1 साल में केजरीवाल ने ऐसे पलटा पासा

 

14 फ़रवरी जी हां, दुनिया में इस दिन भले ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता हो, लेकिन इस तीराख का अरविंद केजरीवाल की जिंदगी में एक खास महत्व है..एक साल पहले ठीक इसी दिन केजरीवाल ने जनलोकपाल के मुद्दे पर 49 दिनों में ही दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था..चारो तरफ केजरीवाल की आलोचना होने लगी, दिल्ल की जनता खुद को ठगी सी महसूस करने लगी…लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को हार मिली तो पार्टी मे आपसी मतभेद उभरने ऐसी लगा कि  आम आदमी पार्टी (आप) का वजूद ख़तरे में है और इसके नेता अरविंद केजरीवाल का राजनितिक करियर ख़त्म होने की कगार पर है…लेकिन महज एक साल बाद 14 फरवरी को अरविंद केजरीवाल जब दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे तो दिल्ली में एक साल के भीतर इतिहास खुद को दोहरा रहा होगा..इस एक साल के भीतर केजरीवाल ने न सिर्फ पार्टी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया बल्कि पार्टी में इतनी जान फूंक दी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और बीजेपी तीन सीटों तक सिमट गई ..इस ऐतिहासिक जीत को हासिल करने के लिए केजरीवाल ने न सिर्फ धैर्यपूर्वक मेहनत की बल्कि कदम दर कदम अपनी रणनीति में बदलाव किए.

भाषणों में विविधता

आमतौर पर किरण बेदी या नरेंद्र मोदी के भाषण केजरीवाल को निशाना लेकर किए जाते थे…जबकि केजरीवाल अपने भाषणों मे चार बातों को प्रमुखता देते थे…केजरीवाल सबसे पहले यह बताते थे कि केंद्र सरकार दिल्ली में अपने वादे निभाने मे पूरी तरह विफल रही है..बीजेपी के लोग आप को रोकने के लिए क्या क्या कर रहे हैं, केजरीवाल इऩ मुद्दों को भी जनता के बीच उठाते थे…फिर केजरीवाल अपने 49 दिन की सरकार के कामकाज का उल्लेख करते थे…इसके बाद केजरीवाल अपने वादों और विजन के बारे में लोगों को बताते थे और भरोसा दिलाते थे कि वे किस तरह से उनकी उम्मीदों को पूरा कर सकते हैं…

मोदी के स्टाइल में सवाल जवाब

कुछ हद तक केजरीवाल मोदी स्टाइल में लोगों से ही सवाल जवाब करते थे…खासकर जब प्रधानमंत्री ने केजरीवाल को अप्रत्यक्ष रूप से नक्सली कह दिया था..बीजेपी की प्रत्याशी ने केजरीवाल को बंदर तक कह जाला था…इस पर केजरीवाल जनसभाओं में लोगों के बीच जाते थे और पूछते थे..आप बताओ क्या मैं नक्सली हूं..?इस पर केजरीवाल को जनता की तरफ से नहीं में जवाब मिलता था तो केजरीवाल जीत के प्रति और भी आश्वस्त होते जाते थे

49 दिनों को भुनाया

केजरीवाल के 49 दिनों में सरकार छोड़कर जाने की बात उनके खिलाफ जा रही थी…लेकिन चुनाव से पहले केजरीवाल ने अपनी गलती मानकर इसी बात को भुनाने की कोशिश की…करीब करीब हर जनसभा मे केजरीवाल न माफी मांगने से शुरुआत की और कहा कि अब उन्होंने काफी कुछ सीख लिया है ,,,अब सत्ता मिली तो पूरे पांच साल पद पर बने रहेंगे..केजरीवाल ह्यूमरस स्टाइल में कहते थे…क्या करें इंसान हैं गलती हो जाती है…लेकिन अब में सत्ता छोड़कर नहीं जाऊँगा..केजरीवाल की इस बात से लोग पिछली सरकार की नाकामी को भूलकर उनके नए वादों पर केंद्रित हो जाते थे

वीआईपी कल्चर का जिक्र नहीं

पिछले साल तक केजरीवाल ने वीआओईपी कल्चर को बडा इश्यू बनाया…खुद भी सरकारी बंगला, गाड़ी और सिक्योरिटी लेने से इनकार किया था…लेकिन जब केजरीवाल ने बंगला, गाड़ी और सिक्योरिटी ले ली तो उनकी किरकिरी होने लगी, वादों से पलटने की आरोप लगने लगा..लिहाजा इस बार केजरीवाल ने इस मुद्दे को दूर रखना बेहतर समझा..हालंकि केजरीवाल अब भी बड़े सुरक्षा घेरे मे नहीं जाते लेकिन वीआईपी कल्चर पर अटैक नहीं करते..उन्हे पता था ऐसा करने से उनका अपर क्लास वोट खिसक सकता है…मेनिफ्सेटो में भी केजरीवाल ने कहा कि कोई एमएएल बडा बंगला या लग्जरी गाड़ी नहीं लेगा…लेकिन जरूरत पड़ने पर सरकारी आवास ले सकता है

प्रत्याशियों का चयन

केजरीवाल भांप गए थे कि कुछ सीटो पर उनके खिलाफ जनादेश जा सकता है लिहाजा इस बार केजरीवाल ने 37 कैंडिडेट बदल डाले…इनमें से 17 कैंडिडेट दूसरी पार्टियों से आप में आए पार्षद या अन्य तरह के नेता रह हैं…इन 17 में से 13 को चुनाव लड़ने का अनुभव रह चुका है…पार्टी के करीब 20 फीसदी प्रत्याशी भी पहले किसी दूरी पार्टी में रह चुके हैं…यही नहीं 20 नए चेहरों को टिकट देने से केजरीवाल की जीत के चांस और भी ज्यादा बढ़ गए थे..इनमें से कुछ प्रत्याशियों का दीग छवनि थी..हालांकि शिकायत मिसलने पर केजरीवाल ने दो कैंडिडेट को बदल दिया था..

भ्रष्टाचार से आगे बड़े मुद्दे

पिछले चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर केजरीवाल दिल्ली के किंग बने थे…उनके निशाने पर यूपीए सरकार के घोटाले और शीला सरकार का भ्रष्टाचार था…लेकिन इस बार केजरीवाल ने न सिर्फ भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया बल्कि महिला सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली पानी, दिल्ली में वाईफाई, झुग्गी बस्तियां जैसे मुद्दे छाए रहे…केजरीवाल ने इन मुद्दों पर विस्तृत चर्चा के लिए दिल्ली डायलॉग कार्यक्रम आयोजित किए…ये मुद्दे इतने हावी हो गए  कि केजरीवाले के अहम जुमले, जनलोकपाल और स्वाराज बिल भी काफी पूछे छूट गए ..हालांकि आखिरी दिनों में पार्टी ने इन मुद्दों को अपेन मेनिफ्स्टो में जगह जरूर दी

टीम वर्क

हालांकि दिल्ली का शो पूरी तरह से केजरीवाल पर फोकस रहा…लेकिन केजरीवाल की सफलता के पीछे एख बेहतर टीम वर्क और मैनेजमेट ने काम किया..हनुमान रोड स्थित पार्टी कार्यालय में कई ऐसे नाम थे जो केजरीवाल के लिए हर मिनट की रणनीति तय करते थे..हालांकि आप के लिए फैसले लेने वाली कमेटी में बहुत कम नए लोगों को जोड़ा गया…केजरीवाल के कॉनफिडेंडट लोगों में वे भी शामिल थे जो चुनाव तो नहीं लड़ रहे थेलेकिन आप को चुनाव जिताने के लिए बहुत मेहनत कर रहे थे…इनमें कुमार विश्वास, आतिशी मारलीना, आशीष खेतान, राघव चड्ढा, मीरा सान्याल, आदर्श शास्त्री, संजय सिंह शामिल हैं…कुमार विश्वास प्रचार और रैलियों की जिम्मेदारी संभालते रहे , तो आशीष खेतानव के जिम्मे दिल्ली डायल़ग की सफळता रही, इसी तरह राघव चड्ढा पार्टी फंडिंग पर नजर रखते थे और टीवी डिबेट में आप का विजन रखते थे..मीरा सान्याल ने महिलाऔओं से जुड़ों मुद्दों पर फोकस किया तो आदर्शशास्त्री ने दिल्ली मे वाई फाई लगाने जैसे नए मुद्दों को जगह दी जिससे युवा आकर्षित हों सकें..

सबको सजदा

पिछले चुनाव में केजरीवाल की रणनीति 3 सी यानि करप्शन,क्रिमिनल पॉलिटिक्स, और कम्युनलिज्म पर थी…लेकिन इस बार केजरीवाल ने सबको साथ लेकर चलने का एजेंडा अपनाया…केजरीवाल ने अपने बयानों में में साफ किया कि उनकी प्राथमिकता दिल्ली में हर समुदाय का विकास करना है…इसके अलावा केजरीवाल चुनाव प्रचार के दौरान कभी मस्जिद, कभी गुरुद्वारे कभी मंदिर जाते रहे…चर्चों पर हुए हमलों के खिलाफ भी वे खुलकर आगे आए…शायद इसी वजह से केजरीवाल को इमाम बुखारी ने भी समर्थन दे दिया…लेकिन केजरीवाल समझ गए थे कि बुखारी का सपोर्ट लेनेसे गलत संदेश जा सकता है इसलिए केजरीवाल न इमाम बुखारी का समर्थन लेने से इनकार कर दिया

 

 

पंकज कुमार नैथानी

4 COMMENTS

  1. (१)
    भारत के आगे बढने के समाचारों से जो विदेशी शक्तियाँ डरी हुयी थी; एन जी ओ की सहायता करके भारत की आगे बढती गति को रोकना चाहती थी।
    (२)
    दूसरे थे आतंकवादी जो दुबई में बुलाकर अप्रत्यक्ष रीति से सहायता कर रहे थे।
    (३)
    तीसरे डरे हुए थे, कालेधन के स्वामी;जो अपनी दुकान को बंद होने के डर से, इस कजरु को सहायता कर रहे थे।
    (४)
    इस में और थे बुखारी –जिन को मोदी की विजय से बुखार आया हुआ था।
    (५)
    और था, बिका हुआ मीडिया–जो इस ढपोल शंख के वादों को मोदी के, सच्चे किए हुए कामों से अधिक आँकने मे व्यस्त था।
    (६)
    Politics Among Nations -by Moganthau को पढने पर कुछ स्पष्ट हो जाएगा।
    देश में अस्थिरता पैदा करने के लिए N G Os आतंकी, और घिनौनी शक्तियाँ इस मफलर -झाडु -टोपी के पीछे खडी थीं।
    (७)
    और मूर्ख मतदाता, जन तंत्र Democracy नहीं है, ये, ये है Mobocracy, Idiocracy.
    भगवान बचाए देहली को।
    वंदे मातरम।

    • डाक्टर साहिब ,आजकल कुछ भी पढ़कर आश्चर्य नहीं होता,क्योंकि अब बड़े बड़ों के चेहरे से नकाब उत्तर चुके हैं.आपने भी देर या सबेर अपने को उन्ही बड़े लोगों में शामिल कर लिया है . आप की गिनती विद्वानों में की जाती है और आप हमेशा आंकड़ों में बाते करते दिखाई देते है,पर तर्कशास्त्र में एक टर्म आता है, Fallacy of illicit generalization जिसमे एक उदाहरण देकर उसको मान्यता दे दी जाती है.आप अपने को ठीक सिद्ध करने के लिए वैसा ही कुछ कर रहे हैं पर याद रखिये इंडियन डेमोक्रेसी में आआप एक विकल्प बन कर उभड़ रही है.आप इसको ज्यादा देर तक नजर अंदाज नहीं कर सकते.

  2. अब देखना यह है की अरविंदजी कितनी बिजली/पानी/सस्ती करवाते हैं? यदि दिल्ली विधानसभा में ७० की ७० सीटें भी इन्हे,मिल जाती/लोकसभा में मोदी जी को ४०० से ऊपर सीटें मिल जाएँ तो भी दिल्ली या देश की समस्या हल होनी वाली नही. राजीवजी को लोकसभा में इतना बहुमत मिला था जितना जवहरलालजी को नहीं मिला?फिर क्या कारण है की आज दिल्ली और देश बेहाल है. सब नेता सतही सहूलियत देने और वोट लेने का काम करते हैं.samsya के मूल में जाने को कोई तैयार नही. बढाती आबादी सभी समस्याओं की जड़ है. अरविंदजी ने गलती से या मोदीजी ने गलती से भी कभी अपनी आमसभा में इस समस्या को उल्लेखित किया?जनता ताश के पत्तों की तरह सट्टों को फेंटकर देखती है. आज सामाजिक समस्याओं की तह में जाने को कोई तैयार नहीं है. शराब का प्रचलन. ,नेताओं,उद्योगपतियों ,अभिनेताओं ,खिलाड़ियों ,अधिकारीयो के विलासी जीवन जाँच के विश हैं या नही. जिस देश में आम और गरीब आदमी को शिक्षा और चिकित्सा की मूलभूत सुविधा नहीं ,वहां अभिनेता ५० करोड़ के मकान खरीदें, (उ.प्र। )में नेताजी के जन्मदिवस पे लन्दन से बग्गी मंगाई जाये ,वहीं शराब से कई मौतें होने पर एक नेता शादी की वर्ष गांठ मनाने लन्दन जाएँ, एक झटके में ५०-५० लाख के ४ चेक चंदे में मिल जाएँ, नामधारी और एक से बढ़कर एक सूट नेता पहिने. ,लाखों की चुनाव रैलियां ,क्या कभी अरविंदजी या मोदी जी ने इन बातों को उठाया?अरविंदजी वैसे ही जीतकर आये जैसे उनके पूर्व वर्ती ”परिवर्तन चक्र”के सिद्धांत पर जीतकर आये. अब भी हम आम मतदाता इन नेताओं की तरफ मसीहा की दृष्टि से देखते रहे तो हम वंही के वंही होंगे।

    • सुरेश चन्द्र कर्मकार जी,आप बहुत हद तक सही हैं,पर इसका मतलब यह तो नहीं,कि जनता विकल्प की तलाश ही न करे.प्रजातंत्र की यही तो विशेषता है.नमो भी उसी विकल्प की देन हैं और केजरीवाल भी. नमो तो पूर्ण राष्ट्र के प्रधान मंत्री हैं,और उनकी पार्टी के अध्यक्ष तो कुछवादों को चुनावी जुमला भी कह चुके हैं,अतः उनको अभी यहीं छोड़ते हैंऔर आते हैं केजरीवाल पर ,जो अब नमो की पार्टी के विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं.
      केजरीवाल के चुनावी वादों में ७० बिन्दु हैं. समाचारों के अनुसार उन्होंने शपथ ग्रहण के पहले ही मेनिफेस्टो दिल्ली के मुख्य सचिव को पकड़ा दी है और उसके बारे में प्लान तैयार करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है.जनता को भी उनकी पार्टी ने जागरूकता दी है .उसके साथ ही नमो पार्टी का पूरा तंत्र आआप की सरकार पर घात लगाये बैठा है.इन हालातों में अगर आआप कीसरकार अपने वादों से हट जाती है,तो उसकी क्या गति होगी,यह एक बच्चा भी बता सकता है,अतः आगे आगे देखिये,होता है क्या?

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