्य पर है यूरोपीय एथेनिक वृद्धिदर में सबसे कम वृद्धिदर रोमन कैथोलिक की है और अगर यह ऐसे ही रही तो आने वाले समय में कैथोलिक धर्मावंलब्यिों का जनसंख्या अनुपात मुसलिमों से कम हो जाएगा। इटली,स्पेन और पौलेंड जैसे देशों में चर्च और सरकार प्रजनन दर बढ़ाने के प्रयास कर रही है। क्योंकि चर्च की चिंता का एक और भी कारण है कि आने वाले कुछ दशकों में कार्यशील यानी युवाओं (उम्र 15-60) की संख्या काफी कम हो जायेगा। बूढ़ों की बढ़ती तादाद के मामले में स्वीडन सबसे आगे है। बेल्जियम,नार्वे,ग्रीस,इटली जैसे देश इस समास्या से लड़ रहे है। चर्च शुरु से साम्राज्यवादी रहा है और वह अपने विस्तार के नये नये तरीके खोज ही लेता है। इस समय चर्च एशियाई देशों में अपना विस्तार करने में लगा हुआ है।

श्रीलंका, भारत, नेपाल, बर्मा, पकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान, जैसे देशों में कैथोलिक एवं गैर कैथोलिक चर्च संगठन अपने प्रभाव को बढ़ाने और नयी जमीन तलाश करने का कार्य कर रहे है। चर्च के इस विस्तारवादी आंदोलन के चलते मुस्लिम जगत में तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। वहीं चीन की सरकार ने चर्च को अपने नियंत्रण में ले लिया है। मुस्लिम देशों सें पोप ने अनुरोध किया है कि वह अपने यहा ईसाइयों को चर्च बनाकर खुले में प्रर्थना करने की इजाजत दें।

भारत के चर्च को अपने देश पर गर्व होना चाहिए कि उन्हें यहां बहुसंख्यक समुदाय से भी ज्यादा धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि चर्च की विस्तारवादी मानसिकता के चलते देश के कुछ हिस्सों में टकराव का वातावरण पैदा हो रहा है। दो वर्ष पूर्व हम उड़ीसा के कंधमाल में घटी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को झेल चुके है। जिसके कारण हमें विश्वपटल पर काफी बदनामी भी उठानी पड़ी। आज भी कुछ व्यक्ति एवं संगठन अपने स्वार्थो के चलते शांति के मार्ग में रोड़ा बने हुए है और विश्व पटल पर देश को बदनाम करने का कोई अवसर वह नही खोते।

भारत में इस समय हजारों ईसाई संगठन दलितों एवं आदिवासियों के बीच सक्रिय है। चर्च यह मानता है कि आज उसकी मौजूदा जनसंख्या का 70 प्रतिशत से ज्यादा दलित वर्गो से है। विदेशों से हजारों करोड़ रुपया प्रतिवर्ष अनुदान पाने वाले यह संगठन आज तक अपने इन धर्मांतरित अनुयायियों को सामाजिक समता और आर्थिक सुरक्षा नही दे पाए। संविधान में मिले शिक्षा के अधिकार तक से चर्च ने अपने अनुयायियों को बाहर कर दिया है और वह समुदाय के नाम पर मिले अधिकारों का व्यापारी बन गया है।

देश के दूर दराज के पिछड़े क्षेत्रों में एक नई संस्कृति और नए-नए प्रतीक खड़े किये जा रहे है। कहीं अंग्रेजी देवी के मंदिर बनाये जा रहे है और कही लार्ड मैकाले का जन्म दिन मनाया जा रहा है और कही किंग मार्टिन लूथर को भारतीय दलितो-वंचितों का मसीहा घोषित किया जा रहा है। यह सब बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है। पोप बेनेडिक्ट 16वें एवं चर्च को यह समझना चाहिए कि साजिशन किये गये संस्कृतिक बदलाव टकराव का कारण ही बनते है। ईसाइयों की सुरक्षा के लिए चर्च को अपना साम्राज्यवादी रवैया त्यागना होगा। अमन का संदेश देने वाला चर्च इस पर कितना अमल करता है यह तो समय ही बतायेगा।