राजनीति

दरअसल ये लोग मानवता के द्रोही हैं…

गिरीश पंकज

नक्सलियों के समर्थन के आरोप में डॉ. विनायक सेन और अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इस फैसले के विरुद्ध बहुत से संगठन सड़कों पर उतर चुके हैं। देश के अनेक शहरों में प्रदर्शन भी हो रहे हैं। रायपुर में भी कुछ एनजीओ ने धरना दिया। यह पहली बार हो रहा है कि किसी फैसले पर इतनी गहरी उत्तेजक-प्रतिक्रिया सामने आ रही है। फैसले के विरुद्ध न्यायालय में लड़ाई लड़ी जानी चाहिए, लेकिन लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। लोकतंत्र का एक रूप यह भी है। लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है, कि विनायक सेन को राजद्रोह के आरोप में आजीवन कैद की सजा सुनाने वाली अदालत का कोई दोष नहीं है। अदालत में जो साक्ष्य प्रस्तुत किए गये, उसके हिसाब से ही न्यायालय नें अपना फैसला सुनाया है। न्यायालय पर उँगली उठाना, कि फैसला अन्यायपूर्ण है, एक तरह से न्याय-व्यवस्था की अवमानना ही है। लेकिन देश में लोकतंत्र है, इसलिए यह भी चल रहा है। चलना भी चाहिए। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का शालीन अधिकार हर नागरिक को प्राप्त है। न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत किए गये हैं, कि विनायक सेन सत्रह महीने में तैंतीस बार सिर्फ उस व्यक्ति से मिलने गये, जो नक्सली-समर्थक है। प्रदेश सरकार नक्सली समस्या से जूझ रही है। नक्सली हिंसा का तांडव कर रहे हैं। ऐसे में कोई नक्सलियों के समर्थन में खड़ा होगा, मतलब वह हिंसा के पक्ष में खड़ा है। स्वाभाविक है, कि उस पर कार्रवाई होगी। अब विचारणीय पहलू यह हो सकता है, कि क्या यह राजद्रोह है? बहस इस मसले पर होनी चाहिए।

मेरे ख्याल से हिंसक नक्सलियों के पक्ष में खड़े लोग मानवताद्रोही हैं।अंगरेजो के समय के कानून का इस्तेमाल करके देश में अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने की मानसिकता के खिलाफ फिर कभी चर्चा होगी, मगर विनायक सेन प्रकरण पर अहिंसा प्रेमी साथियों का यही मानना है कि हिंसा का साथ देना अभिव्यक्ति की लड़ाई नहीं हो सकती। सामाजिक न्याय का मतलब यह नहीं कि हम लगातार लोगों का गला रेतते रहें। मासूमों की हत्याएँ करते रहें। और उस पर आप अपेक्षा करें कि कोई सरकार आपके खिलाफ कार्रवाई ही न करे? लोकतंत्र का मतलब अराजकता भी नहीं है कि जिसके मन में जो आए, वह करें। अन्याय का प्रतिवाद होना ही चाहिए। जिंदा लोगों को यह काम करना चाहिए। मगर हमें यह देखना होगा कि हम किसके पक्ष में खड़े हैं। मैं कभी सत्ता के साथ खड़ा नहीं हो सकता। सत्ता अगर गलत करती है तो प्रतिवाद करना मेरी फितरत है। लेकिन मैं हिंसा के पक्ष में भी खड़ा नहीं हो सकता। भले ही मुझे बुद्धिजीवी न माना जाए। इसकी जरूरत ही नहीं है। बस्तर या कहीं भी अगर शोषण या अन्याय हो रहा है, तो उसका रचनात्मक प्रतिवाद जरूरी है। उस दो साल के मासूम बच्चे ने कौन-सा अन्याय कर दिया था, नक्सलियों ने जिसका गला काट दिया था। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिसके माध्यम से नक्सलियों की क्रूरताएँ सामने आई हैं। ऐसे नक्सलियों के समर्थकों के साथ- मेलजोल रखना किसी भी कोण से उचित नहीं कहा जा सकता। मैं विनायक सेन को एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानता हूँ। उनके अनेक रचनात्मक आयोजनों को मैंने निकट से देखा भी है। वे मुझे कभी भी संदिग्ध नहीं लगे। लेकिन लगता है, कि कुछ अतिभावुकता के कारण वे नक्सली नेता नारायण सान्याल से बार-बार मिलने के कारण ही संदिग्ध हो गए। वे राजद्रोही भले न हो, मगर नक्सलियों के समर्थन में खड़े होने के कारण मानवता के द्रोही तो जरूर हो गए हैं। नक्सली हत्यारे हैं। उन्होंने अब तक सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारा है। और बेवजह। किसी को मुखबीर होने शक में, तो किसी को जानबूझ कर। सुरक्षा बलों के लोगों तो जबरन उड़ा दिया। ऐसे हत्यारों के किसी नेता से बार-बार जेल जा कर मिलना मानवाधिकार का काम नहीं कहा जा सकता। मगर फिलहाल, नक्सलियों के समर्थकों को सजा मिलने पर चिल्लाने वाले लोग भी संदेह के दायरे में आ रहे हैं। ये लोग अन्याय का विरोध कर रहे हैं, कि नक्सलियों का समर्थन? नक्सली-समर्थक भले न भी हों, मगर ये सब हिंसा के समर्थक जरूर लग रहे हैं। ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई नहीं, सामाजिक कार्रवाई होनी चाहिए और उन तमाम लोगों का बहिष्कार होना चाहिए, जो हिंसा के पक्षधरों को महानायक की तरह प्रस्तुत कर रहे हैं। किसी भी सभ्य समाज में हिंसा की जगह नहीं होनी चाहिए। राज्य जो हिंसा करती है, वह कई बार प्रतिक्रियास्वरूप होती है। कानून-व्यवस्था कायम करने के लिए गुंडे-बदमाशों को गिरफ्तार किया ही जाता है। नक्सलियों के समर्थकों को इसीलिए पकड़ा जाता है क्योंकि वे खुल कर हिंसा कर रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि अपने लोकतंत्र में बहुत-से कानून अंगरेजों के समय के हैं। उसका फायदा सरकारें उठाती रही हैं। राजद्रोह जैसी धाराएँ इसी बात का सबूत हैं। इसलिए जरूरी यह भी है, कि पहले गुलामी के दौर के अनेक कानून बदले जाएँ और लोकतांत्रिक देश को सूट करने वाले सात्विक कानून लागू किए जाएँ। वैसे कानून लागू होंगे तो विनायक सेन जैसे लोग राजद्रोह नहीं, मानवताद्रोही माने जाएंगे। और उसी के अनुरूप उनको सजा मिलेगी।