भारतीय संस्कृति में बसंत पंचमी का महत्व

डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

बसंत पंचमी या श्री पंचमी भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। बसंत पंचमी पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ‘ऋषि पंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म में इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा के साथ रूप और सौन्दर्य के देवता कामदेव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

‘प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवत धीनामणित्रयनतु’ 

अर्थात् ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।

पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। 

बसंत पंचमी, बसन्त ऋतु के आगमन का उत्सव है। बसन्त पंचमी का उत्सव मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण तथा कामदेव इस उत्सव के अधिदेवता है। बसन्त ऋतु के आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। बसन्त का ये पर्व सभी जीवों को नई उमंग व उल्लास से भर देता है। हिन्दू पंचाग के अनुसार, वर्ष का अंत और प्रारम्भ बसन्त ऋतु में ही होता है। खेतों में लहलहाते सरसों के पीले फूल यूँ लगते हैं मानों धरा ने पीताम्बर धारण किया हो। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं। पीला रंग फलों और फसलों के पकने का प्रतीक है।

 यह त्योहार फूलों के खिलने और नई फसल के आने का  भी त्योहार है। यह त्योहार बसंत ऋतु को अत्यधिक खुशनुमा बना देता है। फूलों के खिलने से प्रकृति में चारों ओर भीनी-भीनी खुशबू फैल जाती है जिससे सारा वातावरण प्रेममय हो जाता है। शाखाओं में कोपलें फूटने के साथ ही जीवों के हृदय में भी प्रेम का स्फुटन होने लगता है। बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है। बसंत ऋतु कवियों व लेखकों की लेखनी के लिए अनन्त द्वार खोलती है। मां सरस्वती की कृपा सब पर बरसती है।

डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

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