प्रलोभन देकर स्टिंग आपरेशन करना अनुचित : चंदन मित्रा

“स्टिंग आपरेशन” के दो पहलू हैं और इन दोनों में फर्क करना चाहिए। एक तो वास्तविक रूप से जो कुछ घटनाएं हो रही हैं, कुछ लोग रिश्वत ले रहे हैं, उन्हें लोगों के सामने लाना चाहिए। मैं समझता हूं कि उसका औचित्य है। जैसे कुछ दिन पहले एक चैनल ने दिखाया था कि दिल्ली स्थित बिक्री-कर के कार्यालय में किस तरह की धांधलियां हो रही हैं। वह एक अच्छा “स्टिंग आपरेशन” था। पर किसी को प्रलोभन देकर “स्टिंग आपरेशन” करना नैतिक रूप से कतई उचित नहीं है। इस तरह के “स्टिंग आपरेशन” न हों, इसके लिए विदेशों में कानून हैं। ऐसे कानून हमारे यहां भी बनने चाहिए। पिछले दिनों हुए अधिकांश “स्टिंग आपरेशनों” से साफ झलकता है कि भाजपा एवं उसके समविचारी संगठनों को शक के घेरे में लाने के इरादे से ऐसा किया जा रहा है। इसलिए हमने देखा है कि इस तरह के सारे आपरेशन किसी मनगढ़ंत संस्था के नाम से किए जाते हैं। अब तक जितने भी “स्टिंग आपरेशन” हुए हैं, उनसे किसी को लाभ नहीं हुआ है। उन्होंने क्या साबित किया? यही न कि लोग प्रलोभन में आकर पैसे लेते हैं या कुछ महिलाओं से उनके नाजायज संबंध हैं। ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है, लोग ऐसे प्रलोभनों में पड़ जाते हैं। अगर इस तरह से आप लोगों को प्रलोभन देकर कैमरा में कैद करेंगे तो मैं समझता हूं कि इसमें नैतिकता और जनता का कोई हित नहीं है। ऐसे आपरेशन एक साजिश के तहत किए जाते हैं। इसलिए मैं इसे सही पत्रकारिता नहीं मानता हूं। ये लोग राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हैं। इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ये लोग आरोपियों को अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं देते और उन्हें मुजरिम करार दे देते हैं। जैसे भाजपा महासचिव संजय जोशी का ही मामला है। इस प्रकरण में अभी तक यह भी साबित नहीं हो पाया है कि जिस व्यक्ति को उस सी.डी. में दिखाया जा रहा है वे संजय जोशी ही हैं या नहीं। एक मिनट के लिए मान भी लीजिए कि वह संजय जोशी ही हैं तो सवाल उठता है कि इससे जनता का कौन-सा हित सध गया? किसी के व्यक्तिगत जीवन में आपको दखल देने का क्या अधिकार है? मैं समझता हूं कि “स्टिंग आपरेशन” से जुड़े चित्रों को टी.वी. के पर्दे पर दिखाना या उन्हें अखबारों में छापना कानूनन अपराध घोषित किया जाना चाहिए और इसके लिए जो लोग जिम्मेदार हैं, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

 

इसके लिए सरकार को भी कानून में बदलाव लाने की जरूरत है। आज तो स्थिति यह है कि चैनलों के लिए प्रेस परिषद् जैसी कोई संस्था भी नहीं है। टेलीविजन में आप कुछ भी दिखा सकते हैं। आपने जिसको बदनाम कर दिया, जलील कर दिया, वह दर-दर भटकता रहेगा। उसके पास कोई उपाय नहीं है कि उसके साथ जो कुछ हुआ उसके खिलाफ वह कार्रवाई करे। इसलिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इसके लिए कानून बनाए। कुछ खास स्थितियों में जनहित से जुड़े मुद्दों पर किए गए “स्टिंग आपरेशनों” को ही दिखाया जाना चाहिए, वह भी सरकार की अनुमति से। अब लोग कहेंगे कि यह तो मीडिया पर अंकुश है, किन्तु मेरा मानना है कि स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच फर्क तो करना ही पड़ेगा। पश्चिमी देशों में, जहां स्वतंत्र मीडिया का इतिहास दो-तीन सौ साल पुराना है, वहां भी मीडिया पर इस तरह के अंकुश हैं। तो फिर भारतीय मीडिया का यह कहना सही नहीं होगा कि प्रेस की आजादी पर सरकारी हस्तक्षेप हो रहा है। अन्य देशों में मीडिया के लिए जो कानून हैं, उनके साथ तालमेल करके ही हमें चलना चाहिए। यह नहीं हो सकता कि भारत अपने ही रास्ते पर चले और दुनिया के बाकी देशों के लिए नैतिकता की परिभाषा कुछ और हो और हमारे यहां कुछ और। मीडिया के वंशवादी राजनीति से जुड़ने के सवाल पर मैं सहमत नहीं हूं। क्योंकि मीडिया ने ही कांग्रेसी कार्यकाल में हुए घोटालों को उजागर करने का काम किया है। वोल्कर रपट मीडिया ही सामने लाया है और अभी क्वात्रोकी का मामले भी मीडिया ने ही उठाया है। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि मीडिया कांग्रेस पार्टी और उसकी अध्यक्षा के सामने नतमस्तक है, उनकी कहानियों को सामने नहीं ला रहा है। हां यह बात जरूर है कि सोनिया गांधी पर्दे के पीछे से राजनीति करती हैं, वह मीडिया से भी बातचीत नहीं करती हैं। वह अपनी छवि एकदम अलग बनाए रखना चाहती हैं। मेरे विचार से यह कांग्रेस की चालाकी है। कांग्रेसी यह नहीं चाहते हैं कि सोनिया गांधी को सामने लाएं, ताकि उनका वास्तविक रूप छिपा रहे। (पांचजन्‍य 2006)

(अरुण कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)

1 COMMENT

  1. सरम नहीं आती,चोरों के कुकर्म पर पर्दा डालने और मुद्हे से धयान हटाने के लिए कुतर्क दिए जा रहे हैं ये तथाक्ठित महागायानि महापुरुस चन्दन मित्र साहब जनता को क्या इतना नासमज़ समझते हैं की इनकी बकवास को सच मानेगे चलते-२ कम से कम उन देसों के नाम तो बतादें जहाँ इतने पवित्र kanun बने हैं

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