भारत का शिक्षा क्षेत्र में नहीं थी कोई शानी

—विनय कुमार विनायक
भारत का शिक्षा क्षेत्र में नहीं थी कोई शानी,
प्राचीन भारत में घर-घर में लोग होते ज्ञानी,
तक्षशिला, बिहार का नालंदा और बिक्रमशिला,
विश्वविद्यालय था पूरे विश्व में ख्यातनामी,
तक्षशिला विश्वविद्यालय अब क्षेत्र पाकिस्तानी!

छठी शताब्दी ई.पूर्व महावीर व बुद्ध काल से,
नालंदा महाविहार मगध क्षेत्र में अवस्थित था,
इस महाविहार को विश्वविद्यालय में ढाला था,
गुप्तसम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने पांचवीं सदी में,
जिसे ध्वस्त कर दिया विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी ने!

यह विश्वविद्यालय विश्वस्तरीय शिक्षाकेन्द्र था,
जहां चीन तिब्बत लंका कोरिया मंगोलिया और
अन्य मध्य एशियाई देशों के दस हजार छात्र थे
अध्ययनशील, जिसमें चीन के ह्वेनसांग भी थे,
चीन तिब्बत के छात्रों ने नकल कर ग्रंथों को रक्षित किए!

शीलभद,धर्मकीर्ति,नागार्जुन,आर्यदेव,वसुबंधु आदि
पंद्रह सौ आचार्य अध्यापन कार्य में लगे हुए थे,
यहां शिक्षा हेतु प्रवेश परीक्षा द्वारपंडित लेते थे,

सभी विद्यापीठ में छात्रों को निशुल्क शिक्षा थी,
भोजन वस्त्र व आवास की बेहतरीन व्यवस्था की गई थी!

ग्यारहवीं सदी तक बौद्ध और हिन्दू शासकों ने
नालंदा विश्वविद्यालय का रख-रखाव किया था,
गुप्तवंश के बाद हर्ष, पाल,सेन ने दान दिया था,
पर बारहवीं सदी में मुहम्मद गोरी के प्रतिनिधि
बख्तियार खिलजी ने नालंदा को जला दिया था!

नालंदा विश्वविद्यालय अति विकसित केन्द्र था,
ह्वेनसांग के अनुसार वेधशालाएं इतनी ऊंची थी
कि दृष्टि काम नहीं करती थी, उसके ऊपर ऐसे
यंत्र स्थापित थे जो वायु वर्षा का ज्ञान देता था,
बौद्ध दर्शन सहित वेद पुराण उपनिषदीय शिक्षा दी जाती!

चीनी विद्वान इत्सिंग सहित थान-मि,ह्वैन-च्यू,
ताऊ-हि,हिव-निह,ताऊसि आदि चीन,कोरिया और
तिब्बत,तोखारा देशों के अध्येता विद्वान थे जो
धर्मयज्ञ पुस्तकालय में ग्रंथों के नकल बनाते थे,
उनके ही प्रयास से भारतीय ज्ञान विश्व में फैले!

नालंदा के निकट उदन्तपुरी महाविहार था यहां,
जिसे उद्दण्डपुर संप्रति बिहार शरीफ कहे जाते,
उदन्तपुरी पाल शासक गोपाल की राजधानी थी,
बख्तियार ने विजय उपलक्ष्य में नाम बदल दी,
हिन्दू संस्कृति को मिटाने हेतु स्थानों के नाम बदले गए!

आक्रांताओं में स्थान का नाम बदलने की बदनीयती ऐसी
कि अंग क्षेत्र की राजधानी भागलपुर के सभी हिन्दू बहुल
मुहल्ले का नाम आक्रांताओं ने अरबी फारसी में रख दिए,
अलीगंज,मिरजान हाट,मुंदी चक, उर्दू बाजार,इसाक चक
आज भी अति धर्म सहिष्णु हिन्दुओं के द्वारा पुकारे जाते!

पालवंशी गोपाल सुपुत्र धर्मपाल ने नवीं सदी में,
भागलपुर के निकट बिक्रमशिला स्थापित किया,
बिक्रमशिला विश्वविद्यालय भी अतिविख्यात था,
उदन्तपुरी विद्यापीठ के द्वारपंडित रत्नाकर को
बिक्रमशिला का द्वारपंडित नियुक्त किया गया!

रत्नाकर शांति कलिकालसर्वज्ञ वज्रयान के ज्ञानी
व अंगक्षेत्र के अतिश दीपंकर श्रीज्ञान प्रबंधक थे,
जो बौद्धधर्म प्रचारार्थ जावा सुमात्रा तिब्बत गए,
बिक्रमशिला तंत्रयान औ मंत्रयान विद्याकेन्द्र था,
पालवंशी राज में बिक्रमशिला अति विकसित था!

इस महाविहार में आठ महापंडित, छः द्वार पंडित,
औ’ एक सौ आठ पंडित आचार्य अध्यापन करते,
हिन्दी साहित्य के चौरासी सिद्धों में अधिकांशतः
बिक्रमशिला महाविहार के अंगिका भाषा भाषी थे,
अंगिका भाषा वेदों से निसृत लेकिन छली गई है!

इस चार विश्वविद्यालयों के अलावे पाटलिपुत्र था
मौर्य काल में संस्कृत विद्या का अति प्राचीन गढ़,
जहां शास्त्रकारों की परीक्षा प्रति वर्ष होती रही थी,
वर्ष,उपवर्ष, पाणिनि,पिंगल,व्याडि, वररुचि, पतंजलि
पाटलिपुत्र के संस्कृत आचार्य डिग्रीधारी विद्वान थे!
—विनय कुमार विनायक

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