राजनीति में सर्वसमावेशी व्यक्तित्व बहुत जरूरी – के.एन. गोविन्दाचार्य

श्री के.एन. गोविन्दाचार्य का नाम आते ही हमारे सामने एक विराट व्यक्ति का चित्र उपस्थित हो जाता हैं। एक ऐसे समय में जब भारतीय समाज में चारों ओर तत्वनिष्ठा के स्थान पर व्यक्तिनिष्ठा देखा जा रहा है। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों में पले-बढे़ श्री गोविन्दाचार्य ने युवा अवस्था में ही भारत माता के श्री चरणों में सेवा का जो व्रत लिया वह आज तक अनवरत जारी है। श्री के.एन. गोविन्दाचार्य एक विचारक , प्रचारक , लेखक तथा प्रखर वक्ता हैं। जिनका सारा जीवन देश सेवा में बीता हैं। श्री गोविन्दाचार्य जी के वसंत कुज स्थित कार्यालय पर साक्षात्कार लिया डा. मनोज चतुर्वेदी और डा. प्रेरणा चतुर्वेदी ने। प्रस्तुत है साक्षात्कार का संपादित अंश –

डा. मनोज चतुर्वेदी- संघ के स्वयंसेवक कब बने तथा प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष तथा तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण कब हुआ ?

के. एन. गोविंदाचार्य- 19 मर्इ , 1960 में मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बना तथा 1962, 1963 तथा 1964 में प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष तथा तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया ।

डा. प्रेरणा चतुर्वेदी आप एक विचारक के रूप में जाने जाते हैं तथा मीडिया की नजर बराबर आप पर टिकी रहती है। वर्तमान दलबंदी, गुटबंदी तथा भ्रष्ट राजनीति के संबंध में आपका क्या कहना है ?

के. एन. गोविंदाचार्य- सन 1977 में मैं संपूर्ण क्रांति आंदोलन से जुड़ा था। एक लंबी आशा लेकर हमने मूल्यों एवं मुददों की राजनीति का श्री गणेश किया पर वर्तमान राजनीति को देखकर बड़ी निराशा होती हैं। ऐसे समय में एक बड़े आंदोलन की जरूरत है तथा दलबंदी, गुटबंदी, जातिवाद, क्षेत्रवाद से उपर उठकर ”राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए। अत: ऐसे समय में राजनीति में सर्वसमावेशी व्यकितत्व बहुत जरूरी है।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आप काशी हिन्दू विश्वविधालय के विधार्थी रह चुके है। उसके बारे में कुछ कहेंगे ?

के. एन. गोविंदाचार्य- काशी हिन्दू विश्वविधालय एक लेबल बन जाए ऐसा ही एक प्रयास 70 के दशक में हुआ था। वो था हिन्दू नाम हटाने का। हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है। इस देश की हिन्दुत्व, भारतीयता के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती । माननीय उच्चतम नयायालय ने हिन्दू धर्म की व्याख्या कर भी दिया है। अत: काशी हिन्दू विश्वविधालय का यह दायित्व बनता है कि वहां से निकले नौजवान देश के कोने-कोने में मालवीय जी के विचारों के प्रचार – प्रसार करें। जिस चिंता को लेकर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविधालय की स्थापना 1916 में किया था।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आप अपने जन्म तथा माता-पिता के संबंध में बताएं ?

के. एन. गोविंदाचार्य- 1945 में मेरा जन्म हुआ तथा 14 वर्ष की आयु में मैं अपने माता-पिता के साथ काशी आ गया । मेरी माता जी तिरूपति से तथा पिता जी तमिलनाडू से थे।

डा. प्रेरणा चतुर्वेदी- भार्इ साहब! आप अपनी शिक्षा के संबंध में बताएं ?

के. एन. गोविंदाचार्य- हरिशचंद्र इंटरमीडिएट कालेज से मैंने कक्षा 6 तक तथा सेंट्रल हिन्दू स्कूल से 7 से 12 वीं की शिक्षा पायी। 1956 में 10 वीं तथा 1958 में 12 वीं की परीक्षा उतीर्ण हुआ तथा 1962 में काशी हिन्दू विश्वविधालय से उतीर्ण हुआ। 1964 में मैं शोध छात्र के रूप में रजिस्टर्ड भी हुआ तथा 3 माह तक पढ़ाया भी।

डा. मनोज चतुर्वेदी- प्रचारक जीवन के संबंध में बताएं ?

के. एन. गोविंदाचार्य-1965 में मैं 6 माह वाराणासी में प्रचारक रहा फिर भागलपुर में संगठन ने भेज दिया । वहां मैं जुलार्इ 1966 से 1969 तक रहा। फिर 1970 में पटना में जिला प्रचारक के रूप में काम किया । वही 1970-1974 तक विभाग प्रचारक तथा जब माननीय जयप्रकाश नारायण जी ने क्रांति का बिगुल फुंका उसमें मीसा में मैं जेल में रहा। सन 1977 -78 में मै क्षेत्रीय संगठन मंत्री रहा। 1981-86 दक्षिणी भाग, 1986-88 उतरी भाग तथा 1988 में भाजपा में आ गया। 1988 से 2000 तक भाजपा में महामंत्री रहा।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आपने राजनीति से अध्ययन अवकाश क्यों लिया ?

के. एन. गोविंदाचार्य- मैंने एक लंबे समय तक सार्वजनिक जीवन में काम किया । तत्पश्चात मुझे ऐसा लगा कि राजनीति से बंधकर बहुत कुछ नहीं किया जा सकता है। सन 2000 में मैंने राजनीति से अध्ययन हेतु अवकाश लिया तथा काशी के शूल टंकेश्वर मंदिर में रहकर अध्ययन जारी रखा।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आपका 2012 का एजेंडा ?

के. एन. गोविंदाचार्य- मेरा कोर्इ बहुत बड़ा एजेंडा नही है फिर में मुझे 12 वर्षों की जरूरत है। जिसमें में नया ढांचा तथा नए लड़ाकों को तैयार करने की योजना है।

2012 -16 तक जन दबाव बनाना ।

2016-2020 तक आकार आना शुरु हो जाएगा तथा 2020 के बाद दृश्यमान नजर आएगा। पहल, प्रयोग, प्रयास का यह प्रयोग निरतंर जारी रहेगा। इस बीच कार्यों का निर्धारण । प्रयास के पश्चात कुछ उपलबिधयां मिलेंगी।

डा. प्रेरणा चतुर्वेदी- आगामी योजना का लक्ष्य?

के. एन. गोविंदाचार्य- दो लक्ष्य होगा। प्रथम, बुनियादी जरूरतों को पूरा करने हेतु तथा दूसरा , रोटी , कपड़ा और मकान से संबंधित होगा।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आपके और वसव राज पाटील के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ने कालबुर्गी (कर्नाटक) में जो भारत विकास संगम कराया । उसके संबंध में कुछ बताएं।

के. एन. गोविंदाचार्य- राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन, भारत विकास संगम तथा कौटिल्य शोध संस्थान ये आंदोलनात्मक, रचनात्मक तथा बौद्विक संगठन हैं। क्योंकि सामाजिक परिवर्तन के लिए आंदोलनात्मक, रचनात्मक तथा बौद्विक संगठनों के बिना सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं है।

डा. मनोज चतुर्वेदी- क्या भारत के विश्वगुरु बनने या होने पर प्रश्नचिन्ह लगता हैं ?

के. एन. गोविंदाचार्य- भारत विश्वगुरु है तथा रहेगा। विश्व की तुलना में भारत के लोगों का नैतिक स्तर श्रेष्ठ है। व्यवस्था में परिवर्तन हो तो वह ठीक प्रकार से कार्य करेगा। घूस लेने व देने की प्रकृति को हर प्रकार से समाप्त किए बिना देश का विकास संभव नहीं है।

डा. मनोज चतुर्वेदी- राजनीतिक दलों में यथासिथतिवाद के बारें में कुछ बताएं?

के. एन. गोविंदाचार्य- मैंने सकि्रय राजनीति से अलग होने का जो निर्णय लिया वो ठीक था । दलीय राजनीति से यथासिथतिवाद को तोड़ना होगा ।

डा. मनोज चतुर्वेदी- वर्तमान राजनीति में धनबल , बाहुबल, जातिबल तथा कर्इ प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इसके बारे में आपका क्या कहना है?

के. एन. गोविंदाचार्य- उपर आपने जिन बातों का जिक्र किया है वे सभी सार्वजनिक जीवन के लिए विष के समान हैं। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन समविचारी संगठनों के साथ मिलकर संपूर्ण क्रान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा। उक्त योजना का जिक्र आगे कर ही चुका हू।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आपके दृषिट में सबसे अच्छी राजनीतिक पार्टी कौन है?

के. एन. गोविंदाचार्य- जनांदोलन एवं जनदबाव के दवारा राजनीति को प्रभावित किया जा सकता है। सतापक्ष तथा विपक्ष का भेद कुछ भी नहीं रह गया है। वर्तमान में अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर , लोक सता पार्टी के जयप्रकाश तथा यूथ फार डेमोक्रेसी के कार्यकर्ता जनांदोलन एव जनदबाव दवारा अच्छी पहल कर रहे हैं। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही देश के समस्त देशभक्तों को सहयोग मिल रहा है।

डा. मनोज चतुर्वेदी- आंदोलन एवं मीडिया तथा मीडिया और आंदोलन के संबंध में आपका क्या मत है? आपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विधार्थी परिषद और भारतीय जनता पार्टी में लंबे समय तक कार्य किया हैं तथा अध्ययन अवकाश के बाद राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के माध्यम से जन सेवा कर रहे हैं। आपने मीडिया को बहुत नजदीकी से देखा है तथा देख भी रहे हैं। आपातकाल में मीडिया के चाल चरित्र को तो आपने देखा ही था। श्री लाल कृष्णा आडवाणी ने एक बार कहा था ‘कि मीडिया को झुकने के लिए कहा गया था , लेकिन वो रेंगने लगी ।

के.एन. गोविन्दाचार्य- देखिए संघ के प्रति मीडिया का नजरिया बहुत ठीक नहीं रहा है। क्योंकि अधिकांश मीडिया संस्थानों में संघ के प्रति पूर्वाग्रही लोगों की भरमार है। लेकिन वर्तमान में संघ के प्रति मीडिया के विचार में परिवर्तन हुआ है। बी.पी. लहर, श्री राम जन्मभूमि आंदोलन , अन्ना आंदोलन तथा राम देव प्रकरण में मीडिया ने बढ चढकर भाग लिया । सामाजिक जीवन में जो भी घटनाएं घटती हैं तथा जिसमें विशाल जनता की सहभागिता होती है। जिसमें मूल्यों एवं मुददों की बातें होती है, उस पर मीडिया की नजर अनायास टीक जाती है। राम देव और अन्ना हजारे प्रकरण में मीडिया ने अन्याय और अत्याचार की तीव्र भत्र्सना की। कांग्रेस सरकार को लगा कि राम देव और अन्ना हजारे आंदोलन मात्र कुछेक लोगों का आंदोलन नहीं है। अत: यह कहा जाए कि मीडिया में आन्दोलन तथा आंदोलन में मीडिया का होना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है।

डा. प्रेरणा चतुर्वेदी- युवाओं के लिए आपका कोर्इ संदेश ?

श्री के.एन. गोविन्दाचार्य- युवाओं में अनंत उर्जा का अक्षय भण्डार है। वे पूरे विश्व को बदल सकते हैं । हा, लेकिन उनको उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है। वे भारत और विश्व के भविष्य हैं ।

डा. मनोज चतुर्वेदी-आपने अपना बहुमूल्य समय दिया ।

के. एन. गोविन्दाचार्य- (हंसते हुए) बहुमूल्य समय वो भी आपके लिए।

3 COMMENTS

  1. गोविन्दजी मुझसे १० वर्ष बड़े हैं वैसे पिताजीके संघचालक होने के कारण मैं होश सम्हालते ही संघ का और उसके द्वारा होनेवाले कामकरने लगा था १९६३ में स्वामी विवेकानंद की १० पैसे के टिकट बेचने की याद है शिला स्मारक के लिए और १९६७ का गोरक्षा आन्दोलन जब मैं भाषण दिया करता था.. मेरी एक धारणा है की जो स्कूल में स्वयंसेवक नहीं बन सका वह आगे शुभेच्छु भले बन जाये स्वयमसेवक नहीं बन सकता..कहीं न कही कुछ पाने की इच्छा रहती है,, इस कसौटी से गोविन्दजी का महाविद्यालय में स्वयमसेवक बनाना(?) या तो मैं अपनी कसुती बदल लूँ या उस पर उन्हें कसून?
    मुझे इस बात का कोई अंतर नहीं पड़ता की कोई कितने बड़े पद पर गया . डॉ. हेडगेवार के समय ८-१० तक ही संघ शिक्षा हुआ करती थी और वही सही थी यह मानना होगा क्योंकि हमने अनेक शिक्षितों के रवैये देखे हैं..
    गोविन्दजी से मेरा परिचय १९७० से है और अत्यंत निकट का सहकारी मैं उनका रहा हूँ..पर जिन्होंने मुझे गोद में खिलाया उन्ही के साथ या नीचे कहें गोविन्दजी को काम करना था और वे उनसे बहुत खुश नहीं थे .
    कई बार अभिभावक अपने बच्चे की अधिक त्वरितता को पसंद नहीं करता ऐसा ही समझिये..
    संघ से अधिक वे JP के निकट चले गए..यह एक सत्य है
    BJP में अपने पिता के उम्रवालों की उन्होंने वो क़द्र नहीं की जो अपेक्षित था
    और इसका अंत अच्छा नहीं हुआ
    मैं उनके स्वयम निर्वासन/ अद्ययन को अच्छा नहीं समझता हूँ..
    यह न तो उनके लिए अच्छा था न ही संगठन के लिए
    संगठन कोई भी होगा उसमे समस्याएं होंगी ही
    आज आपातकाल का वह दिन है जिसने गोविन्दजी को सक्रिय कर दिया नहीं तो वे भी कंही हजारों में एक प्रचारक रहते. उन्हीका कंही शब्द लिखा था बड़ा अ डमी बड़ी गलती करता है – उन्हीने भी शायद यही किया
    पर मेरे वे अग्रजतुल्य हैं, मेरा अपने भाई के साथ भी बहुत तर्क होता था वे भी तृतीय वर्ष किये थे, गुरूजी, और भाऊ राव के निकट रहे थे..पर काम मेरे द्वारा अधिक हुआ क्योंकि मैं अनुशाशन की लाक्स्मन रेखा पार कर जाता था – बिगडैल क्लाइव ने सामराज्य खड़ा किया था.. गोविन्द जी ऐसा कर सकते थे वे उस ऊँचाई तक पंहुच गए थे जिसे मेरे जैसा आदमी पानी उछ शिक्षा के चलते छू नहीं पाया (पार इसमें उनसे अधिक संघ का योगदान था – वे सीधे अडवानी के साथ सहयोगी नहीं किसी और के नाते लगा दिए गए – यंही भाऊ राव से गलतीहो गयी और स्वयम गोविन्दजी अपने को अंक नहीं पाए और एक अध्याय बंद हो गया
    ठीक है जीवन नित नए अध्याय की बात होती है – उनका स्वास्थ्य पता नाहे एकीतना साथ देगा और वे अपनी सोच के बीज और संघ के संस्कार में कितना समन्वय कर पाएंगे – राजनैतिक रूप से वैसे भी उनका व्यक्तिगत कोई आधार नहीं कभी बनाता जैसे अटलजी वा अड्वानीजी के मामले में हुआ क्योंकि वे प्रचारक थे स्थानीय समस्यायों से जूझने वाले नेता नहीं- गोविन्दजी उनका स्थान उसी प्रकार लेल सकते थे पार उन्हें कोई राजबहू वा भंडारी जी नहीं मिले.. यह देश के लिए भे दुर्भाग्य की बात हुई
    मुझे याद है वे नए नए बीजेपी में गए थे उन्होंने कहा था की हर प्रान्त में आपसी झंझट है .. बाद में एक बार डॉ. मुनीश्वर ने मुझे कहा रजा के मंदी स्टेशन पार की मैं नौकरी छोड़ BJP में जून वे सुदर्शनजी से बात करेंगे,, शायद गोविन्दजी को मेरे जैसे अनेक लोगों के जरूरत थी पार उन्होंने भी उन्ही को बढ़ाया जिनकी निगाहें कहीं और थी- जो उनके पटना आने पोअर स्टेशन पार रेसीवे करने आते थे जिसे मैं आज भी बेकार समय का अपव्यय समझता हूँ ..कही न कही उनसे लोगों को पहचानने में गलती हुई और परिणाम..
    उन्होंने जो उत्तर दिया है उन सबों से मैं पूरा सहमत तो नहीं हूँ.. पार काटना या जोड़ना बहुत उचित नहीं होगा .फिर भी . सामाजिक आन्दोलन गणित के मॉडल पार नहीं चलते..गोविन्दजी समाज में रहे ही नहीं , उनको बहुत अनुभव स्थानीयता का नहीं है,, वे आदर्श हैं पार समाज आदर्श की पूजा भले करे उनसे चलता नहीं है.. संघ की हिंदुत्व की सोच और सम्पूर्ण क्रान्ति की बात एक सांस में नहीं चल सकती
    ” दलबंदी, गुटबंदी, जातिवाद, क्षेत्रवाद से उपर उठकर ”राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए” कहना आसान है जोना कठिन । ‘सर्वसमावेशी व्यकितत्व’ बहुत जरूरी है पर उप्पर के चारों नियामक एक ही सामान नहीं हैं – इनकी विस्तृत व्याख्या इसके कई अंशों को सही मनबा लेगी..
    “बुनियादी जरूरतों को पूरा करना और , रोटी , कपड़ा और मकान” में क्या अंतर है स्पस्ट नहीं है……
    “सामाजिक परिवर्तन के लिए आंदोलनात्मक, रचनात्मक तथा बौद्विक संगठनों के बिना सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं है” की धारणा हिन्दू वांग्मय से मेल पूरी नहीं खाती वल्कि इसमें कंही ना कंही वर्ग संघर्ष की बू आती है ।…ये तीन नहीं एक ही गुण के रूप में देखी जानी चाहिए
    “राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन समविचारी संगठनों के साथ मिलकर संपूर्ण क्रान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा-” में फिर वे एक गड़े मुर्दे की बात कर रहे हैं- सम्पूर्ण क्रान्ति –विशेषणों के ओप्रयोग से विज्ञानं के शिक्षक बचा करते हैं..क्रांति या परिवर्तन यदि सत्ते का भाग नहीं हो तो विप्लव व विध्वंश दायक हैं.. मर्क्स्वाद्द का अध्यात्म से खी चडी पक नहीं सकता,,।

    “अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर आदिको अछ्छे धर्मिष्ठ उम्मीदवारों की सूची के लिए अप्पाल करनी चाहिए की वे जीतें
    ,
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपन एकरी को स्कूली बच्चों तक सीमित कर चरित्र निर्माण तक सीमित कर लेना चाहिए..
    प्रचारक व्यवस्था का पुनाराकलन होना चाहिए
    मीडिया की निस्पक्षिता अब असम्भव सी है व्यव्सयीकर्ण के चल्टर -उनसे अधिक अपेक्षा न कर वैक्लिक व्यवस्था स्वयम धुधाना चाइये(नेट आदि के द्वारा
    युवा की सोच सकारात्मक है अपने कैरियर के लिए पर समाज के परती संवेदनाएं घाट गयी है और वे उसमे उल्झ्नना नहीं चाहते.
    मैंने गोविन्दजी की बैटन को काटने का दुस्साहस किया पहले भी करता था यह उन्हें पता है, आपलोगों को खरब लग सकता है पर मुझे जो लगा मैंने लिखा
    ..

  2. गोविन्द चर्या जी की सभी बाते बिना kisi लग लपेट के ह हमें उनसे परेरना लेनी चाहिय

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