सोच में सुधार करो सोच से ही मानव या दानव बनता

—विनय कुमार विनायक

सोच में सुधार करो

सोच से ही मानव या दानव बनता

एक सोच वह भी थी

जिससे पर्सिया और गांधार में

शिक्षा और शांति थी

दूसरी सोच वहाँ ऐसी आई,

जिसने हिंसा और तबाही मचाई

टूट गया पर्सिया

ईरान इराक बना,गांधार कांधार बना

तक्षशिला विश्वविद्यालय

मिट्टी में मिल गया बना रावलपिंडी

नारी घर में कैद हो गई,

हर तरह मारकाट झगड़ा और लड़ाई!

एक सोच वह भी थी

जिसमें नारियां देवी होती थी,

नारी की पूजा होती थी

नारी वेद शास्त्र पढ़ती थी,

घोषा मैत्रेयी गार्गी बनती थी

दूसरी सोच ऐसी आई

जिसने नालंदा विक्रमशिला जलाई

जिससे छूट गई सबकी पढ़ाई,

चहुंओर दंगा-फसाद और तबाही

जिससे नारी बन गई

पैर की जूती और खुदा की खेती!

एक सोच वह भी थी

जिसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः—

सभी सुखी हो सभी निरोग हो ना कोई दुखी हो

जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना थी

दूसरी सोच ऐसी आई

जो ईश्वर खुदा के नाम कोहराम मचाये लगी

आदमी को बनाने लगी थी बलवाई!

निष्पक्ष भाव से ऐसा सोचो

जिससे चराचर जीव जगत की भलाई हो

ऐसा है कि सोच विचार की शक्ति

मानव जाति को विरासत में मिली

जिससे पाशविकता से मिलती मुक्ति!

ईश्वर को निष्पक्ष निष्पाप ही रहने दो

निजी स्वार्थ के लिए अपने अनुकूल

दूसरे के प्रतिकूल शतरंज की गोटी ना बनाओ

मानव हो मानव ही रहो विकृत सोच से

रावण सा राक्षस कंश सा दानव ना बनो!

समय समय पर सोच में सुधार करो

मानव हो मानव बनो महमूद गजनवी मुहब्बत गोरी

अल्लाउद्दीन खिलजी बख्तियार तैमूर बाबर ना बनो

मनु नूह के सपूत मानव हो फियादीन हमलावर ना बनो!

—विनय कुमार विनायक

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