शिवानन्द मिश्रा
इस्लामिक देशों से भारत की दोस्ती कितनी गहरी और कितनी सांस्कृतिक है, मलेशिया की घटना से समझ लीजिए। यूँ तो सभी जानते हैं कि सऊदी अरब, अबुधाबी,कतर,संयुक्त अरब अमीरात आदि भारत के कितने खास दोस्त हैं, इतने खास कि मक्का मदीना और इस्लाम के जनक देशों में उन्हें मंदिर बनवाने तक से कोई परहेज नहीं ।
मलेशिया और इंडोनेशिया तो प्राचीन आर्यावर्त का ऐसा हिस्सा हैं जहां रामलीला होती है। गरुड़ एयरवेज है और जहां के राष्ट्रपति का नाम सुकर्ण हुआ करता था। स्त्रियों के नाम आज भी विद्योतमा, वीरोशिखा, अपराजिता, परिणिता आदि होते आ रहे हैं। इन देशों का धर्म अब इस्लाम है पर संस्कृति आज भी सनातनी। भारत के परममित्र देशों को यदि कोई भारत के नाम पर भड़काए तो हंसी आती है ।
ऑपरेशन_सिंदूर की जानकारी देने भारत से सर्वदलीय सांसदों के 7 दल दुनिया के 36 देशों में भेजे गए। सभी जगह भारत के इन डेलिगेशन्स को पूर्ण समर्थन एवम् आतिथ्य मिला।
नकल करते हुए शाहबाज और मुनीर भी चार देशों में गए और पाकिस्तान में जिन्हें जोकर कहा जाता है, वह बिलावल भुट्टो भी पर हिमाकत देखिए लादेन को बसाने वाले आतंकी देश पाकिस्तान की?
मलेशिया से कहा कि हम मुस्लिम मुस्लिम बिरादर बिरादर, इंडियन डेलिगेशन को आने की परमिशन न दें।
मलेशिया ने कहा शाहबाज अपनी तशरीफ ले जाइए। हिन्दुस्तान हमारा दोस्त है, उसका स्वागत तहेदिल से करेंगे। वही हुआ। भारतीय डेलिगेशन का जमकर स्वागत किया, पाकिस्तानी आतंकवाद की भर्त्सना की। सनद रहे कि अफगानिस्तान से पाकिस्तान ने कश्मीर भेजने को जब तालिबानी मांगे तो तालिबान ने उसे फटकारते हुए भारत को अपना बिरादर मुल्क बताया था। भारत ने संकट की घड़ी में तुर्की का साथ दिया पर ऐर्दुआन गद्दार निकला।
अमेरिका में बिलावल भुट्टो ने पीसी में कहा कि कश्मीर में सेना मुसलमानों का उत्पीड़न कर रही है। तब पाकिस्तान के एक मुस्लिम पत्रकार ने कहा कि गलत है। सेना के अभियान की प्रेस ब्रीफिंग ही कर्नल सोफिया कुरैशी कर रही हैं जो खुद एक मुस्लिम हैं ? तब बिलावल बगलें झांकने लगे। यही हाल अब भारत में होने वाला है। शशि थरूर,असाउद्दीन ओवैसी, कनीमोजी, सलमान खुर्शीद, सुप्रिया सुले, मनीष तिवारी, प्रियंका चतुर्वेदी,अभिषेक बनर्जी आदि विपक्षी नेता देश के नायक बनकर लौटे हैं।
अभी हाल तक वे अपनी पार्टियों के सांसद थे, अब छवि और बौद्धिकता के बारे में अपनी पार्टियों के नायकों को बहुत पीछे छोड़ आए हैं। सत्र बुलाने के सवाल से केजरीवाल ,उमर और शरद पवार ने किनारा कर लिया है। अखिलेश और तेजस्वी भी अब मौन अधिक रहते हैं।
वैसे कांग्रेस के लिए उनका होना अपशकुन के समान है। उनके बोल बीजेपी के काम आते हैं । तभी बीजेपी उनके बोलते रहने की इच्छा जाहिर करती रहती है।
शिवानन्द मिश्रा