
—विनय कुमार विनायक
ओ शिक्षित इस्लामी तालिबानी बुद्धिमानों!
तुमने बामियानी बुद्ध की दो हजार वर्ष की
विशालतम प्रतिमाओं व पूर्वजों की विरासती
प्रस्तर मूर्तियों को तोड़ विश्व को बता दिया
कि तुम्हारे मजहब में मजहबवालों के लिए
कौन सी बातों की है मनाही और स्वीकृति!
तुम्हारे मजहब में मूर्ति को बनाना है मना,
तो क्यों बनाते हो फोटो पहचान-पत्र आईडी?
फिर क्यों तोड़ डालते हो विधर्मियों की मूर्ति?
तुम्हारे मजहब में तस्वीर बनाना भी है मना,
तो क्यों तुम्हारे मजहब वाले बनाते दूसरों के
आराध्य देव-देवियों के नग्न-विकृत तस्वीर?
तुम्हारे मजहब में गीत-नृत्य-संगीत है मना,
तो क्यों दूसरों को सुनाते हो कैबरे कव्वाली?
पता नहीं तुम्हारे मजहब में आतंक फैलाना,
मादक द्रव बेचना व सुनियोजित झूठ बोलना,
मना है या नहीं, क्योंकि हर मानवता विरोधी
बर्बर कार्रवाई को जायज ठहराने के लिए तुम
मजहबी प्रवर्जनाओं की दे देते हो झूठी दुहाई!
कि किसी देश और आबादी की खुशहाली के लिए
जनसंख्या नियंत्रण तुम्हारे मजहब के खिलाफ है,
ईमान-धर्म-सच्चाई की बातें तुम्हारे लिए प्रलाप है!
कि तुम्हारे मजहबियों की मातृभाषा हिन्दी, अंगिका,
भोजपुरी, बांगला, पंजाबी, गुजराती, कश्मीरी आदि
क्यों ना हो, उसे सरेआम स्वीकारना तुम्हें है मना!
कि तुम हर चीजों को मजहबी चश्मे से देखते हो,
तुम अरबी-फारसी-उर्दू समझते या नहीं समझते हो,
लेकिन हमेशा इसे ही अपनी इल्मी भाषा कहते हो!
तुम्हारे मजहब में तनिक भी नहीं है अहमियत
पराए धर्म को मानने वाले इंसानों की जान का,
तुम जहां भी हो जाते हो संख्या में बहुसंख्यक,
वहां से मार भगा देते हो विधर्मी अल्पसंख्यक!
तुम्हारे दिल में घर से उखड़े-उजड़े विस्थापित
विधर्मियों के प्रति, नहीं है रहमदिली-सहानुभूति,
तुम हड़प लेते हो उनकी भी सारी धन-सम्पत्ति!
तुम्हारे लिए पराए धर्मावलंबियों के मानवाधिकार के
नहीं हैं मायने, पर गैर-इस्लामिक देशों से उम्मीद करते
मुस्लिम समुदाय का संरक्षण और मानवाधिकार भी!
जन्मभूमि को नमन करना मना है तुम्हारे मजहब में,
पूर्वजों की यादों, वंश परंपरा को बचाए रखना है मना!
तुम मजहब के नाम मनगढ़ंत रब की बातें करते हो,
हर अमानवीय कृत्य के खातिर खुदा को घसीटते हो!
तुम्हारे मजहब में नारी की शिक्षा, स्वतंत्रता की मनाही,
तुम नारी पर्दा के हो हिमायती पर खुद संत बनते नहीं!
तुम हमेशा इस्लाम और जिहाद की बातें करते,
विधर्मियों के लिए कभी भी इंसाफ नहीं करते!
खुदा के बहाने हमेशा खुद अपनी ही बातें करते,
सच तो यह कि तुम किसी खुदा से नहीं डरते!
आखिर तुम्हें क्यों है पराए धर्म वाले से नफ़रत?
आखिर तुम्हारी शिक्षा में इतना क्यों है गफलत?
आखिर तुम क्यों चाहते विश्व में एक हो मजहब?
जहां तुम्हारा मजहब है वहां भी शांति नहीं संभव!
सब कुछ मना, अच्छा नहीं अच्छाई से भागना,
इंसान हो, इंसान को चाहिए इंसानियत सीखना,
इंसान हो, इंसान को चाहिए हंसना-नाचना-गाना,
इंसानी मेल मिलाप में खुदा को क्यों घसीटना?
आगे तुम यह भी कहोगे कि तुम्हारे मजहब में
मना पति-पत्नी का दाम्पत्य मिलन-सम्बन्ध भी
कि अनजाने में ही इससे बन जाती है परमपिता,
शुद्ध-बुद्ध अमिताभ की नन्ही सी जीवित मूर्ति!
—विनय कुमार विनायक
Bahut hi sundar sawal sir. Naman.