महत्वपूर्ण पुस्तक विश्व की वैदिक चेतना

0
276

-मनमोहन कुमार आर्य
हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डौन सिटी की ओर से समय-समय से महत्वपूर्ण वैदिक साहित्य का प्रकाशन किया जाता रहता है। ऐसा ही एक प्रकाशन ‘‘विश्व की वैदिक चेतना” है। इस पुस्तक के लेखक श्री नवकान्त शर्मा, ग्वालियर हैं। पुस्तक के लिए प्रकाशक महोदय से उनके पते ‘हितकारी प्रकाशन समिति, ब्यानिया पाड़ा, द्वारा-‘अभ्युदय’ भवन, अग्रसेन कन्या महाविद्यालय मार्ग, स्टेशन रोड, हिण्डौन सिटी (राजस्थान)-322230, चलभाषः 7014249035, 9414034072’ से सम्पर्क किया जा सकता है। पुस्तक का मूल्य रुपये 100.00 है तथा इसकी पृष्ठ संख्या 87 है। पुस्तक का प्रकाशकीय आर्यसमाज के निष्ठावान विद्वान डा. विवेक आर्य जी, बाल रोग विशेषज्ञ, दिल्ली ने लिखा है। डा. विवेक आर्य जी प्रकाशकीय में लिखते हैं कि ‘विश्व की वैदिक चेतना’ पुस्तक को अध्ययनशील श्री नवकान्त शर्मा द्वारा वैदिक सत्य सनातन धर्म और सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार हेतु लिखा गया है। वेद सार्वभौमिक और सार्वकालिक हैं यही कारण है कि वर्तमान समय में इनकी प्रासंगिकता और ज्यादा आवश्यक है। वैदिक धर्म के मूलभूत सिद्धान्त शीर्षक से विचार व्यक्त करते हुए प्रकाशक महोदय लिखते हैं कि वैदिक धर्म सकल मानव समज के कल्याण हेतु प्रतिपादित ईश्वरीय नियम है। जिनका प्रकाश सृष्टि के आदि में हुआ था। आदि चार गुरुओं के माध्यम से यह ज्ञान प्रकाशित हुआ। आदि गुरुओं से ब्रह्मा आदि ऋषियों ने प्राप्त किया। इस प्रकार से वेद-ज्ञान सकल सृष्टि के जनों हेतु प्रचारित हुआ। आधुनिक काल में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने वेदों से सम्बन्धित भ्रान्तियों के निवारण एवं उसके सिद्धान्तों के प्रचार हेतु वेदों का भाष्य किया। यह भाष्य ऋषियों की प्राचीन परिपाटी पर ही आधारित है। इसके पश्चात वैदिक विद्वान डा. विवेक आर्य जी ने स्वामी दयानन्द जी के वैदिक धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला है जिनकी संख्या 30 है। स्वाध्यायशील पाठकों के लिए पुस्तक का प्रकाशकीय उपयोगी है, ऐसा हम अनुभव करते हैं।

प्रकाशकीय के पश्चात  पुस्तक में लेखक महोदय का ‘‘प्ररेणा” शीर्षक से दो पृष्ठीय आलेख दिया गया है। प्रेरणा शीर्षक से प्रस्तुत लेखक ने अपने विचारों में कहा है कि ईश्वर प्रदत्त ज्ञान को प्राप्त करके ही कोई शरीरधारी व्यक्ति सत्य-विद्या वेद को समझकर गुरु बनने में समर्थ होता है। इसलिए वह सर्वज्ञ परमेश्वर सृष्टि के आदि से लेकर अब तक जितने भी ऋषि, महर्षि, आचार्य, उपदेशक इत्यादि गुरु हुए हैं तथा जो आगे होंगे, उन सबका भी गुरु है। क्योंकि वह परमेश्वर काल से परे होकर कभी नष्ट नहीं होता, वह तो अजर-अमर और नित्य है। वह परमेश्वर इस सृष्टि की तरह पिछली सृष्टियों में भी सबका गुरु था और आगे आने वाली सृष्टियों में भी गुरु रहेगा। उस सर्वज्ञ में वेद-विद्या सहित अनन्त ज्ञान-विज्ञान सर्वदा एक रस बना रहता है। ‘प्रेरणा’ आलेख के बाद लेखक महोदय लिखित भूमिका दी गई है। भूमिका आठ पृष्ठों की है। भूमिका में एक स्थान पर लेखक ने बताया है कि सृष्टि के प्रारम्भ से मानव ने जब इस पृथ्वी पर पदार्पण किया तभी से मानव सभ्यता का विकास इस आदि-देश आर्यावर्त और पश्चात् प्रसिद्ध ‘भारतवर्ष’ की भूमि पर हुआ। यही कारण है कि जब भी मानव सभ्यता के इतिहास की बात होगी तो भारतवर्ष के इतिहास का संज्ञान लेकर विचारना आवश्यक होगा। यह बात इसलिए भी विचारणीय है कि संसार में इस देश से प्राचीन कोई देश नहीं। जब मानव सभ्यता का प्रारम्भ हुआ तो प्रथम श्रेष्ठ चार ऋषियों को चार वेदरूपी कल्याणी वाणी का परमेश्वर ने प्रकाश किया। 

किसी भी पुस्तक की विषय-सूची देखकर उसमें प्रस्तुत सामग्री व उसकी महत्ता का आंशिक अनुमान हो जाता है। हम यहां इसी आशय से पुस्तक की सूची प्रस्तुत कर रहे हैं। पुस्तक में निम्न 9 विषय दिये गये हैं। 

1- योग एवं स्वाध्याय
2- वेद और वैदिक वांग्मय
3- ईश्वर-तत्व
4- सत्य-प्रज्ञा सिद्धि
5- सृष्टि उत्पत्ति विषय
6- विज्ञान-सिद्धि
7- काल-गणना
8- आर्यावर्त
9- इतिहासवृत्ति की वैदिक प्रज्ञाएं

पुस्तक में उपर्युक्त विषयों पर ज्ञानवर्धक एवं रोचक सामग्री प्रस्तुत की गई है जो स्वाध्यायशील बन्धुओं के लिए उपयोगी है। स्वाध्याय में रुचि रखने वाले बन्धुओं को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिये। हम पुस्तक के लेखक महोदय को उनकी इस पुस्तक के लिए साधुुवाद देते हैं। प्रकाशक महोदय भी इस पुस्तक का प्रकाशन करने के लिए बधाई के पात्र हैं। प्रकाशक महोदय श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने हमें इस पुस्तक की एक प्रति उपलब्ध कराई है इसके लिए भी हम उनका आभार व्यक्त करते हैं। पुस्तक का अधिक से अधिक प्रचार हो जिससे पाठकों तक वैदिक मान्यताओं एवं ज्ञान का प्रकाश पहुंचे, लोग अधर्म को छोड़े और सत्य धर्म से परिचित होकर उसे ग्रहण व धारण करें, यह कामना करते हैं। ओ३म् शम्। 

-मनमोहन कुमार आर्य

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress